बुद्धि जानै प्रकृति को,ब्रह्म को जाने नाय

बुद्धि जानै प्रकृति को,
ब्रह्म को जाने नाय।
ज्यों दीये की लोय से,
सूरज मिलता नाय॥1608॥

भावार्थ:- बुद्धि का गम्य क्षेत्र सीमित है जबकि ब्रह्म अनन्त है, असीमित है। ब्रह्म स्वतः प्रकाश है। इसलिए उसे बुद्धि के प्रकाश से जाना नहीं जा सकता,जैसे सूर्य स्वत: प्रकाशित है, उसे किसी दीपक से नहीं जाना जा सकता है।

कृष्ण सी लीला नहीं,
राम सा नहीं चरित्र।
समाधि शिव जैसी नहीं,
तीनों बड़े विचित्र॥1609॥

भावार्थ:- समस्त भूमण्डल में भगवान कृष्ण जैसी लीलाएं, भगवान राम जैसा चरित्र, भगवान शिव जैसी समाधि अन्यत्र कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती है। यह तीनों ही अपनी-अपनी विधाओं में उत्कृष्टतम थे, विचित्र थे।इनका कोई सानी आज तक दिखाई नहीं देता।

बहुवचनी बहुपत्नियां,
और बहुसंतान ।
बहुरुचियों के कारणै,
मानव रहे परेशान॥1610॥

भावार्थ:- बहुवचन से अभिप्राय है,अधिक बोलना।प्रया: मनुष्य बचपन में दो-तीन वर्ष का बोलना सीख जाता है लेकिन सही और हृदयस्पर्शी बोलना अधिकांश लोगों को ताउम्र अर्थात जीवन पर्यंत नहीं आता है। इसलिए वे वाणी के उद्वेगों के कारण जीवन भर परेशान रहते हैं। इसलिए मनुष्य को सही,संक्षिप्त और प्रभावी बोलना चाहिए।जिन लोगों की एक से अधिक पत्नियां, एक या दो संतानों से अधिक बच्चे, और बहुरुचियां अर्थात असंख्य कामनाएं (तृष्णाएं) होती हैं वे जीवन में कष्ट उठाते हैं, उन्हें जीवन में चाहते हुए भी सुकून नहीं मिलता है। इसलिए मर्यादा में रहें।

मन वाणी की शुद्धता,
फल पावै वेदान्त।
हंसा जैसी छावि बने,
जीवन होय सुखान्त॥1611॥

व्याख्या :- जो व्यक्ति मन और वाणी को परिमार्जित अथवा शुद्ध करता है।आत्मसंयम से इनकी रक्षा करता है, वह अदने से आला हो जाता है। यहां तक कि वह वेदान्त के फल अथवा ‘सार’ को प्राप्त हो जाता है अर्थात वह चारों वेदों के सार को प्राप्त हो जाता है। उसकी छवि हंस जैसी होती है। ध्यान रहे,सरोवर की शोभा हंस होता है। वह जिस सरोवर पर जाता है उसी की शोभा में चार- चांद लगाता है। अतः मन और वाणी को जीतने वाला व्यक्ति संयमी होता है। वह मनस्वी, यशस्वी और तपस्वी कहलाता है। वह जिस स्थान अथवा सभा में जाता वहां हंस की तरह उसकी शोभा अथवा शालीनता में चार- चांद लगाता है।ऐसा व्यक्ति मरने के बाद भी जिन्दा रहता है। उसका यश धरती और आकाश के बीच में निरन्तर बहता रहता है। उसके जीवन का अन्त सुखान्त होता है अर्थात धन्य हो जाता है। क्रमशः

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