झूठी तारीफ न करें

– डॉ. दीपक आचार्य

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अब इंसान अच्छे कामों की बजाय अपनी झूठी तारीफ से खुश होता है। कोई कितना ही अच्छा काम करने वाला हो, उसका कोई मूल्य नहीं है। आजकल इंसान अपनी ही अपनी तारीफ सुनना चाहता है, जो उसकी तारीफ करता है, प्रशस्तिगान करता है वह उसका हो जाता है, भले ही तारीफ करने वाला दुनिया का अव्वल दर्जे का नाकारा और नालायक ही क्यों न हो। फिर मांग और आपूर्ति का सिद्धान्त सदियों से अपना प्रभाव दिखाता रहा है।

जिस अनुपात में तारीफ सुनने वाले पैदा हो गए हैं उससे कई गुना ऎसे-ऎसे लोग जमाने भर में हैं जो और कुछ काम कर पाएं या नहीं, दूसरों की झूठी तारीफ करने में इतने माहिर हैं कि कई बार इनके लिए प्रयुक्त किए जाने वाले शब्द भी शरमा जाते हैं लेकिन न सुनने वालों को शरम आती है, न सुनाने वालों को।

जो आदमी जितना बड़ा हो जाता है उसे उतनी ही ज्यादा तारीफ सुनने की जरूरत पड़ती है, और उसी अनुपात में मिल जाते हैं दिन-रात तारीफ करने वाले। बड़े लोगों में तारीफ सुनने और करवाने की महामारी इस कदर हावी हो गई है कि उनके लिए दुनिया भर का ध्रुवीकरण हो चुका होता है। जो उनकी तारीफ करते रहें, झूठी वाहवाही करते रहें और जयगान, प्रशस्तिगान में रमे रहें, वे लोग उनके अपने आत्मीय हैं, जो ऎसा नहीं करें उन्हें ये लोग अपना नहीं मानते।

झूठी वाहवाही करने वाले लोगों की नस्लें भी कई प्रकार की हो गई हैं। कुछ गद्य में तो कुछ पद्य में तारीफ करते हैं, कविताओं, शेरों-शायरियों से लेकर गीत-ग़ज़लों तक तारीफ दर तारीफ का सफर पसरा हुआ है।  झूठी प्रशंसा करने वाले और कराने वाले दोनों में यह महामारी इतनी हावी रहती है कि कोई हारना नहीं चाहता।

परस्पर एक दूसरे को ऊँचा से ऊँचा दिखाने और साबित करने के फेर में बड़े कहे जाने वाले लोग हमेशा सातवें आसमान पर रहने लगते हैं और उससे नीचे न वे उतर सकते हैं, न समय के अलावा कोई उन्हें उतार सकता है। आज उनका समय है इसलिए आसमान पर हैं, जिस दिन समय बीत जाएगा, ये धड़ाम से नीचे जमीन पर आ गिरेंंगे और उनकी जगह दूसरे लोग सातवें आसमान पर होंगे। अपना यह सातवाँ आसमान है ही ऎसा कि कभी खाली नहीं रहता।

झूठी वाहवाही करने वाले इनके कद को देखने के लिए आसमान को ऊपर उठाने तक की बात कह डालते हैं।  ये झूठी तारीफ का ही कमाल है कि आदमी के पाँव जमीन पर नहीं पड़ते और वह आसमान के भ्रम में जीता रहता है। हालात ऎसे हो गए हैं कि हमारे चारों तरफ झूठी तारीफों के पुल बाँधने वालों का जमावड़ा है। खूब सारे लोग ऎसे हो गए हैं जो बड़े लोगों की अपनी पसंद कहे जाते हैं और ये बड़े लोग जहाँ भी होते हैं उनकी तारीफ करने वाले मंच संचालकों की गौरवमयी मौजूदगी भी वहीं होती है। जैसे कि पुराने जमाने में राजाओं की यात्राओं के वक्त किसम-किसम के नौकर-चाकर सारे ताम-जाम लिए साथ रहा करते थे।

अवसर कोई सा हो,  परस्पर जोश देने और दिलवाने का शगल आजकल परवान पर है।  कई बार तो हद हो जाती है जब श्वानों को ऎरावत की संज्ञा दे देकर बेचारे हाथियों की नस्ल का अपमान होने लगता है। किसी गधे को खच्चर कह डालें तब तो ठीक है लेकिन लोमड़ों को शेर और खरगोश को हिरन, गिद्ध को हँस और गधों को गाय-बैल कहने तक में ये संचालक हिचकते नहीं।

इन संचालकों को लगता है कि जैसे ये बड़े लोग ही हैं जो ईश्वर के अवतार हैं उनके लिए। हों भी क्यों न, इन प्रशस्तिगान करने वालों के हर सुख-दुःख में ये काम आते हैं, इनके कहने पर औरों के भी काम आ जाते हैंं। यही स्थिति आजकल कई गलियारों की है। कोई कैसा कुछ भी बोल डाले, सारे के सारे तालियां पीटने और वाह-वाह करने तक में लाज-शरम का अहसास नहीं करते। कोई बात समझ में आए, न आए मगर ये लोग तालियाँ पीटने और वाह-वाह करने के अपने परंपरागत हुनर का उपयोग करने में कभी नहीं चूकते।

यही कारण है कि आजकल बोलने वाले नॉन स्टॉप होकर बोलते चले जाते हैं और इसी भ्रम में जीते हैं कि उनके जैसा कोई वक्ता दुनिया भर में नहीं है।  हम लोगों में खरा-खरा सुनने और खरी-खरी कहने का साहस तक खत्म हो गया है और यही कारण है कि हम सभी लोग महात्मा गांधी के तीन बंदरों की तरह अपने आपको स्थापित करने में लगे हुए हैं।

जो लोग बिना सोचे-समझे, यथार्थहीन और झूठी तारीफ करते हैं उनकी वाणी एक समय बाद अपना माधुर्य तथा प्रभाव खो देती है। झूठी तारीफ करने वाले लोगों को नरकयातना भी झेलनी पड़ती है क्योंकि किसी के बारे में असत्य बात कहकर भ्रम फैलाना ईश्वर के दरबार में सबसे बड़ा गुनाह है।

हम झूठी तारीफ कर आकाओं के तलवे चाटने और सुख-समृद्धि का भोग करने में भले ही सफल हो जाएं, पर अपनी आत्मा और जगदीश्वर की निगाह में हम गिर जाते हैं।  झूठी तारीफ वे ही लोग करते हैं जो पराश्रित होकर औरों के टुकड़ों, दया और कृपा पर जिंदा रहने को ही जिंदगी का सबसे बड़ा सच और लक्ष्य मान बैठते हैं।

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