जीवन शैली एवं स्वास्थ्य सुधार के कुछ घरेलू नुस्खे

ज्ञानवती धाकड़
गतांक से आगे….
इसके लिए आवश्यक है कि हम अपनी दैनिक दिनचर्या में इस तरह के छोटे छोटे सहज होने वाले आयाम जोड़ लें, ताकि हम बिना बहुत अधिक समय लगाये हुए भी स्वस्थ, शांत खुश और संतुष्ट रह सकें। इसके लिए बहुत ज्यादा समय देने की या बहुत ज्यादा पैसा खर्च करने की या खाने में बहत अधिक परहेज करने की आवश्यकता नही है, आवश्यकता है तो सिर्फ अपने आपको स्वस्थ रखने की इच्छाशक्ति की, जिससे आप अपनी गृहस्थी की, नौकरी, व्यवसाय की एवं अनेकानेक जिम्मेदारियों को निभाते ुहुए भी स्वस्थ रह सकेंगे, इसके लिए हमको अपनी दैनिक दिनचर्या में कुछ छोटी छोटी बातें, आदतें एवं क्रियाएं शामिल करनी होगी, जैसे स्वस्थ जीवनशैली में सबसे पहले आवश्यक है कि आप हम अपने सोने एवं उठने का समय ठीक करें। हमें रात में जल्दी सोने की आदत डालनी चाहिए, ताकि सुबह ब्रह्म मूहर्त में ही उठ सकें। क्योंकि जल्दी बिस्तर छोडऩा स्वास्थ्य की पहली आवश्यकता है। उठने के बाद कुछ समय के लिए अपने इष्टदेव का मनन करें और बिस्तर छोड़ दें, जब दांत साफ कर लें तो उसके बाद मुंह में पानी भरकर हाथों में पानी ले लेकर कम से कम बीस-बीस बार दोनों आंखों पर पानी के छींटे मारें। यह क्रिया आंखों की नसों में गति प्रदान करती है, जो आंखों के लिए अत्यंत लाभकारी है।
दांत साफ करने के बाद मटके का पानी या संभव हो तो तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी (किसी किसी व्यक्ति को तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी नुकसान करता है अत: वह अपने शरीर की तासीर के अनुसार ही इसे उपयोग करें, दो चार दिन पीने से यह अनुभव हो जाएगा कि क्या ठीक है?) पीने के बाद थोड़ी देर घूमते रहें उसके बाद शौच के लिए जावें ताकि पेट पूरी तरीके से साफ हो सके। कुछ विशेषज्ञ बिना दांत साफ करे ही पानी पीने को ज्यादा अच्छा मानते हैं, इसे स्वयं की इच्छा के अनुसार अपनाया जा सकता है। फिर नहाते वक्त मुंह में पानी भरकर नहावें और नहाने के बाद उस पानी को मुंह से बाहर फेंक दें जिसे आप देखेंगे कि जो पानी आपने पिया था वह कितना चिकना होकर निकलता है, यह विधि यह साबित करती है कि इस छोटी सी विधि से भी शरीर की कितनी गंदगी बाहर निकलती है।
शौच एवं स्नान आदि से निवृत होकर घूमने जावें, अगर दूब उपलब्ध हो तो उस पर नंगे पांव घूमना अत्यंत लाभदायक होता है या फिर घर पर ही करीब एक घंटा साधारण आसन एवं प्राणायाम करें। इसके बाद थोड़ी देर के लिए इष्टदेव की पूजा करें, जो मानसिक शांति के लिए अत्यंत आवश्यक है। उसके बाद नाश्ते में मौसमी फल या अंकुरित अनाज आदि लें या दूध या आंवला बील का मुरब्बा, च्यवनप्राश आदि किसी योग्य वैद्य से पूछकर मौसम के अनुसार लें। खाने का एक निश्चित समय तय रखें। कोशिश करें कि हमेशा निश्चित किऐ गये समय पर ही खाना खावें। भोजन सात्विक एवं संतुलित होना चाहिए, जिनमें सभी तत्वों का समावेश होना चाहिए, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइडे्रट, खनिज पदार्थ, विटामिन्स, जल आदि की संतुलित मात्रा होनी चाहिए। संतुलित भोजन में समुचित कार्बोहाइडे्रट प्रोटीन एवं चिकनाई भी होनी चाहिए, समुचित पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, तथा विटामिन युक्त भोजन लें, भोजन में सोडियम की मात्रा कम रखें, कच्चे फल सब्जियों के सलाद का उपयोग ज्यादा करना चाहिए, शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता दें इसमें रेशेदार चीजों की मात्रा अधिक रखें। विपरीत प्रकृति के भोजन को एक साथ नही खावें, क्योंकि जिन खाद्य पदार्थों की प्रकृति आपस में मेल नही खाती है उनको एक साथ खाने से वह शरीर में जाकर आसानी से पचते नही है, बल्कि कभी कभी तो बीमारी के कारण भी बन जाते हैं जैसे दूध के साथ दही, नमक की वस्तुएं, खट्टी चीजें, खरबूजा आदि नही खानी चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने से न केवल भोजन स्वास्थ्यवर्धक होता है बल्कि यह संतुष्टिदायक भी होता है। भोजन को बहुत ज्यादा पकाकर उसके पोषक तत्वों को खत्म नही करना चाहिए, बल्कि आवश्यकतानुसार पकाकर खाना चाहिए। खाना खाते वक्त फालतू चिंताओं को दिमाग में नही आने दें, बल्कि शांत मन से खुशी से परिपूर्ण होकर खाने को ठीक से चबा चबाकर खावें। खाना खाने के कुछ समय पश्चात तक पानी नही पीना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नही कि किसी कारणवश तेज प्यास लगी हो, तब भी पानी नही पिया जाए, इससे तो उल्टा नुकसान भी हो सकता है, फिर भी यह ध्यान रखना चाहिए कि खाना खाने के बाद कम से कम एक घंटे तक पानी नही पीएंगे तो भोजन ठीक से पचेगा।
रात का खाना जहां तक हो सके सोने के दो घंटे पूर्व खा लेना चाहिए और यदि सूर्यास्त के पहले ही खा लिया जावे तो अति उत्तम रहेगा, रात्रि का भोजन हल्का होना चाहिए क्योंकि रात में पाचन क्रिय मंद पड़ जाती है।
शेष अगले अंक में
क्रमश:

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