‘उगता भारत’ का संपादकीय : श्री कृष्ण जी के नाम पर ऐसी अश्लीलता क्यों ?

वर्तमान में भारतवर्ष में ‘हिंदू विनाश’ के गहरे षड्यंत्र में लगे हुए कुछ हाथों की यदि पहचान की जाए तो पता चलता है कि बॉलीवुड को मुगलिस्तान की सोच रखने वाले लोगों ने अपने कब्जे में ले लिया है , वहां पर लड़का कोई खान मिलता है तो उसके साथ हीरोइन हिंदू मिलती है । जबकि समाचार पत्र पत्रिकाओं और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कुछ ऐसे लोगों ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है जो सेकुलरिज्म के विनाशकारी वायरस को फैला कर हिंदुत्व के विनाश में लगे हुए हैं । यदि शिक्षा जगत की बात की जाए तो वहां पर पर्याप्त सुधारों के उपरांत भी ईसाई मानसिकता के लोगों का वर्चस्व है । भाषा के नाम पर संस्कृत को मृत भाषा घोषित कर दिया गया है , जबकि हिंदी में बोलना ‘अपराध’ माना जाता है । ऐसी मानसिकता के चलते हिंदी को खिचड़ी भाषा बनाकर उर्दू का वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। हिंदू देवी देवताओं की आपत्तिजनक तस्वीरें बना – बनाकर प्रस्तुत की जाती हैं और फिर इस षड्यंत्र में लगेवलोगों के हाथ एक साथ उठते हैं , जो यह शोर मचाते हैं कि यह ‘भाषण और अभिव्यक्ति’ की स्वतंत्रता है, जो कि धर्मनिरपेक्ष भारत की पहचान है । इसे संविधान के नाम पर जारी रखने की अनुमति दी जाए । परंतु जब कोई कलाकार, लेखक या कवि ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के नाम पर किसी अल्पसंख्यक के धर्म ग्रंथ या महापुरुष पर किसी प्रकार की छींटाकशी करता है तो आसमान फट जाता है । तब बिना किसी से पूछे फटाफट ‘बेंगलुरु’ दोहरा दिया जाता है। तब ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ की दुहाई देने वाले या तो बिलों में घुस जाते हैं या फिर इसे ‘असहिष्णुता’ कहकर हिंदू समाज को बदनाम किया जाता है।
आज बेंगलुरु में श्रीकृष्ण पर की गई विवादित टिप्पणी के कारण दंगों की आग में झुलस रहा है। इस संदर्भ में हमें यह भी याद रखना चाहिए कि कभी असम में कांग्रेस के कार्यकाल में एक मुस्लिम पेंटर अकरम हुसैन ने श्रीकृष्ण की आपत्तिजनक पेंटिंग बनाई थी। तब कांग्रेस या किसी भी सेकुलरलिस्ट पार्टी को यह ध्यान नहीं रहा कि संविधान सभी मजहबों के महापुरुषों का सम्मान करने की अनिवार्यता हम पर लागू करता है । धर्मनिरपेक्षता के पक्षाघात से पीड़ित ये सारे सेकुलरलिस्ट उस समय बिलों में घुस गए थे और उसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी। कांग्रेस की सरकारों के जुबान पर उस समय काले पड़ गए थे फलस्वरूप हिंदू समाज के देवी देवताओं को अपमानित करने वाले ऐसे कलाकार बड़ी सहजता से खुले बाजार में घूमते रहे ।

यदि उस समय ऐसे कलाकार को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया जाता तो निश्चय ही फिर ऐसे कुकृत्य करने की हिम्मत किसी की नहीं होती। वास्तव में सेकुलरिज्म इस देश की हिंदू संस्कृति के विनाश का एक ऐसा (अ)संविधानिक प्रमाणपत्र है जिसे लेकर कोई भी सेकुलरलिस्ट पार्टी हिंदू विनाश को अपना लक्ष्य बना लेती है । हमें याद रखना चाहिए कि जब एम एफ हुसैन ने हिन्दुओं के देवी-देवताओं की ऐसी ही अश्लील पेंटिंग्स बनाई थी तो उसको राष्ट्रीय पुरस्कार देकर सेकुलरिस्ट पार्टियों ने हिंदू समाज को ऐसा आभास कराने का प्रयास किया था कि वह शांत रहे अन्यथा उसके विरुद्ध हम ऐसे ही कार्य निरंतर करते रहेंगे।
2015 में असम के उपरोक्त कलाकार ने जब श्री कृष्ण जी की अश्लील पेंटिंग बनाई थी तो उसमें योगिराज श्री कृष्ण जी को बीयर बार में खड़ा दिखाया गया है। आनंद की अनुभूति कराने वाले सोमरस को पीने वाले भारतीय महापुरुष ओ३म नाम के रस को पीने के अभ्यासी रहे हैं । इसी आत्मरस की बात श्री कृष्ण जी ने गीता में की है , परंतु उपरोक्त मुस्लिम कलाकार ने जानबूझकर श्रीकृष्ण जी को बीयर बार में खड़ा दिखाया था । संदेश देने का प्रयास किया गया कि सोमरस कुछ और नहीं बल्कि शराब की बोतल ही हुआ करती थी और शराब की बोतलें रखने पीने वाला व्यक्ति कैसा हो सकता है ? – उसको श्री कृष्ण के रूप में दिखाने का प्रयास किया गया। यही कारण है कि उपरोक्त अश्लील पेंटिंग में पीछे वाली रैक पर शराब की कई बोतलें रखी हुई हैं। साथ ही 7 युवतियों को अश्लील अवस्था में उनके आस-पास और उनसे लिपटे हुए दिखाया गया है। ये सभी युवतियाँ बिकनी पहने हुए हैं। इनमें से एक जहाँ उनका चुम्बन ले रही है, वहीं दूसरी उनका पाँव पकड़ कर बैठी हुई है।
जब अप्रैल 2015 में गुवाहाटी स्थित स्टेट आर्ट गैलरी में श्री कृष्ण जी की उपरोक्त अश्लील पेंटिंग को प्रदर्शित किया गया था तो उस समय उसका भारी विरोध हुआ था । विरोध के फलस्वरूप मुस्लिम पेंटर ने अपनी उपरोक्त पेंटिंग को वहां से हटा लिया था।
भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों की अंतरराष्ट्रीय संस्था इस्कॉन ने भी इस पेंटिंग पर आपत्ति जताते हुए अपना क्षोभ व्यक्त किया है । इस संस्था ने असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनवाल से अकरम हुसैन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की माँग की है। संस्था ने इस पेंटिंग को ऑफेंसिव करार देते हुए कहा कि सरकार को पेंटर के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

वैसे वास्तव में हमारे हिंदू देवी देवताओं की इस प्रकार की फजीहत कराने में हिंदू समाज की स्वयं की निष्क्रियता , निकम्मापन और पाखंडी परंपरा भी बहुत अधिक जिम्मेदार है । श्री कृष्ण जी जैसे ब्रह्मचर्य के साधक और महत्वपूर्ण योगी महापुरुष को गोपिकाओं में रासलीला करते हुए दिखा कर हमारे मूर्ख और पाखंडी लोगों ने भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है । वेद की 16 हजार ऋचाएं इस महापुरुष को कंठस्थ थीं । जिनमें वह चौबीसों घंटे रमण करते थे अर्थात वेद के मंत्रों का पाठ 24 घंटे उनके अंतः करण में चलता रहता था। वेद के मंत्रों को गोप भी कहते हैं । कवि ने गोप का अर्थात वेद के मंत्रों का चित्रण कुछ इस प्रकार किया कि वह अपनी बारी आने के लिए ऐसे तरसती थीं । श्री कृष्ण जी के आदर्श जीवन चरित्र से जुड़े इस गहरे रहस्य का सही अर्थ न लगाकर गोपिका का अर्थ प्रेमिका करके इस महापुरुष के तेजस्वी चरित्र पर दाग लगाने का अपराध स्वयं हमने किया है आज भी उन्हें गोपि काओं के साथ रासलीला करते हुए तो दिखाया जाता है पर कभी उन्हें युद्ध की बात करते हुए और दुष्टों का संहार करते हुए नहीं देखा जाता । जबकि दुष्ट और पापियों का संहार और भारतीय संस्कृति के आदर्श मूल्यों की रक्षा करने में ही इस महामानव का जीवन व्यतीत हुआ था। जब आर्य समाज अपनी इस प्रकार की शुद्ध अवधारणा को प्रस्तुत करता है तो पाखंडी और भी अधिक मजबूती के साथ मैदान में उतरकर योगीराज के आदर्श चरित्र का सत्यानाश करने की योजनाएं बनाते हुए दिखाई देते हैं।
आर्य हिंदू समाज के महापुरुष आदर्श चरित्र नायक श्री कृष्ण जी के विषय में यदि आज की ऐसी अश्लील पेंटिंग्स आ रही हैं या उनके नाम पर आज भी कहीं अश्लीलता परोसी जा रही है तो प्रधानमंत्री श्री मोदी को इस पर अवश्य ही संज्ञान लेना चाहिए । इसके अतिरिक्त उन्हें यह भी करना चाहिए कि श्रीकृष्ण जी के आदर्श जीवन चरित्र से जुड़ी घटनाओं को स्कूलों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित कराया जाए । श्री कृष्ण जी का वैदिक यौद्धेय स्वरूप और उनका यौगिक उपदेश विद्यालयों में बच्चों को कंठस्थ कराया जाए। जिससे इस महापुरुष का सही स्वरूप हम समझ सकें और संसार के समक्ष उन्हें एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत कर सकें।

राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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