खतरा बनते जा रहे हैं फर्जी बाबा

भारत में समस्या यह है कि इस तरह के बाबाओं से कैसे निपटा जाए, जबकि सरकारें उनका समर्थन कर रही होती हैं। ऐसे बाबा लोग भले ही एक बड़ा वोट बैंक बनाते हैं, परंतु वे राज व्यवस्था को ऐसी क्षति पहुंचाते हैं जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती है। लोकतंत्र मतदाताओं व दलों में सीधे संपर्क की मांग करता है। बाबा लोग इस रास्ते में आ जाते हैं और वे समानांतर सत्ता कायम कर लेते हैं। जब मतपेटी पर किसी और का कब्जा हो जाए तो लोकतंत्र कमजोर होता हैज् 
गुरमीत राम रहीम बनावट में भिंडरावाला था। उसने भी देखा कि उसे कोई डरा नहीं सकता, लेकिन अब वह कागजी शेर साबित हो चुका है। केंद्रीय जांच ब्यूरो की अदालत के न्यायाधीश जगदीप सिंह ने जब उस पर फैसला सुनाया तो गुरमीत सिंह कोर्ट में ही खुलेआम रोने लगा और गिड़गिड़ाया कि उसे इतनी कठोर सजा न दी जाए। बताया जाता है कि जिस ढंग से दुराचारी बाबा पलट गया, उससे उसके अनुयायी भी आश्चर्यचकित थे। हालांकि इस बात में कोई आशंका नहीं है कि गुरमीत राम रहीम के अनुयायी बड़ी तादाद में हैं। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उसे उसी के डेरे में रह रही दो साध्वियों से बलात्कार के आरोप में दंडित किया गया है। इस मामले से पता चल सकता है कि अनुयायी कितने अज्ञानी व भोले-भाले हो सकते हैं। उसके अनुयायी आंखें बंद कर उसकी ओर नेतृत्व व मार्गदर्शन के लिए देखते थे। भिंडरावाला भी अपने बहुत सारे अनुयायियों के कारण शक्तिशाली बन गया था और जो वह कर रहा था, उस ओर से सरकार ने आंखें मूंद ली थीं। दुष्कर्म के मामलों में अब फैसला आ गया है और सजा भी हो चुकी है। ऐसी संभावना है कि डेरे में हुए अन्य काले कारनामों का काला सच भी बाहर आएगा। सीबीआई पहले ही गुरमीत के खिलाफ कत्ल के आरोपों में सुनवाई कर रही है और देर-सवेर इन मामलों में भी न्यायालय अपना फैसला दे देगा। डेरे में पुरुष अनुयायियों को नपुंसक बनाने के मामले भी हैं, जिन पर भी कार्रवाई चल रही है। यह सब दुराचारी बाबा के कुत्सित इरादों की ओर इशारा करता है तथा साथ ही इससे सत्तारूढ़ लोगों तथा अधिकारियों की मौन स्वीकृति का भी पता चलता है। भिंडरावाला व गुरमीत राम रहीम के बीच कुछ समानताएं हैं। भिंडरावाला अगर कांग्रेस के कारण पनपा, तो गुरमीत को हरियाणा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी समेत कई दलों के लोगों का समर्थन हासिल था। गुरमीत राम रहीम भिंडरावाला की तरह एक आतंकवादी भले ही न हो, पर जिस तरह उसने अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल किया, उससे उसके कुत्सित इरादों का पता चलता है।
अगर ऐसा न होता तो उसने इतनी धन-संपदा इक_ी न की होती और ब्रिटेन व अमरीका समेत पूरे विश्व में उसके 132 डेरे न होते। पंजाब में 1977 में अकाली-जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद अकालियों की राजनीतिक ताकत बढ़ती जा रही थी और कांग्रेस का जनाधार कम होता जा रहा था। ऐसे में संजय गांधी व ज्ञानी जैल सिंह ने अकालियों से भिड़ाने के लिए भिंडरावाला को समर्थन दिया। इससे वह इतना शक्तिशाली बन गया कि इंदिरा गांधी को समझ आने लगा कि एक भस्मासुर पैदा हो गया है तथा इससे निपटना बहुत जरूरी हो गया है। इसके बाद ही अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर के भीतर अकाल तख्त से खदेडऩे के लिए सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी थी। टैंकों का इस्तेमाल करने से पहले सेना ने इंदिरा गांधी की इजाजत ली और उन्हें आधी रात को जगाया। इंदिरा ने अपनी भारी भूल को स्वीकार करते हुए जून, 1984 में पवित्र धर्मस्थल में सेना को भेजने का आदेश दे दिया। भिंडरावाला मारा गया, लेकिन ब्लू स्टार आपरेशन से जो गुस्सा उपजा, उसकी कीमत इंदिरा को चार माह बाद ही अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। इसी तरह गुरमीत राम रहीम को भाजपा के नेताओं ने उत्साहित किया, क्योंकि इससे पार्टी का वोट बैंक मजबूत हो रहा था। गुरमीत ने 2014 के लोकसभा तथा इसी वर्ष हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भाजपा का समर्थन किया था। उसने पंजाब में भी कैप्टन अमरेंदर सिंह की कांगे्रस के खिलाफ भगवा दल को समर्थन दिया। हालांकि वहां वह जीत हासिल नहीं कर पाई। ऐसी अफवाहें हैं कि हरियाणा में जीतने के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को छोडक़र सभी मंत्री गुरमीत का धन्यवाद प्रकट करने के लिए सिरसा के डेरा सच्चा सौदा में गए थे। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि अन्य दल दोषी नहीं हैं। वर्ष 2009 में डेरा प्रमुख ने कांग्रेस को समर्थन दिया था। वर्ष 2007 में गुरमीत को दी गई जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा के बदले में यह समर्थन दिया गया था।
यह आसानी से समझा जा सकता है कि कैसे गुरमीत शक्तिशाली बन गया था तथा जब उसकी निजी सुरक्षा की चुनौती आई तो राज्य सरकार उसके घुटनों में कमजोर नजर आई। यही कारण है कि फैसला आने से पहले धारा-144 को सख्ती से लगाने में सरकार विफल रही और इससे उसके गुंडे अनुयायियों को गदर फैलाने का मौका मिल गया। यह भी स्पष्ट है कि गुरमीत पर फैसला आने से पहले ही कुछ अनहोनी की सूचनाएं मिल गई थीं। इस संबंध में पंजाब, हरियाणा व चंडीगढ़ प्रशासन को सूचित कर दिया गया था। जिस तरह उसके अनुयायी इक_े हो रहे थे, उससे गुप्तचरों ने अनुमान लगा लिया था कि गुरमीत के खिलाफ फैसला आने पर वे हिंसा भी फैला सकते हैं। पंजाब सरकार ने स्थिति को अच्छी तरह समझते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम कर लिए, जबकि हरियाणा सरकार मात्र यह आश्वासन देती रह गई कि वह चौकन्नी है। वह सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने तथा कई लोगों को हिंसा का शिकार होने से नहीं बचा सकी तथा डेरे के अनुयायियों को नहीं रोक सकी। जब पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट की फटकार पड़ी, तभी वह जागी। इतिहास जब अपने आप को दोहराता है तो यह मूल रूप से इस बात का सूचक है कि हमारी प्रणाली कोई सबक नहीं ले रही। 30 लोगों की जान जाने तथा सार्वजनिक संपदा को पहुंची क्षति के लिए कौन जिम्मेदार होगा। इसके उलट भाजपा नेतृत्व ने मुख्यमंत्री खट्टर को छुआ तक नहीं, क्योंकि वह आरएसएस से जुड़े रहे हैं। भारत में समस्या यह है कि इस तरह के बाबाओं से कैसे निपटा जाए, जबकि सरकारें उनका समर्थन कर रही होती हैं। ऐसे बाबा लोग भले ही एक बड़ा वोट बैंक बनाते हैं, परंतु वे राज व्यवस्था को ऐसी क्षति पहुंचाते हैं जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती है। लोकतंत्र मतदाताओं व दलों में सीधे संपर्क की मांग करता है। बाबा लोग इस रास्ते में आ जाते हैं और वे समानांतर सत्ता कायम कर लेते हैं। जब मतपेटी पर किसी और का कब्जा हो जाए तो लोकतंत्र कमजोर होता है। इसलिए लोगों की सहमति से चलने वाली प्रणाली में बाबाओं की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। वे मंदिर में महंत की तरह हैं। समाज में जितनी उनकी चलती जाएगी, उतनी ही मात्रा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कम हो जाएगी। धर्म एक निजी मामला है। आश्रमों, नित्यानंदों व राम रहीमों से तब तक कोई समस्या नहीं है, जब तक वे लोगों को आध्यात्मिक शिक्षा देने का कार्य करते रहते हैं। समस्या तब खड़ी हो जाती है जब अपराध, गैर-कानूनी गतिविधियों, बलात्कारों व हत्याओं में उनकी भागीदारी शुरू हो जाती है। इस सब को जो गंदा रूप दे रहा है, वह है अपने लाभ के लिए राजनीतिक दलों का समर्थन।

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