दुश्मन की धरती इतनी तपा दो कि उसे अपनी ही धरती पर पांव रखने में रूह फना हो जाए

 

डा. अरविन्द कुमार सिंह

आज यदि ये लेख मैं ना लिखता तो अपने प्रति, अपने जमीर के प्रति और देश के प्रति बहुत बडी नाइंसाफी करता। चीन के विश्वासघात में शहीद हुए अपने बीस जवानो ( एक कमांडिंग आफिसर सहित ) को सैल्यूट करता हूॅ। सैल्यूट है उनके अदम्य साहस को और सैल्यूट है उनके देश के लिए दिए गए बलिदान को। देश आज एक संक्रमण काल से गुजर रहा है।देश के अन्दर कोरोना,वाह्यय सीमाओं पर चीन, पाकिस्तान और नेपाल सबसे बडी चुनौति देश के अन्दर छिपे हुए गद्दार। शुरूआत कहाॅ से करें और कैसे करें। यही आज का सबसे बडा यक्ष प्रश्न है। व्यक्तिगत शांति के लिएसत्य और अहिंसा, महात्मा बुद्ध, महावीर और गाॅधी की आवश्यकता है। पर सामूहिक शांति के लिए ताकत की आवश्यकता है। अगर संर्पूण दुनिया बुद्ध के मार्ग पर हो जाए तो ताकत की बात बेमानी हैं क्योंकि यह व्यक्तिगत परिर्वतन होगा। जो चीन अपने ही देशवासियों की बातचीत नहीं सुनता, उनपर टैंक चढा देता है। हम उससे बातचीत कर रहे है। शांति का रास्ता तलाश रहे हैं। ऐसे लोग सिर्फ ताकत की भाषा समझते है। जिस राष्ट्र ने अंग्रेजो को, मुगलों को इस देश से खदेडकर भगाया। वो बातचीत से शांति का रास्ता तलाश रहा है। क्या अंग्रेजो ने या मुगलों ने शांति की भाषा समझी? पाकिस्तान ने सत्तर सालो में शांति की भाषा समझी? जिस राष्ट्र ने 1971 में पूर्वी पाकिस्तान की कहानी 72 घंटे मे समेट दिया। 90 हजार सैनिकों को घुटने टिकवा दिया। जिस राष्ट्र ने 1965 मे अपनी ताकत का प्रर्दशन करते हुए लाहौर में अपनी सेना खडी कर दी। यकिनन वो राष्ट्र भारत है। और हमें उसपे गर्व हैं। कहते है प्रभु श्रीराम समुद्र से रास्ते की विनती कर रहे थे। समुद्र अपनी विशालता पर इठला रहा था। वो प्रभु श्रीराम का निवेदन उनकी कमजोरी से जोडकर देख रहा था। तीन दिन का समय बीत गया। तब तुलसी लिखते है मानस में – विनय ना मानत जलधि जड, गयऊ तीन दिन बीत । बोले राम सकोप तब, भय बीन होत ना प्रीत ।। कहते है तुलसी – जब जड बुद्धि समुद्र ने उनके सारे निवेदन को ठुकरा दिया। तब श्री राम ने कहा – हे समुद्र, तू अपनी जिस विशालता पर इठला रहा है। मैं अपने तरकस के एक बाण से तेरे सारे पानी को सुखा देने की क्षमता ही नहीं रखता वरन यदि रास्ता नहीं दिया तो करके भी दिखा दूॅगा। बाकि का इतिहास श्रीराम की श्री लंका विजय के रूप में देखा जा सकता हैं। वो तो तीन दिन की बात थी, आज सत्तर साल हो गए। दुनिया में ऐसा कोई खेल नहीं है। जिसमें आप रक्षात्मक खेल, खेलकर मैच जीत जाए। रक्षात्मक खेल या तो मैंच ड्रा करायेगा या फिर मैंच हरायेगा। जीत तो आप बिल्कुल नहीं सकते। अपने देश को भी इस बात को समझ लेना चाहिए। दुनिया का सबसे बडा खौफ अपनी मौत होती है। जिस दिन आप इस खौफ के दायरे से निकल जाते हैं, दुनिया आप से डरती हैं। भारत दुश्मन की जमीन पर पहले कभी नहीं जाता। भारत एक शांतिप्रिय देश है। इस आत्मघाती, आत्मविमुग्द्धता वाक्य से, सोच से भारत को अब बाहर आना चाहिए। जहाॅ तक हमें लगता है, हमारी जमीन है, वहाॅ जाकर अपना टेंट गाडिए और पूरी दिलेरी से दुश्मन को बताइए ये हमारी जमीन है। अतिक्रमण करोगे, तो जबाब गोलियों से देगें। हम अपनी मातृभूमि के लिए बातचीत नहीं किया करते हंै। दुस्साहस किया तो , तुम्हारी धरती इतनी तपा देंगे कि उस धरती पर पाॅव रखने में तुम्हारी रूह फना हो जायेगी। ऐसा नहीं कि दुनिया में इसका उदाहरण नहीं। इसराल मुस्लिम देशों से घिरा एक मात्र यहूदी देश है। मुस्लिम देशों ने उसका जीना हराम कर दिया था। उसकी स्थिति दाॅत के बीच जीभ की तरह थी। उसने डरने की निति छोडी और तय किया, इन्हे जहाॅतक दौडाकर मारेगें, वहा तक की जमीन और सरहद हमारी। पानी पिला दिया मुस्लिम राष्ट्रो को। आज वो सर उठाकर जी रहा है। एक फिलिस्तीनी ने एक यूहीदी को मारा था। इसराइल ने चार सौ फिलिस्तीनीयों को गन प्वाइंट पर बेबीलोन की पहाडियों पर बीठा दिया जहाॅ तापमान जीरो डिग्री से नीचे था। और कहा – यही ठण्ढ से मर जाओं, नीचे का रूख किया तो बुलेट उतार देगें खोपडी में। एक का हिसाब चार सौ से पूरा किया। सबसे पहले आवश्यकता है, चीन को आर्थिक रूप से तोडने की। यह बात उसकी खोपडी में उतारने की है कि बार्डर पर अशांति और अन्दर आर्थिक साम्राज्य का विस्तार ये नहीं चलेगा। और हम सबकों चीनी सामग्रियों के बहिष्कार की अलख जगानी होगी देश में। पूरी दुनिया में पाकिस्तान की तरह उसे अलग थलग करने की आवश्यकता है। वैसे भी वो अलग थलग हो चुका है। बस थोडा धक्का और देने की जरूरत है। देश के अन्दर चीन से सहानुभूति रखने वाले गद्दारों को क्वारटाईन करने की आवश्यकता है। पूर्ण रूपेण उनके हौसले को तोडा जाय। लोकतंत्र की आड में देश विरोधी उनकी उडान ज्यादा ना हो अतः उनके पंख कतरने की जरूरत हैं। पूरी ताकत लगाकर सीमावर्ती क्षेत्रों में सडकों के जाल बिछाने की आवश्यकता है। जिससे कम से कम समय में वहाॅ आयुद्ध सामग्रियाॅ पहुॅचायी जा सकें। तुम सोचोगे, हम कार्यवाही कर देंगे की नीति का पालन करते हुए सेना को अपने हाथ और दिमाग खोलकर रखने चाहिए। हमें वर्तमान में अपनी सेना और प्रधानमंत्री पर पूर्ण भरोसा है, इन जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जायेगी। अगर मैं समझनें मे गलती नहीं कर रहा हूॅ तो इस घटना का जबाब चीन को अवश्य मिलेगा। जो लम्बे समय तक याद रहेगा। मैं इतनी बात कहकर, अपनी बात समाप्त करूगा। देश ने अवसर दिया और आवाज दी तो मैं देश की सीमा की सुरक्षा के लिए अग्रीम कतार में होना पसंद करूगा। जिउ तो देश के लिए, मरू तो देश के लिए। जयहिन्द – वन्देमातरम – भारत माता की जय

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