जन्नत से भी बढकर, वो माँ होती हैं

माँ के संदर्भ में “शेर :-

चलती- फिरती भी ,
जो दुआ देती है।
जन्नत से भी बढकर,
वो माँ होती हैं॥2594॥

पिता के संदर्भ में ‘शेर ‘ :-**

आसमान से भी ऊँचा,
जिसका अरमान होता है। फरिश्ते से कभी बढ़कर,
वह पिता होता हैं॥2595॥

शेर:- सावधान ! इन्सानी चोले में शैतान भी है:-

दिलों में है दूरियाँ ,
मगर लेबो पर मुस्कान है।
हैरत होती है मुझे,
ये कैसे इन्सान हैं॥
खुदा की इबादत का,
पाखन्ड भी करते हैं,
मगर पाप करने से ,
ज़रा नहीं डरते हैं।
सच पूछो तो,
इन्सानी चोले में,
ये छिपे हुए से शैतान है॥2596॥

शेर:- मानव तन माटी का पुतला नहीं, दिव्य. नौका है :-

कौन कहता है?
माटी का पुतला है, तन। प्रभु-मिलन की नौका है, तन॥
मग़र दर्श होगा,
तभी तुझको प्यारे !
तद्‌रूप होगा,
जब तेरा मन।
कौन कहता है,
माटी का पुतला है…॥2597॥

संसार में निर्लिप्तभाव से कौन जीता है?:-

योगी तो निर्लिप्त हो,
पाप होय या पुण्य।
जैसे जल में कमल हो,
रहे प्रभाव से शून्य॥2598॥

भावार्थ :- कवि का कहने का आशय यह है कि जिस प्रकार सरोवर में उसके जल से कमल प्रभाव शून्य रहता है उस पर
वर्षा की बून्दो का कोई प्रभाव नहीं पड़‌ता क्यों कि उसका पत्ता ऊपर की तरफ से और नीचे की तरफ चिकना होता है तथा उसकी जड़ काफी लम्बी होती है जो पानी की मात्रा के अनुसार बढ़ती और घटती रहती और कमल का पत्ता जल के ऊपर तैरता है। ठीक इसी प्रकार योगीजन लाभ हो या हानि, दुख हो या सुख, यश हो या अपयश, मृत्यु आज आए या कल, पाप हो या पुण्य, वे अपने धैर्य और विवेक को कायमा रखते हैं। इसी लिए वे संसार में निर्लिप्त भाव से जीते है, बेशक परिस्थिति प्रतिकूल हो अथवा अनुकूल हो।
क्रमशः

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