मुस्लिम शासक भारत के लिए धब्बा या गौरव , भाग – 2

जावेद अख्तर सुनो ! सावरकर की वाणी

जिस समय बीबीसी ने अपना उपरोक्त समीक्षात्मक परन्तु भ्रमात्मक लेख प्रकाशित किया था उसी समय इन विवादों के बीच फ़िल्मकार और गीतकार जावेद अख़्तर ने कई ट्वीट किए थे । उनके ट्वीट की जानकारी देते हुए बीबीसी ने ही लिखा था कि जावेद अख़्तर ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए पूछा है कि उसके पास मुग़लों से जुड़ी जो जानकारियां हैं वो कहाँ से आती हैं ? उन्होंने लिखा है कि ज्ञान, बुद्धि और शालीनता की सीमा हो सकती है पर किसी चीज़ की उपेक्षा करना तो बेवक़ूफ़ी है और अभी ऐसा ही हो रहा है ?

हमारी दृष्टि में जावेद अख्तर के इस प्रश्न का उत्तर यही है कि डॉक्टर विंसेंट स्मिथ और बदायूँनी जैसे लेखकों को समझकर अकबर का ‘सच’ अब न केवल भारत अपितु सारे संसार की समझ में आने लगा है। उसके हृदय में हिंदुओं के प्रति वैसी ही घृणा का भाव था जैसा भाव अन्य मुस्लिम शासकों के भीतर मिलता है।
दूसरे , जावेद साहब को यह भी समझना चाहिए था कि पराधीनता चाहे कैसी भी हो , उसका विरोध होना चाहिए । ऐसे विरोध को करने का अधिकार प्रत्येक समाज और प्रत्येक राष्ट्र के पास सुरक्षित रहता है। यह एक सर्वमान्य सत्य है कि अकबर और उसके पूर्वज सभी विदेशी थे ।जिन्होंने यहाँ पर आकर जबरन अपना राज्य स्थापित किया और लोगों पर अत्याचार किए । उन अत्याचारों का सही निरूपण करना और ऐसे अत्याचारी शासकों का विरोध करना आज इतिहासकार का धर्म है तो उस समय अत्याचारों को झेल रहे हमारे तत्कालीन पूर्वजों का धर्म था । जिसे उन्होंने बहुत उत्तमता से निर्वाह किया था । यदि उन्होंने अपने धर्म का समय उत्तमता से निर्वाह किया तो उस उत्तमता को इतिहास में उत्तम स्थान देना हमारा राष्ट्रीय दायित्व है । अतः अकबर कभी भी महान नहीं कहा जा सकता । क्योंकि उसका विरोध करने के लिए उसके सामने महाराणा प्रताप हमारे इतिहासनायक के रूप में उपलब्ध हैं । ऐसा कभी नहीं हो सकता कि अत्याचारी भी महान हो और अत्याचारी का विरोध करने वाला भी महान हो । दोनों में से कोई एक ही महान हो सकता है । निश्चित रूप से जो राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग हैं उनके लिए महाराणा प्रताप ही महान हैं और जो दोगली मानसिकता के लोग हैं या भारत के सम्मान के साथ धोखा करने वाले लोग हैं उनके लिए अकबर महान हो सकता है।
जावेद अख़्तर ने आगे लिखा , ”संगीत सोम द्वारा इतिहास की उपेक्षा हैरान करने वाला है। क्या उन्हें कोई छठी क्लास के स्तर के इतिहास की किताब देगा ? सर थॉमस रो जहांगीर के वक़्त में आए थे ? उन्होंने लिखा है कि हम भारतीयों का जीवन स्तर औसत अंग्रेज़ों से अच्छा था।”
इस पर भी जावेद अख्तर साहब को समझना चाहिए था कि भारत ज्ञान में , धन में और सांस्कृतिक समृद्धि में अर्थात प्रत्येक क्षेत्र में अंग्रेजों से ही नहीं मुगलों से भी श्रेष्ठ था । उस समय तक मुगलों से पूर्व के तुर्कों द्वारा मचाई गई भरपूर लूट के उपरान्त भी भारत की आर्थिक समृद्धि समाप्त नहीं हुई थी। यही स्थिति मुगलों के समय में भी बनी रही । अपनी आर्थिक समृद्धि के कारण ही लोग अपना जीवन व्यापार चलाते रहे और समय-समय पर विदेशी शासकों का विरोध करने के लिए अपने लोगों की आर्थिक सहायता भी करते रहे । साथ ही यदि अवसर मिला तो बड़ी-बड़ी सेनाएं एकत्र कर विदेशी शासकों का क्रांतिकारी विरोध भी किया । इतिहास के उस सच को छुपा देना सचमुच भारत के लिए दुख का विषय है। जब जावेद अख्तर ‘उपेक्षा’ शब्द का प्रयोग करते हैं तो उनसे यह भी अपेक्षा की जाती है कि इतिहास के इस सच की वह भी ‘उपेक्षा’ न करें।
जब भारत के ‘सच’ की की गई ‘उपेक्षा’ उनकी समझ में आ जाएगी तो मुगलों या उनके अपने चहेते अकबर की ‘उपेक्षा’ होना कितना स्वाभाविक है ?- यह भी उनकी समझ में आ जाएगा।
जावेद अख़्तर ने अगले ट्वीट में लिखा , ”मेरे लिए हैरान करने वाली बात यह है कि जो अकबर से नफ़रत करते हैं, उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी के रॉबर्ट क्लाइव से समस्या नहीं है। जो जहांगीर से नफ़रत करते हैं उन्हें वॉरेन हेस्टिंग से दिक़्क़त नहीं है जबकि वो वास्तविक लुटेरे थे।”
इस पर भी जावेद अख्तर साहब को भ्रान्ति रही। वास्तव में भारतवर्ष में राष्ट्रवादी चिंतन के लोग जितनी अकबर से घृणा करते हैं उतनी ही लॉर्ड क्लाइव से घृणा करते हैं और जितनी जहांगीर से घृणा करते हैं उतनी ही वारेन हेस्टिंग से भी करते हैं । भारत के इतिहास में यह सारे ही लुटेरे थे । उन्होंने भारत के सम्मान को लूटा और सबसे बड़ी लूट किसी देश , समाज और राष्ट्र के सम्मान की लूट ही होती है । यदि अकबर और जहांगीर वास्तव में मानवीय दृष्टिकोण रखने वाले शासक थे तो उन्हें भारतीय समाज की परंपराओं का ध्यान रखते हुए और भारत के वेदों , उपनिषदों , गीता आदि का सम्मान करने वाली राजाज्ञा जारी करनी चाहिए थीं । इसके अतिरिक्त भारत में आकर भारत से ही सीखकर भारत को भारत की आत्मा के अनुसार चलाने का प्रयास करते ना कि शरीयत के अनुसार जजिया लगाकर।
जावेद अख्तर जैसे लोगों को यह पता होना चाहिए कि हमारे वेद शास्त्र और रामायण आदि ग्रंथ हमें प्रारंभ से ही स्वतंत्रता प्रेमी और लोकतंत्र प्रिय बनाकर रखने में सफल रहे हैं । इनमें दिए हुए विचारों से प्रेरित होकर हमने कभी किसी भी विदेशी को अपना शासक स्वीकार नहीं किया । वीर सावरकर जी ने रामायण की ऐसी ही विशेषता से प्रेरित होकर लिखा है – ”अगर मैं देश का डिक्टेटर होता तो सबसे पहला काम यह करता कि महर्षि बाल्मीकि रामायण को जब्त करता । जब तक यह ग्रंथ भारतवासी हिंदुओं के हाथों में रहेगा तब तक न तो हिंदू किसी दूसरे ईश्वर या सम्राट के सामने सर झुका सकते हैं और न उनकी नस्ल का ही अंत हो सकता है ।

अंततः क्या है रामायण में ऐसा कि वह गंगा की भांति भारतवासियों के अंतः करण में आज तक बहती ही आ रही है ? – मेरी सम्मति में रामायण लोकतंत्र का आदी शास्त्र है , ऐसा शास्त्र जो लोकतंत्र की कहानी ही नहीं लोकतंत्र का प्रहरी , प्रेरक और निर्माता भी है । इसीलिए तो मैं कहता हूं कि अगर मैं इस देश का डिक्टेटर होता तो सबसे पहले रामायण पर प्रतिबंध लगाता ।
जब तक रामायण यहां है तब तक इस देश में कोई भी डिक्टेटर पनप नहीं सकता । रामायण की शक्ति कौन कहे ? क्या काही नजर आता है ऐसा सम्राट ? साम्राज्य , अवतार या पैगंबर जो राम की तुलना में ठहर सके । सबके खंडहर आर्त्तनाद कर रहे हैं , किंतु रामायण का राजा , उसका धर्म , उसके द्वारा स्थापित रामराज्य , भारतवासियों के मानस में आज तक भी ज्यों का त्यों जीवंत है ? चक्रवर्ती राज्य को त्याग वल्कल वेश में भी प्रसन्न वदन , राजपुत्र किंतु वनवासी शबरी के बेर , अहिल्या का उद्धार कर लंका जीती । मगर फूल की तरह उसे विभीषण को अर्पण कर दिया । जिसने अपने भाई का विरोध कर प्रजातंत्र का ध्वज फहराया था । ऐसे थे रामायण के राम । जिनकी जीवन गाथा रामायण में अजर अमर है। इस देश को मिटाने के लिए बड़ी बड़ी ताकतें आयीं । मुगल , शक , हूण आये , किन्तु इसे वे मिटा ना सके। कैसे मिटाते ? – पहले उन्हें रामायण को मिटाना चाहिए था । “( विनायक दामोदर सावरकर : पृष्ठ 22 )
जावेद अख्तर जैसे लोगों को यह पता होना चाहिए कि हमारी मौलिक चेतना सदैव वेदों और रामायण जैसे ग्रंथों से चेतनित रही। यही संस्कृति बोध ब। हमें आज भी अकबर को विदेशी आक्रमणकारी और महाराणा प्रताप को महान हिंदू योद्धा कहने के लिए प्रेरित करता है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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