निर्धन के घर जाकर देखो
अमन चैन सुख पाओगे।
राज महल के भोग छोड़कर
आधी रोटी खाओगे ।।

रोज सबेरे जल्दी उठकर
पशु पोषण में लग जाता ।
दुहकर दूध गऊ माता का
दूर शहर को ले जाता ।।
शीत ऊष्ण अति वर्षण में भी
कभी नहीं घर पाओगे । निर्धन के घर————

जेठ माह की ठेठ दोपहर
श्रम से खूब नहाता है ।
नीम छाँव में टूटी खटिया
पर बेसुध सो जाता है।।
सुख की नींद अनोखी ऐसी
कभी न आहट पाओगे । निर्धन के घर————–

झुकी कमर जर्जर काया में
भीतर भीम बसेरा है ।
चाहे काम कठिन हो कितना
कभी नहीं मुंह फेरा है ।।
सहन शक्ति का सिंधु अपरिमित
कैसे झुठला पाओगे ? निर्धन के घर ————–

आठ प्रहर की कठिन साधना
साँझ परे घर आता है ।
पीर छोंड़ पाँवों की पथ पर
बच्चों को दुलराता है ।।
कर्मवीर का कर्मठ कौशल
और कहीं क्या पाओगे ? निर्धन के घर————

अनिल कुमार पाण्डेय
संस्थापक- तुलसी मानस साहित्यिक संस्थान
बिसधन , बिल्हौर , कानपुर नगर (उ. प्र)
शब्ददूत -9198557973

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