प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र : मोदी जी ! हमें चाहिए अपना गौरवमयी वैदिक हिंदू इतिहास

 

माननीय प्रधानमंत्री जी ! सादर प्रणाम ।

2014 में जब आप देश के प्रधानमंत्री बने तो भारतीय धर्म संस्कृति और इतिहास की परंपराओं के प्रति आस्थावान हम जैसे करोड़ों लोगों को आपके प्रधानमंत्री बनने पर असीम प्रसन्नता का अनुभव हुआ था। तब लोगों को लगा था कि आप वैदिक (हिन्दू) इतिहास, संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए अभूतपूर्व कार्य करेंगे। इसमें दो मत भी नहीं हैं कि आपने अपनी क्षमता और सामर्थ्य का सदुपयोग करते हुए पिछली कांग्रेसी सरकारों के अनेक निर्णयों को बड़ी सावधानी से बदलकर या उन सरकारों के द्वारा डाली गई परंपराओं को तोड़कर नई परंपरा स्थापित करके इस दिशा में अनेकों महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। जिनके दूरगामी परिणाम बहुत अच्छे आएंगे। आपने ‘सबका साथ – सबका विकास’ करने का जो संकल्प लिया, वह भी सराहनीय है। किसी भी न्यायपरक और पक्षपात शून्य हृदय वाले शासक के लिए इसी प्रकार की नीति पर चलना अनिवार्य और उचित होता है। वैसे भी भारत के सम्राटों की यह प्राचीन परंपरा रही है। जिसे आपने अपनाकर भारतीय परंपराओं को ही पुनर्जीवित किया है।
आज आपसे इस पत्र के माध्यम से मुस्लिम आक्रमणकारियों, क्रूर बादशाहों और सुल्तानों के द्वारा
देश के अनेकों ऐतिहासिक नगरों, कस्बों और ग्रामों के नाम परिवर्तन के गहरे षड्यंत्र पर विशेष अनुरोध करना चाहूंगा कि वैदिक/ हिंदू इतिहास के गौरवमयी पृष्ठों के पुनर्मूल्यांकन के दृष्टिगत आप ऐसे नगरों, ग्रामों, कस्बों का चिह्नीकरण कराकर उन्हें यथाशीघ्र हिंदू नाम देने का कष्ट करें।
इस क्रम में हम चाहेंगे कि दिल्ली की अकबर रोड का नाम महाराणा प्रताप के नाम से किया जाए। क्योंकि अकबर एक विदेशी लुटेरा था। जिसने हिंदुस्तान को कभी अपना नहीं समझा। उसने यहां हिंदुओं पर अनेकों अत्याचार किए और अनेकों लोगों का धर्म परिवर्तन भी कराया। हेमचंद्र विक्रमादित्य के साथ उसने जो भी कुछ किया या रानी दुर्गावती और उन जैसी अनेकों हिंदू वीरांगनाओं के साथ जो कुछ भी किया, वह सब निंदनीय है । ऐसे निन्दित व्यक्तित्व के स्वामी अकबर के सामने खड़े महाराणा प्रताप हमारे स्वाभिमान और गौरव के प्रतीक हैं। जिन्हें भारत की राजधानी दिल्ली में स्थान मिलना चाहिए। इसलिए अकबर रोड का नाम महाराणा प्रताप के नाम से किया जाना बहुत आवश्यक है। इसी प्रकार हेमचंद्र विक्रमादित्य जैसे महान संस्कृति रक्षक शासक को भी उचित सम्मान देते हुए उनके नाम से भी कोई महत्वपूर्ण स्मारक राष्ट्रीय राजधानी में होना चाहिए
। जिन्होंने 20 से अधिक युद्ध अफ़गानों से किए थे और उन्हें देश से भगाने के अभियान में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
दिल्ली की सड़कों के नाम यदि हमारे देशभक्त, संस्कृति रक्षक, धर्मप्रेमी , हिंदू राजाओं, शासकों, सम्राटों, ऋषियों और राजनीति के मनीषी विद्वानों के नाम पर होंगे तो हर भारतीय को अपनी राजधानी की ऐसी सड़कों पर से गुजरते हुए गर्व और गौरव की अनुभूति होगी। यदि इन सड़कों के नाम विदेशी लुटेरे, हत्यारे, बलात्कारी ,अत्याचारी, भारतीय धर्म संस्कृति और इतिहास का अपमान करने वाले लोगों के नाम पर होंगे तो निश्चय ही यह राष्ट्रीय अपमान का बोध कराने वाले होंगे। कांग्रेसी सरकारों ने इन सभी नामों को यथावत रखा या इनमें और भी अधिक वृद्धि की तो इसके पीछे एक ही कारण था कि उन्हें मुस्लिमों का तुष्टीकरण करना था। मुस्लिम वोटों की प्राप्ति के लिए वह भारत के गर्व और गौरव का दमन करते रहे।
हम चाहेंगे कि सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड़, बप्पा रावल, नागभट्ट प्रथम, नागभट्ट द्वितीय ,गुर्जर सम्राट मिहिर भोज, पृथ्वीराज चौहान, राजा भोज, सम्राट विक्रमादित्य परमार (जिनके नाम पर विक्रमी संवत चलाया गया) छत्रसाल, बंदा बैरागी जैसे अनेकों हिंदू गौरव के प्रतीक शासकों, सम्राटों और योद्धाओं को भी राजधानी में सम्मानजनक स्थान प्रदान किया जाना चाहिए। हमारे क्रांतिकारियों और इतिहास नायकों को यह सम्मान न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि प्रांतीय और जनपदीय स्तर तक भी मिलना चाहिए। यदि कोई क्रांतिकारी किसी जनपद में विशेष क्रांतिकारी गतिविधि को करते हुए अपना बलिदान दे गया या किसी जनपदीय अंचल में क्रांति की मशाल जलाए रखने के ऐतिहासिक कार्य करता रहा तो उसके नाम पर ही कोई न कोई सड़क जनपद में होनी चाहिए।


अभी हाल ही में जनता के लिए खोले गए दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस वे का नाम धनसिंह कोतवाल के नाम पर रखा जाना उचित होगा। जिन्होंने 1857 की क्रांति का शुभारंभ मेरठ से किया था । इसी प्रकार विजय सिंह पथिक जी जैसे क्रांतिकारी के नाम पर न केवल उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर व जनपद गौतमबुध नगर में किसी सड़क का नामकरण किया जाए बल्कि राजस्थान के उन क्षेत्रों में भी कोई न कोई सड़क उनके नाम पर होनी चाहिए जहां रहते हुए उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा था।
ऐसे योद्धाओं, संस्कृति रक्षक राष्ट्रपुरुषों की स्मृति को अक्षुण्ण रखने और देश के युवा वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत बनाने के दृष्टिकोण से उन पर विशेष अनुसंधान कराया जाए। इन जैसे सभी योद्धाओं की जयंती या बलिदान दिवस आदि को विशेष उमंग और उल्लास के साथ राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाने की परंपरा आपके रहते विकसित होनी चाहिए। लोगों ने सत्ता में रहकर अपने आदर्शों और अपनी पार्टी के पूर्व प्रधानमंत्रियों या पार्टी के बड़े नेताओं के नाम पर सड़कों , स्थानों, स्टेडियमों, पार्कों आदि के नाम रखने की परंपरा चलाई है, जो कि गलत है। हमें पार्टी के नेता नहीं बल्कि राष्ट्र के नेता चाहिएं, जिससे राष्ट्रीय एकता मजबूत हो।
आपके रहते दिल्ली की औरंगजेब रोड का नाम एपीजे कलाम साहब के नाम से रखा गया, जिस पर सभी राष्ट्रवादी लोगों को असीम प्रसन्नता की अनुभूति हुई थी। परंतु राष्ट्रीय राजधानी में अभी भी कई सड़कें विदेशी निर्दयी शासकों के नाम पर हैं, जिन्हें देखकर बड़ा दुख होता है । क्यों ना इन सबको एक झटके में समाप्त कर अपने राष्ट्र के गौरव राष्ट्रपुरुषों के नाम कर दिया जाए ?
यदि आप ऐसा निर्णय लेते हैं तो निश्चय ही सारे देश में आपके इस ऐतिहासिक निर्णय का स्वागत किया जाएगा। हमें अपने मिसाइल मैन कलाम साहब प्यारे हैं, अपेक्षाकृत उस निर्दयी और क्रूर बादशाह औरंगजेब के जिसने कृष्ण जन्म स्थली सहित हिंदुस्तान के अनेकों गौरवपूर्ण और ऐतिहासिक धरोहर के प्रतीक मंदिरों या धर्म स्थलों को क्षतिग्रस्त किया या नष्ट किया, या अपने काले कारनामों से मानवता को कलंकित करते हुए वैदिक धर्म का अनिष्ट किया।
एक जानकारी के अनुसार यह एक अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि भारत के 6लाख शहरों और गांवों में से अभी भी 704 शहर, कस्बे और गांव ऐसे हैं जो पहले छह मुगल शासकों के नाम पर हैं। इसके अतिरिक्त तुर्कों या अंग्रेजों के नाम पर जिन सड़कों, कस्बों, शहरों या गांवों के नाम हैं, वह इस सूची से अलग है ।इन सबके विषय में यह भी एक जानने योग्य तथ्य है कि इनके हिंदू स्वरूप को मिटाकर या उसका नाम परिवर्तित करके ही इनको मुस्लिम नाम दिया गया। बात यह नहीं है कि हम किसी प्रतिशोध की भावना के वशीभूत होकर इन शहरों या कस्बों के नाम परिवर्तित कराने की मांग आपसे कर रहे हैं या इसके पीछे हमारा कोई सांप्रदायिक पूर्वाग्रह है। इसके पीछे हमारा उद्देश्य केवल एक है कि हमारा हिंदू वैदिक इतिहास सुरक्षित किया जाना बहुत आवश्यक है और यह तभी सुरक्षित रह सकता है या हो सकता है जब मुस्लिमों द्वारा बलात नाम परिवर्तित किए गए शहरों, कस्बों ,गांवों और नगरों को उनके मूल नाम दिए जाएं ।
जब हम उनके मूल से जुड़ेंगे तो हमें उनके ऐतिहासिक महत्व का बोध होगा, इसी को इतिहास बोध कहते हैं । जब यह इतिहासबोध हमारे युवाओं के भीतर उतरेगा तो वह राष्ट्रबोध में परिवर्तित होगा। इसके अतिरिक्त यह व्यवस्था कराया जाना भी आवश्यक है कि कोई भी कॉलोनाइजर किसी विदेशी मत ,मजहब या संप्रदाय के व्यक्ति के नाम पर अपनी कॉलोनी, सोसाइटी, नगर या उपनगर का नाम नहीं रखेगा। ये नाम भारतीय परंपरा के अनुकूल हों। किसी मत ,मजहब या संप्रदाय को प्रकट करने वाले नहीं होने चाहिए। ब्रिटेन में मुसलमानों के नाम ब्रिटिश इंग्लिश भाषा की परंपरा के अनुसार रखे जाते हैं। वहां लोकतंत्र का अभिप्राय यह नहीं है कि जो मन में आए वही करो – वहाँ राष्ट्रीय परंपराओं का सम्मान करना अनिवार्य है और मजहब को व्यक्ति का व्यक्तिगत विषय रखा गया है। ब्रिटेन की इस लोकतांत्रिक परंपरा के अनुसार यदि किसी व्यक्ति का नाम विलियम है तो जरूरी नहीं कि वह ईसाई हो, वह मुस्लिम भी हो सकता है।
जिन लोगों ने हमारे इतिहास को मिटाया, हमारे महापुरुषों के साथ अत्याचार किए, हमारे पूर्वजों को मिटाने का हरसंभव प्रयास किया या उन पर पाशविक अत्याचार किए, या उन्हें गुलाम बनाने के कार्य किए और महिलाओं के साथ अमानवीय अत्याचार करने के कीर्तिमान स्थापित किए वे राक्षस प्रवृत्ति के अत्याचारी शासक कभी भी हमारे आदर्श या नायक नहीं हो सकते। हाँ, वे उन लोगों के राष्ट्र नायक या महापुरुष या प्रेरणा स्रोत हो सकते हैं जो उनकी सोच को आज भी किसी न किसी प्रकार अपनाए हुए हैं।
देश के जिन 704 स्थानों के नाम अभी भी मुगल बादशाहों के नाम पर हैं उन मुगल बादशाहों में बाबर, हुमायूं ,अकबर, जहांगीर ,शाहजहां और औरंगजेब के नाम उल्लेखनीय हैं। एक जानकारी के अनुसार अकेले अकबर के नाम पर देश में 251 गांवों के नाम हैं ।उत्तर प्रदेश में 396 गांवों के नाम मुगल बादशाहों के नामों पर मिलते हैं। इन नामों में अकबरपुर, औरंगाबाद ,हुमायूंपुर और बाबरपुर जैसे नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त अकबर निवास खाण्डरिका और दामोदरपुर शाहजहां भी एक ऐसा ही नाम है जो अभी तक बना हुआ है।
हमारे देश में अभी भी 70 अकबरपुर , 63 औरंगाबाद हैं ,जो देश के विभिन्न क्षेत्रों में मिलते हैं। सबसे प्रसिद्ध औरंगाबाद महाराष्ट्र में स्थित है। इस औरंगाबाद का नाम परिवर्तित कर हिंदू नाम दिए जाने की बात शिवसेना लंबे समय से करती चली आई है। पर आज जब उसकी सरकार महाराष्ट्र में काम कर रही है तो उसकी यह मांग अपने आप ही धर्मनिरपेक्षता की भेंट चढ़ गई है।
देश में बाबर के नाम पर 61, हुमायूं के नाम पर 11 ,अकबर के नाम पर 251 जहांगीर के नाम पर 141 ,शाहजहां के नाम पर 63 और औरंगजेब के नाम पर 177 गांव या शहर हैं । इनमें 392 उत्तर प्रदेश, 97 बिहार, 50 महाराष्ट्र, 38 हरियाणा, 9 आंध्र प्रदेश, 3 छत्तीसगढ़, 12 गुजरात, 4 जम्मू कश्मीर, 3 दिल्ली, 22 मध्य प्रदेश 27 पंजाब , 4 उड़ीसा, 9पश्चिम बंगाल, 13 उत्तराखंड और 20 राजस्थान में हैं।
केंद्र की कांग्रेस की सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते इतिहास के साथ न्याय नहीं कर पाईं और इतिहास की प्रदूषण को प्रदूषण मुक्त करने की योजना पर काम करने की दिशा में तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई। क्योंकि उसने एक नहीं बल्कि 5 मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों को भारत की शिक्षा नीति और इतिहास की गंगा को और भी अधिक प्रदूषित करने का मानो ठेका ही दे दिया था। जिस कारण वैदिक हिंदू इतिहास का सर्वनाश होता रहा और जो इस देश को लूटते रहे या यहां के लोगों को मारकाट करके समाप्त करते रहे, या उनका धर्मांतरण कर विनाश करते रहे, या उनकी महिलाओं के साथ अत्याचार करते रहे, उन अमानवीय और पाशविक शासकों को सम्मान दिया जाता रहा।
कांग्रेस की सरकारों के इस प्रकार के आचरण का प्रभाव यह हुआ कि आज का हमारा युवा अपने वैदिक हिंदू इतिहास से दूर हो गया है और वह यह मानने लगा है कि भारत पर तुर्कों ,मुगलों और अंग्रेजों के अनेकों उपकार हैं। यदि ये लोग भारत में नहीं आते तो भारत में विकास के नाम पर कुछ भी नहीं हो पाता। इसका अभिप्राय यह भी है कि यदि यहां के लोगों ने इन विदेशी जल्लाद आक्रमणकारियों के आक्रमणों का प्रतिकार किया तो वह भी गलती कर रहे थे । क्योंकि उन्हें इन जैसे प्रगतिशील धर्म के मानने वाले आक्रमणकारियों का स्वागत करना चाहिए था। यदि हमारे पूर्वज इस प्रकार स्वागत सत्कार करते तो इस देश का बहुत पहले कल्याण हो गया होता।
आज के युवा को ऐसी सोच से बाहर निकालने के लिए बहुत आवश्यक है कि अपने हिंदू वैदिक इतिहास को गौरवमयी ढंग से तथ्यात्मक आधार पर लिखा जाए और इतिहास के तथ्यों का महिमामंडन करने के लिए राजधानी में स्थित पुराने किले जैसे स्थलों पर वैदिक हिंदू इतिहास से संबंधित विशेष कार्यक्रमों का आयोजन समय समय पर होता रहना चाहिए। इतना ही नहीं पुराने किले के भीतर अपने वैदिक हिंदू इतिहास को संरक्षित और सुरक्षित करने के दृष्टिकोण से विशेष भवनों का निर्माण कराकर उन सब में वैदिक हिंदू इतिहास की झलकियां दिखाने का उचित प्रबंध किया जाए। वहां पर दीवारों पर चित्रांकन के माध्यम से अपने हिंदू वैदिक इतिहास को लिखा जाए। इसके अतिरिक्त सारा वैदिक हिंदू इतिहास फिल्म के माध्यम से आने वाले पर्यटकों को दिखाने की भी विशेष सुविधा हो।
आशा है कि आप इस दिशा में विशेष कदम उठाएंगे और अपने संबंधित मंत्रालयों को दिशा निर्देश देकर देश के कोटि-कोटि लोगों की अपेक्षाओं और आशाओं को पूर्ण करेंगे।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति

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