धर्म निरपेक्षता और धार्मिक स्वतंत्रता का चीर हरण आखिर कबतक ??

प्रभाकर चौबे राष्ट्रीयअध्यक्ष सनातन धर्म उत्थान समिति!
सनातनधर्म की व्याख्याकार आर.एस.एस.,आर्यसमाजी, भाजपा ,काँग्रेस , कोई राजनीतिक दल या न्यायपालिका नहीं हो सकते .जिसने सभी सनातनधर्म शास्त्रों का अध्ययन किया हो .वेद ,उपनिषद,शास्त्रों ,स्मृतियों के साथ पुराणों का भी अध्ययन किया हो तपस्वी ,संन्यासी और वीतराग योगी हो .गुरू शिष्य परंपरा से आश्रम मे शिक्षित हो तथा ब्राह्मण हो वही सही व्याख्याकार हो सकता है.या फिर जो तत्व द्रष्टा हो तथा जिसके गुरू स्वयं भगवान बन गये हों वही कर सकता है.सनातनधर्म एक गुढ़ विषय है भगवान को जानने जितना ही कठिन है.राग द्वेष युक्त मनुष्य इसकी व्याख्या नहीं कर सकता .कोई भी कविता ,कथा ,साहित्यिक रचना का जहाँ तहाँ से अर्थ निकाला नहीं जा सकता .सम्पूर्णता अध्ययन चिंतन मनन से उसके भाव प्रगट होते हैं.आज सनातनधर्म और संविधान दोनों के व्याख्याकार किरानी टाईप लोग हो गये हैं.इसलिए मूल भाव से दूर होते चले जा रहे हैं.आरक्षण कुछ लोग इसलिए नहीं छोड़ रहे कि संविधान प्रदत्त है जबकि संविधान जाति,धर्म ,लिंग,रंग भेद की ईजाजत ही नहीं देता.विधायिका ,कार्यपालिका ,न्यायपालिका के अपने अधिकार हैं.बहुमत गलत निर्णय ले सकती है .न्यायपालिका को समीक्षा करने का पूरा अधिकार है.वह गलत निर्णयों को प्रभावित कर बदलने की संस्तुति कर सकती है या आदेश दे सकती है जिसके विरूद्ध न्यायालय मे ही फैंसला हो सकता है ऐसी स्थिति मे भी संसद की सर्वोच्चता रहेगी लेकिन संविधान की मूल भावनाओ के विरूद्ध निर्णय पर अंकुश लगेगा.ऐसा होना चाहिए. .जिसतरह से संसद नियम बना रही है किसी दिन जातीय आधार पर सभी मंत्री पदों को आरक्षित करने का प्रस्ताव पारित भी कर सकती है.ट्रेन्ड देखना चाहिए.किसी दिन सबसे अधिक संख्या वाले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का पद अपनी जाति के लिए हमेशा हमेशा के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव भी पारित करा सकते हैं.अभी मेरी बात हजम नहीं हो रही होगी लेकिन गिरते ट्रेन्ड से मुझे लगता है किसी दिन ऐसा होकर रहेगा.संविधान मे जो आरक्षण है सो है लेकिन उसके बाद भी कुछ जातिवादी नेता उसकी सीमा से हटकर भी घोषणा कर देते है जिसके लिए उनपर कोई कार्यवाई नहीं होती .जैसे दस लाख का कर्ज एस.सी.एस.टी.और अतिपिछड़ों के लिए बिहार मे घोषित की गई.भारत मे धर्म के आधार पर भेदभाव वर्जित है .सरकार को किसी धर्म से मतलब नहीं किन्तु मन्दिरों के धन पर लिप्सा है.शुद्ध सनातनधर्म बर्णव्यवस्था पर आधारित एक अर्थतंत्र और धर्म तंत्र है.ब्राह्मण उसके शीर्ष पर हैं .सभी धार्मिक अधिकार उन्हे प्राप्त हैं.यह सनातनी लोगों की आस्था और मान्यता है.मन्दिर के महंथ ,गुरू,पुरोहित ,यग्याचार्य,कर्मकाण्डी और दान के अधिकारी होते हैं.शेष साधु ,सन्यासी,भक्त भिक्षा के अधिकारी होते है.यह शास्तसम्मत है.इसव्यवस्था को बदलने का न तो किसी राजनीतिक दल ,न विधायिका,न कार्यपालिका न न्यायपालिका को अधिकार है.संविधान ठीक से पढ़ें .किसी की धार्मिक आस्था पर प्रहार करने का अधिकार किसी तंत्र को नहीं है.
दूसरी बात सरकार किसी धर्म के प्रचार प्रसार ,अध्ययन के लिए सरकारी धन का उपयोग नहीं कर सकती .किसी धर्म के लिए वह कार्य करती है तो उसके लिए संविधान मे बदलाव लाना होगा.वैसे कुछ संविधान के अन्दर है जिसके चलते ऐसा करने का मौका मिलता है वोट बैंक बनाने के लिए .जो सनातनधर्म की आस्थाओं के विपरीत है .संविधान वहाँ हस्तक्षेप कर सकता है जहाँ किसी धर्म के विरूद्ध मारने पिटने हत्या बलात्कार के उपदेश दिये गये हों .उन चीजों को संविधान विरूद्ध घोषित कर सकती है.एवं उसमे आस्थावान लोगों को समस्त नागरिक अधिकारों से वंचित कर सकती है.किन्तु दुर्भाग्य या मानसिक दिवालियापन की हद हो गई है कि उन कट्टरपन्थी विचारधाराओं के शिक्षण हेतु राजकोष द्वारा धन उपलब्ध कराये जा रहे हैं.वेद विद्यापीठ हों या मदरसा या चर्च अपनी धार्मिक मान्यताओ की शिक्षा देते हैं.यह उनके धार्मिक मामले हैं जिनके लिए उनका समाज उत्तरदायी है न कि सरकार.मदरसों की शिक्षा पर व्यय संविधान की धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन है.जाति,धर्म के आधार पर घोषणाये भी संविधान सम्मत नहीं अगर कोई धारा हो जिससे इसको समर्थन मिलता हो तो बदला जाना चाहिए.हिन्दु मन्दिरों के धन के लिए शंकराचार्य की देखरेख मे एक ट्रस्ट बनना चाहिए .सरकार सिर्फ अंकेक्षण ,सुरक्षा का कार्य देखे वह भी अवैतनिक .उसी तरह सभी धर्मों की सम्पत्ति के संबंध मे हो.धर्म और जाति के आधार पर सार्वजनिक घोषणा करना भी पिन्च करने वाला है. धर्म के आधार पर पाँच करोड़ वजीफा की घोषणा भी रद्द होना चाहिए.प्रभाकर चौबे,ब्राह्मण नेता.