शैल शिखर से गिरतीं नदियाँ,
वसुधा के आँचल में।
उच्छृंखल अनियंत्रित जल को,
कूल सहेजे पल में।।
हाहाकार मचातीं लहरें,
तोड़ रहीं निज कूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
माली ने भगवान सरिस ही,
नन्हा बीज उगाया।
मातु-पिता ज्यों पाल-पोशकर,
खिलने योग्य बनाया।।
फूलों ने पंखुड़ियों के सँग,
छुपा रखा है शूल।
अवध यह समय-
नहीं अनुकूल।।
शीतल सम्यक सौम्य सुभाषित,
चंदन पड़ा किनारे।
बन बैठे सरताज जगत में,
सूरज सम्मुख तारे।।
चंदन के धोखे में माथे,
पर चढ़ बैठी धूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
कैकेयी माता जब होंगी,
पिता धूर्त कुरुराजन।
ऐसे घर में सम्बंधों का,
निश्चय होगा दोहन।।
पुत्र मोह में रहा सहोदर,
भाई को जग भूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
संस्कार को छोड़ जमाना,
है विकास अनुगामी।
किन्तु राह केवल विकास का,
सतपथ अन्तर्यामी।।
बनावटीपन के चंगुल में,
काट नहीं रे मूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
परसेवा समान इस जग में,
काम नहीं है दूजा।
सच्ची भक्ति यही ईश्वर की,
यही सत्य शुचि पूजा।।
दीन-दुखी असहाय देख मत,
मद के झूले झूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
जो आया है, जाना तय है,
सत्य सनातन मानो।
मानवता ही सत्य साधना,
अच्छे से पहचानो।।
चार दिवस का छंणभंगुर जग,
मत खुशियों में फूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
असहायों का एक सहारा,
श्रीहरि विष्णु विधाता।
यही पिता,माता,गुरु,स्वामी,
ऋद्धि-सिद्धि के दाता।।
सिया रामजी आएँगे ही,
देख समय प्रतिकूल।
अवध यह समय-
नहीं अनुकूल।।
डॉ अवधेश कुमार अवध
मेघालय – 8787573644

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