jau-300x199

आचार्य बालकृष्‍ण

भारतवर्ष में अति प्राचीन काल से जौ का प्रयोग किया जाता रहा है | हमारे ऋषि मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था | प्राचीन वैदिक काल तथा आयुर्वेदीय निघण्टुओं एवं संहिताओं में इसका वर्णन प्राप्त होता है | भावप्रकाश निघण्टुमें तीन प्रकार के भेदों का वर्णन प्राप्त होता है |
स्वाद एवं आकृति के दृष्टिकोण से जौ,गेहूँ से भिन्न दिखाई पड़ते हैं किन्तु यह गेहूँ की जाति का ही अन्न है | अगर गुण की दृष्टी से देखा जाए तो जौ गेहूं की अपेक्षा हल्का होता है | जौ को भूनकर,पीसकर उसका सत्तू बनता है | जौ में लैक्टिक एसिड,सैलिसिलिक एसिड,फॉस्फोरिक एसिड,पोटैशियम और कैल्शियम होता है |
जौ के विभिन्न औषधीय उपयोग –

१- एक लीटर पानी में एक कप जौ को उबालकर इस पानी को ठंडा करके छानकर पीने से शरीर की की सूजन ख़त्म हो जाती है |

२- जौ का सत्तू खाने या पीने से अधिक गर्मी में शरीर को ठंडक मिलती है |

३- जौ को बारीक पीस कर तिल के तेल में मिलाकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से लाभ होता है |

४- जौ का आटा ५० ग्राम और चने का आटा १० ग्राम मिलाकर रोटी बनाएं | इस आटे की रोटी से मधुहेह नियंत्रित हो जाता है |

५- उबले हुए जौ का पानी प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से शरीर में खून बढ़ता है | जौ का पानी गर्मियों में पीने से अधिक लाभ मिलता है |

Comment: