लेखकीय निवेदन, भाग -2 महापुरुषों का स्मरण देता है संजीवनी

 इससे पता चलता है कि स्वामी श्रद्धानंद जी जैसे महानायक ने राव लूणकरण भाटी की परंपरा को मरने नहीं दिया ,बल्कि उसको गहराई से समझ और पढ़कर उसका अनुकरण कर सैकड़ों वर्ष पश्चात भी हिंदुओं की शुद्धि के महान कार्य को आगे बढ़ाने का प्रशंसनीय और राष्ट्रवंद्य कार्य किया। ऐसे में हमको इस भाव और विचार से बाहर निकलने की आवश्यकता है कि हमने कभी इतिहास की परंपराओं को समझा नहीं या समय आने पर उनका अनुकरण नहीं किया। हमने विचारों में और अपने कार्य में सदा अपने महापुरुषों को जीवित रखा। उसी से भारत को एक जीवंत राष्ट्र बनाए रखने में हमको सफलता मिली। यदि स्वामी श्रद्धानंद जी जैसे महापुरुषों के चिंतन में नागभट्ट द्वितीय और राव लूणकरण भाटी जैसे महापुरुषों की हत्या हो गई होती तो वह कदापि शुद्धि के महान कार्य को आगे नहीं बढ़ा पाते। राष्ट्र और समाज के संदर्भ में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि राष्ट्र पुरुषों का अथवा महापुरुषों का स्मरण समस्त राष्ट्रवासियों को संजीवनी प्रदान करने का काम करता रहता है।

लाला लाजपत राय जी का उदाहरण

 उपरोक्त पुस्तक से ही हमें जानकारी मिलती है कि एक समय ऐसा भी आया था जब लाला लाजपत राय जी के पिताजी इस्लाम के बहुत निकट चले गए थे। इतना ही नहीं, उन्होंने घर में मस्जिद तक भी बनवा ली थी। एक निश्चित दिन वे इस्लाम कबूल करने के लिए बग्गी पर सवार होकर मस्जिद को जा रहे थे। यह भारत का सौभाग्य ही था कि जिस समय लाला लाजपत राय जी के पिताजी इस्लाम स्वीकार करने के लिए बग्गी पर सवार हो मस्जिद की ओर जा रहे थे। उसी समय उन्हें एक महापुरुष के प्रवचनों के कुछ शब्द कानों में पड़े । उन्होंने बग्गी को रुकवाया, और वहीं बैठे-बैठे उस महापुरुष के प्रवचनों को सुनने लगे। इन प्रवचनों में जिस प्रकार का ओज और तेज प्रवाहित हो रहा था उसने लाला लाजपत राय जी के पिताजी को मुसलमान बनने से रोक लिया। यह महापुरुष कोई अन्य नहीं स्वयं स्वामी दयानंद जी महाराज थे। जिनके प्रवचनों से एक बहुत बड़ी घटना होने से रुक गई थी।
    कल्पना कीजिए कि यदि स्वामी दयानंद जी महाराज के प्रवचनों की ओजस्विता और तेजस्विता से प्रभावित होकर लाला लाजपत राय जी के पिताजी उस दिन मस्जिद जाने से नहीं रुकते तो लाला लाजपत राय भी मुसलमान होते और फिर वे भी उसी प्रकार देश के लिए घातक होते जिस प्रकार अल्लामा इकबाल देश के लिए घातक साबित हुआ था, जिसके दादाजी हिंदू थे या कहिए कि लालाजी भी कोई नया ‘जिन्नाह’ बन सकते थे जिसके पिताजी हिंदू थे। परमपिता परमेश्वर की राष्ट्र पर असीम कृपा थी कि सही समय पर सही व्यक्ति के सही शब्द लाला लाजपत राय जी के कानों में पड़ गए , जिससे एक अनिष्ट होने से टल गया।

जब दलितों को नहीं बंटने दिया था स्वामी श्रद्धानंद ने

 आजादी से पहले स्वामी श्रद्धानंद जी के जीवन काल में कांग्रेस के समक्ष देश के लगभग 8 करोड़ दलितों को मुसलमानों और हिंदुओं में आधा-आधा बांट लेने का प्रस्ताव मुस्लिमों की ओर से आया था । आज के दलितों को इस घटना को विशेष रूप से स्मरण रखना चाहिए और यह समझना चाहिए कि मुसलमानों का उनके प्रति दृष्टिकोण क्या रहा है और स्वामी श्रद्धानंद जी यदि नहीं होते तो उनकी हालत आज क्या होती? जब मुसलमान ने दलितों को आधा-आधा बांटने का प्रस्ताव रखा तो उस प्रस्ताव पर भी गांधी जी ने कोई कठोर प्रतिक्रिया नहीं दी थी। इसके विपरीत वह इस बात पर लगभग सहमत हो गए थे। गांधी जी और मुसलमानों का वह आचरण बता रहा था कि इन दोनों के लिए ही दलित समाज उस समय भेड़ बकरी बन गया था। जिनके सिरों की गिनती की जानी थी और उन्हें आधा-आधा बांट लिया जाना था।
  स्वामी श्रद्धानंद जी जैसे देशभक्त के लिए यह अत्यंत पीड़ादायक स्थिति थी। वह नहीं चाहते थे कि देश के दलितों को मुसलमान थोक के भाव में आधा अर्थात 4 करोड़ ले जाएं और बाद में इन्हीं चार करोड़ को अपने ही हिंदू भाइयों के विरुद्ध उकसाकर मारने काटने के लिए प्रेरित करें। स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज इतिहास के क्रूर सच को भली प्रकार जानते थे, जबकि गांधी जी उस सच से आंखें मूंद रहे थे। गांधीजी उस सच को या तो देखते नहीं थे या उसे देखने का प्रयास नहीं करते थे, जिसे स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज की पारखी नजरें बहुत पहले पहचान लेती थीं। ऐसे प्रस्ताव का क्रियान्वयन होना देश के लिए बहुत बड़ा घाटे का सौदा था। जिसे स्वामी श्रद्धानंद जी कभी भी सहन नहीं कर सकते थे।

इस उदाहरण को आज की परिस्थितियों पर कसकर देखने की आवश्यकता है?
यद्यपि ऐसे कई उदाहरण भारतवर्ष में हैं जब मुसलमान से हिंदू बने लोगों को देर तक सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा, परंतु स्वामी श्रद्धानंद जी और उनके साथी जब इस महान कार्य को करते थे तो उसके पश्चात ऋषि लंगर का आयोजन होता था। जिसमें हिंदू समाज के सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन किया करते थे। इस प्रकार सामाजिक समरसता का परिवेश सृजित कर उसमें अपने बिछुड़े हुए भाइयों को सम्मिलित किया जाता था।
आज हमारे देश में कुछ लोग इतिहास के क्रूर सच को मिटा रहे हैं जिससे आर्य हिंदू जाति अपने अतीत से शिक्षा ले सके तो कहीं-कहीं पर गांधी नेहरू के क्रूर सच का महिमा मंडन किया जा रहा है और उन जैसे लोगों की उन नीतियों पर लीपापोती की जा रही है जिनके कारण देश को कष्ट हुआ या आगे चलकर भी कष्ट होना संभावित है। यही कारण है कि गांधीवादी और नेहरूवादी लोग इन दोनों नेताओं की नीतियों को तुष्टिकरण और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बचाने का प्रयास कर रहे हैं । इन प्रयासों के माध्यम से भी स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज और सावरकर जी जैसे अनेक इतिहास नायकों का महान कार्य उपेक्षित कर इतिहास के कूड़ेदान में फेंका जा रहा है।
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि जिस देश ने सामाजिक समरसता के अनेक उदाहरण स्थापित कर अपनी घटती हुई संख्या को बढ़ाने का भागीरथ प्रयास और पुरुषार्थ कर अपना इतिहास रचा है, उसमें आज भी कई लोग ऐसे हैं जो जातिवाद, छुआछूत, ऊंच-नीच , अस्पृश्यता की बीमारी को गले में लटकाए रखने की वकालत करते देखे जाते हैं। समय ने बहुत कुछ साबित कर दिया है और यदि समय रहते हिंदू समाज जगा नहीं तो समय बहुत कुछ साबित कर भी देगा। इससे पहले कि काल कोई नया इतिहास रचे, हम ही इतिहास को रोककर उस पर हावी हो जाएं। काम तभी निपटता है जब हम स्वयं उस पर हावी हो जाते हैं। यदि काम हम पर हावी बना रहा तो काम के बढ़ते बोझ को देखकर हम स्वयं ही मिट जाएंगे।
अन्त में बस इतना ही :-
सुन लो ,समय की पुकार…
अब मत… धोखे में आना…… देशवासियों !
सुन लो, समय की पुकार…
सदियों में आया मौका हाथ में तुम्हारे
फिर आ ना सकेगा।
अब ना जगे तो फिर तुम्हें कोई जगा ना सकेगा ।
कर दो दूर खुमार…..
प्राण प्रतिष्ठा करने में समर्थ लोग सामने आएं और समय की नजाकत को पहचान कर हिंदुओं में “प्राण प्रतिष्ठा” करने का काम करें।
इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर यह पुस्तक लिखी गई है । पुस्तक के शीघ्र प्रकाशन के लिए मैं परमपिता परमेश्वर की असीम अनुकंपा के प्रति हृदय से नतमस्तक होकर प्रकाशक महोदय को भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूं जिन्होंने यथाशीघ्र इस पुस्तक को पाठकों के पवित्र हाथों तक पहुंचने का कार्य किया है। अपने परिजनों, प्रियजनों सुधि पाठकों के प्रति भी हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूं जिनका आशीर्वाद सदैव मेरे साथ रहकर मेरा मार्गदर्शन करता रहता है।
मेरे लेखन के यात्रापथ में मेरी पुस्तकों का यह 75 वां पुष्प है। आशा करता हूं कि यह पुष्प आपको अवश्य ही सुगंध प्रदान करेगा । आपके आशीर्वाद का अभिलाषी –

विदुषामनुचर:

डॉ राकेश कुमार आर्य
दयानंद स्ट्रीट, सत्यराज भवन, (महर्षि दयानंद वाटिका के पास)
निवास : सी ई 121 , अंसल गोल्फ लिंक – 2, तिलपता चौक , ग्रेटर नोएडा, जनपद गौतमबुध नगर , उत्तर प्रदेश । पिन 201309
चलभाष 9911169917

दिनांक : 23 फरवरी 2023

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