मानव शरीर विज्ञान से संबंधित महत्वपूर्ण लेख
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मानव शरीर में 79 अंग खोजे जा चुके हैं उनमें सबसे बड़ा अंग है चमड़ी| शरीर के अंदरूनी अंगों का यह सुरक्षा बैरियर शरीर के तापमान को नियंत्रित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण अंग है जो पूरी तरह वाटर प्रूफ है | हमारे शरीर के भार में 15% योगदान चमड़ी का होता है | चटाई की तरह इसे खोल कर बिछाए तो 20 वर्ग फिट का आकार घेर लेती है| चमड़ी का प्रत्येक वर्ग इंच 2 करोड़ स्किन सेल 650 पसीने की ग्रंथियों, 20 रक्त वाहिकाओं, 1000 संवेदी तंत्रिका से युक्त होता है जिनसे हमें ठंडा गर्म तापमान दाब दर्द का अनुभव होता है | 3 परतों से मिलकर हमारी चमड़ी बनी है सबसे ऊपरी परत एपिडर्मिस होती है |जो हमेशा नई से पुरानी पुरानी से नई होती रहती है सांप की केचुली की भांति | यही आंखों से हमें दिखाई देती है| प्रत्येक 28 दिन में यह पूरी तरह न्यू हो जाती है… प्रत्येक मिनट यह 41000 डैड त्वचा कोशिकाओं को छोड़ती रहती है| हमारी पूरे जीवन काल में यह लगभग 900 बार पूरी तरह नवीन होती है0.1mm से लेकर 1.6 mm इसकी मोटाई होती है| पैरों के तलवों की चमड़ी सर्वाधिक मोटी 1.4 एमएम होती है जबकि आंख को ढकने वाली चमड़ी 0. 2 एमएम सर्वाधिक पतली होती है| चमड़ी की दूसरी परत dermis कहलाती है… इसी में पसीने की ग्रंथियां बालों के फॉलिकल मौजूद रहते हैं….. आखरी परत हाइपोडर्मिस होती है इसमें फैट मॉलिक्यूल वह कुछ जरूरी प्रोटीन रहते हैं…. मानसिक तनाव अवसाद का चमड़ी पर बहुत ही संवेदनशील प्रभाव पड़ता है , चमड़ी के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार कॉलेजन प्रोटीन चिंता अवसाद के समय कम बनता है… यही कारण है चिंतित अवसादी इंसान समय से पहले ही बूढ़ा दिखाई देने लगता है……..|

योग प्राणायाम यज्ञ का हमारी चमड़ी पर बड़ा ही सुखद चमत्कारिक प्रभाव पड़ता है| सनातन वैदिक दर्शन में चमड़ी को अंग ही नहीं त्वचा इंद्री के रूप में स्वीकार किया गया है…. जिसे सुखद व दुखद स्पर्श की अनुभूति होती है… मन के स्वस्थ होने पर इन इंद्रियों का स्वास्थ्य निर्भर करता है साधना में त्वचा इंद्री बाधक नहीं साधक बन जाती है मन पर नियंत्रण होने से| यह सिद्धांत चिकित्सा विज्ञान डर्मेटोलॉजी में कॉर्टिसोल जैसे अवसादी हार्मोन कॉलेजन जैसी प्रोटीन के माध्यम से समझाया गया है….. अर्थात हमारे ऋषि-मुनियों का चिंतन विज्ञान विरोधी नहीं विज्ञान से कदम कदम पर पुष्ट होता है| विज्ञान की सीमा जहां खत्म होती है आस्तिक भारतीय दर्शन न्याय वैशेषिक की सीमा वहां से शुरू होती है| क्योंकि यह लेख हमने साइंटिफिक टेंपरामेंट के दृष्टिकोण से लिखा है तो बात चमड़ी की ही करते हैं हमारी चमड़ी 1000 तरीके के बैक्टीरिया की सुरक्षित पनाहगाह है…. पूरे विश्व में जितनी मनुष्य की आबादी है उससे दुगनी संख्या में जीवाणु हमारी चमड़ी पर मौजूद हमेशा मौजूद रहते हैं| इनमें अधिकतर मित्र बैक्टीरिया है जिनकी हमारी चमड़ी पर उपस्थिति हमारे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है| ईश्वर जैसे कुशल चर्मकार की अद्भुत रचना है हमारी चमड़ी|

वैचारिक क्रांतिकारी ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में आर्य समाज के संस्थापक, महान योगी महर्षि दयानंद सरस्वती ईश्वर पर विश्वास न करने वाले नास्तिकों को समझाते हुए कहते हैं—-

“देखो! शरीर में किस प्रकार की ज्ञान पूर्वक सृष्टि रची है कि जिसको विद्वान लोग देखकर आश्चर्य मानते हैं| भीतर हाड़ का जोड़ ,नाड़ियों का बंधन ,मांस का लेपन ,चमड़ी का ढक्कन प्लीहा यकृत फेफडा पंखा कला का स्थापन ,रुधिर शोधन प्रचालन, विद्युत का स्थापन ,जीव का संयोजन, शिरोरूप मूल रचन लोम नखादी का स्थापन ,आंख की अति सूक्ष्म शिरा का तारत्व ग्रंथन ,इंद्रियों के मार्ग का प्रकाशन, जीव के जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति अवस्था को भोगने के लिए स्थान विशेष का स्थापन ,सब धातु का विभाग करण ,कला कौशल स्थानआदि अद्भुत सृष्टि को बिना परमेश्वर के कौन कर सकता है”

कोई भी गंभीर चिंतन शील व्यक्ति इन तथ्यों पर विचार करने के पश्चात नास्तिकता का अविवेक युक्त झूठा दंभ नहीं भर सकता|

हमारी चमड़ी ईश्वर के बनाए चमत्कारी ब्रह्मांड में सबसे निकटतम चमत्कार है, जिसे संवारने के साथ-साथ समझना भी जरूरी है सौभाग्य से हो सकता है 1 दिन इसे समझते समझते इसके बनाने वाले को हम समझ जाएं 😊 |

आर्य सागर खारी✍

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