कविता – आदर्श जीवन राम का

आदर्श जीवन राम का

एक सन्देशा दे रहा आदर्श जीवन राम का ।
तन हमारा भी बने बस लोक के ही काम का।।
विपदा खड़ी जो सामने वह सनातन है नहीं ;
बुलबुले पानी में बनते शिकार होते नाश का।।

जीवन के संग्राम में सेना सजाओ धर्म की ।
जीत निश्चित पाओगे है बात यही मर्म की ।।
वशीभूत काम क्रोध के मद मोह व लोभ के ;
मत व्यर्थ जीवन को करो बात करो कर्म की ।।

विनाश जहाँ दिखता, वहाँ था कभी विकास भी ।
अंधकार जहाँ दीखता वहाँ था कभी प्रकाश भी।। विपदा के झंझावात से मत भाव निराशा के जगा ;
देख अपने राम को – काट दिया वनवास भी।।

‘भीलनी’ के बेर खाकर भाव को सम्मान दो ।
लगा लो ‘विभीषण’ को गले -मान दो वरदान दो।।
पर किसी रावण के आगे झुकना यहाँ अपराध है ; पापी और नीच का तो केवल शरसन्धान हो।।

जो लोग अपने मार्ग से भटके हुए हैं घूमते ।
हताश और निराश हो लोगों के कदम चूमते ।।
आदर्श जीवन राम का ह्रदय में अपने देख लें ;
जो अनेक कष्ट पाते हुए भी आनंद में हैं झूमते।।

राम मानवता की धरोहर राम विश्ववन्द्य हैं ।
राम के व्यक्तित्व से परास्त होते द्वन्द्व हैं ।।
अक्षय ऊर्जा का स्रोत है ज्योति अखंड ज्ञान की ; ‘राकेश’ नमन कर रहा राम ज्योतिर्मय सुखकंद है।।

डॉ राकेश कुमार आर्य
सम्पादक : उगता भारत

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