दो वक्त की रोटी ही नहीं जीवन रक्षक दवा भी मुफ्त मिलनी चाहिए

केंद्र सरकार को कोविशील्ड वैक्सीन 150 रुपये प्रति डोज, राज्य सरकारों को 400 रुपये प्रति डोज और निजी अस्पतालों को 600 रुपये प्रति डोज उपलब्ध कराए जाने की बात है। सीरम ने कोविशील्ड के लिए 600 रुपये की जो कीमत तय की है, वह अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे अमीर देशों की तुलना में अधिक है।

देश के करीब 80 करोड़ गरीब और जरूरतमंद लोगों को अगले दो महीने यानी मई और जून में पांच-पांच किलोग्राम अनाज मुफ्त दिया जाएगा। भले ही इस बार देशव्यापी लॉकडाउन नहीं लगाया गया हो, लेकिन जैसे-जैसे महामारी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, तमाम राज्य सख्त पाबंदियां लगाने पर मजबूर हो रहे हैं। इससे बहुत से लोगों के रोजी-रोजगार या तो छिन रहे हैं या छिनने के आसार बन रहे हैं। इसी वजह से प्रवासी मजदूरों का बड़ा हिस्सा एक बार फिर अपने अपने गांवों की ओर लौट रहा है। ऐसे में इस तरह के कदम वक्त की जरूरत बन गए हैं। इसी बीच वैक्सीन का दायरा बढ़ाने की भी पहल हुई है, जो स्वागत योग्य कदम है। लेकिन इससे जुड़े कुछ पहलुओं की आलोचना भी हो रही है। खासकर वैक्सीन की अलग-अलग कीमतों को लेकर। केंद्र सरकार को कोविशील्ड वैक्सीन 150 रुपये प्रति डोज, राज्य सरकारों को 400 रुपये प्रति डोज और निजी अस्पतालों को 600 रुपये प्रति डोज उपलब्ध कराए जाने की बात है। सीरम ने कोविशील्ड के लिए 600 रुपये की जो कीमत तय की है, वह अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे अमीर देशों की तुलना में अधिक है। कंपनी ने इसका बचाव करते हुए कहा है कि 600 रुपये की कीमत निजी अस्पतालों के लिए है। इसकी तुलना अमीर देशों की सरकारों से ली गई कीमत से नहीं की जा सकती। और उन देशों से वैक्सीन बनाने के लिए उसे पहले ही फंडिंग मिल चुकी थी।
अनाज ही नहीं, टीका भी मिले मुफ्त
अनाज ही नहीं, टीका भी मिले मुफ्त

अब भारत बायोटेक ने भी कोवैक्सीन के लिए राज्यों से 600 और निजी अस्पतालों से 1,200 रुपये लेने की बात कही है, जबकि केंद्र को वह पहले की तरह 150 रुपये पर इसकी सप्लाई करता रहेगा। राज्यों और निजी अस्पतालों के लिए ऊंची कीमत रखने पर भारत बायोटेक की भी आलोचना हो रही है। असल में कुछ जानकारों का कहना है कि टीके की ऊंची कीमत से टीकाकरण अभियान में कुछ दिक्कत हो सकती है। विपक्ष भी टीके की कीमतों पर केंद्र की नीति को भेदभावपूर्ण बता रहा है। इसके साथ पूरी आबादी को मुफ्त टीका दिए जाने की मांग भी जोर पकड़ रही है। सच यह भी है कि बीजेपी समेत विपक्ष शासित कई राज्यों ने अपने यहां लोगों को मुफ्त टीका देने का वादा किया है। मुफ्त टीके की हिमायत में कुछ गैर-राजनीतिक संगठन पल्स पोलियो अभियान की मिसाल दे रहे हैं। उनका कहना है कि अगर पोलियो का टीका मुफ्त नहीं दिया जाता, तो यह सभी बच्चों तक नहीं पहुंच पाता। इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च की एक स्टडी में यह भी बताया गया कि 18 साल से ऊपर की समूची आबादी को मुफ्त टीका लगाने का खर्च भी करीब 67 हजार करोड़ रुपये ही आएगा, जो जीडीपी का 0.36 फीसदी ही बैठता है। केंद्र चाहे तो राज्यों के साथ इस खर्च को बांट सकता है। आखिर मौजूदा नीति में भी दोनों ही टीकाकरण का खर्च उठा रहे हैं। यानी जरूरत है तो दोनों के बीच बेहतर तालमेल और केंद्रीय स्तर पर इसकी पहल की।
(एनबीटी से साभार)

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