हम एक दूसरे को गिफ्ट क्यों देते हैं ?


“लोग एक दूसरे की प्रसन्नता के लिए, अपने संबंधों को मजबूत तथा प्रेममय बनाए रखने के लिए, एक दूसरे को अच्छी अच्छी वस्तुएं भेंट (गिफ्ट) में देते हैं। अच्छी-अच्छी महंगी महंगी गिफ्ट देते हैं। ताकि दूसरा व्यक्ति उस गिफ्ट को प्राप्त करके प्रसन्न हो जाए, और गिफ्ट देने वाले के प्रति प्रेमभाव बनाए रखे।” लोग ऐसा प्रेमभाव क्यों बनाए रखना चाहते हैं? इसका उद्देश्य यही होता है कि “भविष्य में वे एक दूसरे से सहायता लेते देते रहेंगे।” “यह अच्छी बात है। गिफ्ट देने में कोई बुराई नहीं है, देनी चाहिए। आपस के संबंध मधुर एवं सुदृढ़ होने चाहिएं। यह सब के भविष्य के लिए उत्तम है, सुखदायक है।”
“बहुत से धनवान लोग ऊंची कीमत की गिफ्ट तो देते हैं, परंतु जब दूसरा व्यक्ति (पति पत्नी, या कोई मित्र आदि) कभी किसी विशेष परिस्थिति में, या दैनिक व्यवहार में भी उनके प्रति प्रेम और सद्भाव की अपनी भावनाएं व्यक्त करता है, तो वे अपने धन एवं अभिमान के नशे में चूर, उसकी भावनाओं का मूल्य नहीं समझते।” उसको उतना महत्त्व नहीं देते। और केवल इसी बात का महत्त्व समझते हैं, कि “मैंने इसको इतनी महंगी गिफ्ट दी थी।” “ऐसे लोग भले ही धनवान हों, पठित हों, किसी उच्च पद पर आसीन भी हों, फिर भी वे जीवन व्यवहार में असफल हो जाते हैं।” क्योंकि “जितनी महंगी गिफ्ट आपने दी थी, उस पर आपने केवल पैसा खर्च किया, जिसका मूल्य भावनाओं से कम है।” “यदि आप दूसरे की भावनाओं को भी समझते, जिसका मूल्य धन से अधिक है, और उसी हिसाब से उसको सम्मान देते, तो यह उस महंगी वस्तु से भी बड़ी गिफ्ट होती।” “अब आपने भावनाओं के सम्मान वाली महंगी गिफ्ट तो दी नहीं। ऊंची कीमत वाली वस्तु रूपी सस्ती गिफ्ट दी। इसलिए व्यवहार में आप फेल हो गए।”
“वेदों और ऋषियों के ग्रंथों के अनुसार वास्तव में धन का मूल्य कम है, और सम्मान का मूल्य अधिक है।” जिन लोगों के पास पैसे कम हैं, इस कारण से वे, सुदामा की तरह, भले ही सस्ती कीमत की साधारण सी वस्तु गिफ्ट में देते हों, परंतु दूसरे की भावनाओं का पूरा सम्मान करते हैं। उनकी भावनाओं को समझ कर उनके साथ उचित व्यवहार करते हैं, वे लोग अपने जीवन में सफल हो जाते हैं।”
“इसलिए महंगी गिफ्ट की अपेक्षा दूसरे व्यक्ति की भावनाओं को अधिक महत्व दें। दूसरों की भावनाओं को समझें और उन्हें यथायोग्य सम्मान देकर उनके साथ न्यायपूर्ण उचित व्यवहार करें। जैसा श्रीकृष्ण जी महाराज ने किया। वही आपकी सबसे उत्तम भेंट या गिफ्ट मानी जाएगी। इससे आपका संबंध बहुत अधिक मजबूत और सुखदायक बनेगा।”
—– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

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