अमर सिंह के बारे में कुछ पुरानी यादें

अमर सिंह के बारे में कुछ पुरानी यादें

सीताराम अग्रवाल : राज्यसभा सांसद अमर सिंह अब हमारे बीच नहीं हैं। लम्बी बीमारी के बाद आज (1 अगस्त 2020) सिंगापुर के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। किसी जमाने में मुलायम सिंह यादव के बाद सपा में सबसे कद्दावर नेता, महानायक अमिताभ बच्चन को गर्दिश के दिनों में मदद करनेवाले तथा जयाप्रदा व जया बच्चन जैसी उच्च कोटि की अभिनेत्रियों को राजनीति में लाकर संसद तक पहुंचाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले अमर सिंह ने यह मुकाम कितना संघर्ष करके तथा कितनी विषम परिस्थितियों से गुजरने के बाद पाया है, इसकी छोटी सी झलकी दिखाता हूं।

ये बातें 1975 के बाद के कुछ वर्षों की हैं। मैं उन दिनों दैनिक सन्मार्ग में कार्यरत था। कोलकाता के बड़ाबाजार में अमर सिंह के पिताजी की ताले की दुकान थी। लेकिन इनका मन दुकान में नही लगता था। ये कांग्रेस के छोटे- मोटे जुलूसों में जाया करते थेएवं इस बारे में प्रेस विज्ञप्तियां लेकर सन्मार्ग में आया करते थे। ये उस छापने के लिये अनुनय-विनय किया करते थे। उस समय समाचार सम्पादक श्रद्धेय तारकेश्वर पाठक (अब स्वर्गीय ) हुआ करते थे। उनकी मेज के सामने कई बार अमर सिंह को अपनी बारी आने के इंतजार में खड़े होते देखा है। कभी-कभी जब पाठक जी की तबियत खराब होती थी, तो वे घर से ही एक चिट भेज कर मुझे स्थानीय विज्ञप्तियों को देख लेने का आदेश दे देते थे। ऐसी स्थिति में कई बार अमर सिंह अपनी विज्ञप्तियां लेकर मेरे पास आते थे। इसके बाद रमाकान्त उपाध्याय (अब स्वर्गीय ) समाचार सम्पादक हुये। वे पान बहुत खाते थे। उनकी एक आदत थी कि जिन विज्ञप्तियों को उन्हें छापना नहीँ होता था, वे कभी-कभी लाने वाले के सामने ही उससे मुंह पोंछकर उसे कूड़ेदान में फेंक देते थे। अमर सिंह भी कईं बार उपाध्यायजी की इस आदत के शिकार हो चुके थे। श्री सिंह सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे। उसके समाचार भी लाया करते थे। इनके साथ श्याम सुन्दर पोद्दार भी आया करते थे। दोनों में प्रगाढ़ दोस्ती थी। बाद में जब अमर सिंह दिल्ली में ही अधिकतर रहने लगे, तब भी श्री पोद्दार का सन्मार्ग में आना बदस्तूर जारी रहा, क्योंकि ये हमेशा लेख वगैरह लिखा करते हैं। जब अमर सिंह का दिल्ली प्रवास हो गया तो मेरा सम्पर्क प्राय: टूट गया। सन् 2002 में जब मेरी सुपुत्री का विवाह हुआ तो मैंने उन्हें सौजन्यतावश विवाह का निमंत्रण कार्ड दिल्ली भेज दिया था। सच पूछिये तो मुझे प्रत्युत्तर की आशा नहीं थी। पर मैं गलत था। उन्होंने दिल्ली से फोन कर न सिर्फ अपना आशीर्वाद दिया, बल्कि विवाह में शामिल न हो पाने की असमर्थता के लिए माफी भी मांगी। मैं बता दूं कि अमर सिंह मुझसे उम्र में छोटे हैं और हमेशा सम्मान दिया। हालांकि दम्भी लोगों के साथ वे ठाकुर (राजपूत) का रौद्र रूप दिखाने से भी नहीं चूकते थे। कभी आर्थिक तंगी (व्यक्तिगत तौर पर) के शिकार रहे अमर सिंह पर जब लक्ष्मी की कृपा हुई तो देश-विदेश में खुले दिल से करोड़ों का दान दिया। उतार- चढ़ाव के दौर से गुजरी यह शख्सियत अब हमारे बीच नहीं रही। एक अभाव सा खलता है। मैं उन्हे नमन करते हुए अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं । भगवान उनकीं आत्मा को शांति प्रदान करे एव॔ परिवार को धैर्य धारण करने की शक्ति दे।
-वरिष्ठ पत्रकार

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