नए साल का बहिष्कार और छह माह की सजा

*नए साल का बहिष्कार और छह महीने की सजा।*

देश में स्वराज्य की मांग जोर पकड रही थी। अंग्रेज भयभीत थे, इसलिए उन्होंने नया साल 1930 संयुक्त प्रांत की हर सामाजिक एवं धार्मिक संस्था से मनाने का आदेश जारी किया और साथ ही यह भी धमकी दी कि जो संस्था यह नया साल नहीं मनाएगी उसके सदस्यों को जेल भेज दिया जाएगा। गाजियाबाद में भी सभी संस्थाओं ने नया साल मनाने की तैयारी की, लेकिन आर्य समाज ने न केवल अंग्रेजों के नए साल का बहिष्कार किया, वरन आजादी की मांग करते हुए एक स्वतंत्रता ज्योति यात्रा भी निकाली। जिससे अंग्रेज चिढ़ गये और उन्होंने उसका दंड सभी आर्य समाजियों को छह-छह महीने की सख्त सजा और 50-50 रुपए जुर्माना लगाया।

उस समय आर्यसमाज गाजियाबाद के प्रधान थे किसानो के मसीहा, ईमानदार प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी। जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया। सजा स्वीकार कर ली पर गुलामी स्वीकार नहीं की।

हे आर्यसमाजीयों और गुरुकुल के स्नातक भाईयों थोड़ा विचार करो हम किधर जा रहें है? उन्होंने तो जेल स्वीकार की पर समझौता नही किया फिर हमें कौन सी बाध्यता है।
ध्यान रहे! गुलामी आचानक नही आती। ऐसे ही धीरे धीरे हम गुलाम होते हैं।

आज हम उनके त्याग को एक झटके में नीलाम करने के लिये तैयार हैं। हमको सूक्ष्मता से विचार करना चाहिए हमें किसे बढावा दे रहें हैं। जब नववर्ष है ही नही उसे नववर्ष बोलना, फिर देर रात बधाई देना आतीश बाजी, शराब, कदाचार अनाचार करना।
मैं मानता हूँ कई लोग ऐसे नही करते हैं। पर इस पर बधाई देना भी ऐसी चीजों को बढावा देना और आनुमोदन करने के समान है। ये नववर्ष है तो कोई हवन पूजा पाठ हुआ, हमारे नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुडी पाड़वा को हम कितने कुछ करते है। जागरुक बनें। अपने सभ्यता संस्कृति पर गर्व करे सेक्युलर न बनें। सेक्युलर मतलब नपुंसक हिजडा़।

*क्लैब्यं मास्म गमः पार्थ*

Comment: