मोदी जी ! अगला चरण ‘स्मार्ट लॉक डाउन’ वाला हो
डाॅ. राकेश राणा
कोरोना संक्रमण की महामारी का संकट कोई सामान्य नहीं है। भारत अपनी सूझबूझ और आध्यात्मिक दृष्टि के जीवनानुभवों से बहुत सहज और आत्मविश्वास के साथ इस जीवन जंग में जीत की तरफ बढ़ रहा है। भारत ने इसे कैसे बनाया दुनिया का सबसे बड़ा स्मार्ट लॉकडाउन मॉडल? यह सबके लिए हैरान कर देने वाला विषय बना हुआ है। दुनिया में लॉकडाउन का सबसे बड़ा सफल मॉडल भारत ने कैसे लागू किया? यह संकट के बाद समाधान का सबसे समझने लायक पक्ष होगा।
भारत में लॉकडाउन का प्रथम चरण 25 मार्च से 14 अप्रैल था। दूसरे चरण ने लाॅकडाउन को 3 मई तक विस्तारित किया। लॉकडाउन के प्रथम और द्वितीय चरण की सफलता का श्रेय दूरदर्शी भारतीय नेतृत्व के साथ-साथ भारत के जन-सामान्य को भी जाता है। जिसने पूरे धैर्य और विश्वास के साथ संकट की इस घड़ी में समाज और सरकार का सहयोग किया। जब सारी दुनिया आत्मविश्वास खोए बैठी हो, ऐसे में विश्व समाज में आशा का संचार करने हेतु भारत अपने सफल लाॅकडाउन का सफलतम संदेश विश्व-समाज को देने में आगे रहा। यह अब और भी जरूरी हो गया है कि भारत लाॅकडाउन का समापन सफल से सफलतम् की ओर बढ़ते हुए स्मार्ट लाॅकडाउन के रूप में करे। जिसका आगाज उस विश्वास के साथ करे जिसमें महामारी के खतरनाक खतरे से सावधानी, समझदारी, जिम्मेदारी के विश्व नागरिक भाव वाला उत्तरदायित्व उभरकर सामने आए।
अब समुदाय, उद्योग-जगत, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों तथा ग्रामीणों किसान, मजदूर एवं पंचायत प्रतिनिधियों से बात कर लाॅकडाउन को प्रभावी और परिणामी बनाना है। स्मार्टली बचाव को उपचार पद्धति के रूप में इस महामारी के संक्रमण से स्वयं को और अपने समुदाय को बचाते हुए अपने दैनंदिन रुटीन को उत्पादन गतिविधियों की ओर लेकर जाना है। यह लाॅकडाउन को अंतिम चरण के रूप में स्मार्ट लाॅकडाउन बनाने की सफल प्रक्रिया सिद्ध होगी। वास्तव में कोरोना पर जीत का सफल माॅडल यही हो सकता है। समाज और सरकार की कदमताल में एक व्यवस्थित-क्रम हो जो जन-जागरण से ही संभव है। सरकार की सतर्कता और तैयारी के साथ समाज की सावधानी और समझदारी से तथा बाजार की वफादारी से ही हारेगी ये महामारी। सब मिलकर ही कोरोना के किले को भेद पाने में सफल हो सकेंगे। 3 मई के बाद लाॅकडाउन का बढ़ना कुछ आंशिक अभ्यासों को शुरू करने के साथ अपनी सार्थकता सिद्ध कर पायेगा।
दस हफ्ते शांति से अपने घरों में बंद रह लेना और सब सह लेना लाॅकडाउन की सफलता-विफलता तय नहीं करेगा। इस लम्बे प्रवास को कैसे हम दूरगामी नकारात्मक परिणामों की ओर ले जाने से कितना रोक पाते हैं, यहीं लाॅकडाउन की सफलता की एकमात्र कसौटी होगी। आने वाली मुसीबतों से कैसे सफलतापूर्वक निपटा जा सकता है। कैसे बेरोजगारी को न्यूनतम स्तर पर रोका जा सकता है। कैसे महंगाई को बढ़ने से संभाला जा सकता है। कैसे देश की अर्थव्यवस्था को सहज और स्वाभाविक रुटीन पर कितना जल्दी दौड़ाया जा सकता है। कैसे समाज के सबसे कमजोर और जरूरतमंद तबके को संकट में संबल प्रदान किया जा सकता है। कैसे अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत और विस्तारित कर इस संकट का सामना करने के लिए खड़ा किया जा सकता है, इन सबपर बहुत कुछ निर्भर करेगा।
कोरोना ने गरीब लोगों की जिंदगी को सीधे तौर पर प्रभावित किया है। उनके रोजगार काम-धंधे सब जाते रहे। गरीब-मजदूर वर्ग काम के बगैर बेकार है। जीविका के संकट से जूझ रहा है। वही निम्न-मध्यमवर्गीय परिवारों पर कामों का अतिरिक्त बोझ आ गया है। घर से बाहर तक के काम सब स्वयं संभालने पड़ रहे हैं। बड़ा सवाल घूम-फिरकर यही आता है समाज के एक तबके के पास ऐसे साधन हैं कि वह घर में बैठकर बिना कुछ किए भी कुछ समय जीवन का गुजारा चला सकता है। पर अधिकांश मजदूर-वर्ग रोज-कमाना रोज-खाना की जीवन शैली के सहारे ही जीता है।
इस संकट की घड़ी में कोरोना संक्रमण महामारी के प्रति हमारी प्रतिक्रिया कैसी है, इसपर ही सारा दारोमदार होगा। महामारी के मनोविज्ञान को हम मिलकर कैसे मात देते हैं। सामाजिक मोर्चे पर अपनी सामाजिक-सहयोगात्मक-व्यवस्था यानि अपना सोशल-सपोर्ट-सिस्टम कितना प्रभावी और कार्यात्मक बना लेते हैं। साथ ही आर्थिक स्थिति को डांवाडोल होने से कहां तक बचाकर रख पाते हैं। राजनैजिक स्तर पर अपने समाज को कितना सुगठित और परिपक्व अनुशासनात्मक व्यवहार जीवन में स्वःस्फूर्त ढंग से पालन करने हेतु प्रेरित करते हैं। उसमें कितना भरोसा भरने में हम कामयाब रहते हैं। यह सब मिलजुल कर महामारी पर परिणामी प्रतिवार करेगा। वही वास्तव में बतौर एक राष्ट्र के हमारी ईमानदार प्रतिक्रिया होगी। अपनी स्थितियों का सही-सही आकलन कर हम जंग जीत पायेंगे।
हमें ध्यान रखना होगा कि हम एक विकासशील राष्ट्र हैं। हेल्थ पर हमारा कुल बज़ट मात्र 68 हजार करोड़ के आसपास है। जो हमारी भारी-भरकम जनसंख्या को देखते हुए कुछ भी नहीं है। स्वास्थ्य संरचना बेहद लचर है। हमारे पास न सिर्फ अस्पतालों और उपकरणों तथा तकनीकी का अभाव है। बल्कि डाॅक्टर्स तक हमारे पास उस अनुपात में बेहद कम हैं। कुल मिलाकर इस भयानक कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में हमारे सामने बहुत-सी चुनौतियां हैं। हमको अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे को बहुत मजबूत करने की जरूरत है। इस संकटकाल का कुछ हद तक लाभ इस दिशा में लिया जा सकता है। निजी-क्षेत्र के चिकित्सा कारोबारियों को समाज हित में कुछ योगदान के लिए प्रेरित करे, उन पर थोड़ा प्रेशर डाले। साथ ही हमारे समाज में जो जाति, धर्म और वर्ग तथा अन्य तरह की विषमताएं भरी पड़ी है, उस सामाजिक संरचना से भी पग-पग पर दो-चार होना है। इन तमाम विषम परिस्थितियों से सफलतापूर्वक निपटने का एक ही तरीका है सामाजिक साझेदारी, पूरी ईमानदारी और तैयारी के साथ एक-दूसरे से जुड़ा हुआ सोशल-सपोर्ट-सिस्टम बने। जो संकट में तीव्र प्रतिक्रिया के लिए मैकेनिज्म बन सके। क्योंकि लॉकडाउन से कृषि उत्पादन, उद्योगों, बाजार और सरकारी खजाना सब बैठ चुके हैं। सब साथ मिलकर ही नयी हुंकार के साथ खड़े हो सकते हैं। इस संकट में सबकी उत्पादक क्षमता क्षीण हुई है। जिसका प्रभाव सम्पूर्ण समाज-व्यवस्था पर पड़ेगा। इन नकारात्मक प्रभावों को हम आपसी एकजुटता से ही न्यूनतम कर सकते हैं।
(लेखक समाजशास्त्री हैं।)
लेखक युवा समाजशास्त्री है!
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