‘होता’ भाव जीवन में धारो
बनकर हंस रहो जग में,
मत भीगो जग के पानी में।
हीरे के सम रहो चमकते,
कुछ कर लो काम जवानी में।।
वसु – भाव से जीना सीखो,
वृद्धि करो, मुझे भी करने दो।
ऐश्वर्यसंपन्न बन जीवन जिओ,
सुखी रहो, मुझे भी रहने दो।।
‘होता’ भाव जीवन में धारो,
सर्वस्व समर्पित कर डालो।
सद्भाव – मित्रता को लेकर ,
जीवन धन्य बना डालो।।
अतिथि बनकर आए जग में,
अतिथि ही बनकर रहना।
घूम – घूम कर जग सारे में,
बात वेद की ही कहना।।
चार चरण हैं ये जीवन के ,
जिन्हें आश्रम कहते हैं।
इसी भाव से ज्ञानी जन ,
प्रत्येक चरण में रहते हैं ।।
– राकेश कुमार आर्य

लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है