अधिकारियों की लापरवाही के चलते गांव कलौंदा की मतदाता सूची में हो गई भारी घपलेबाजी

दादरी । (अजय आर्य ) यहां के गांव कलौंदा का एक नया मामला सामने आया है, जिसमें प्रशासनिक लापरवाही और सरकारी कार्यों में बरती जाने वाली शिथिलता का भंडाफोड़ होता है। पता चला है कि इस गांव के ग्राम प्रधान के इलेक्शन के समय पर तैयार की गई वोटर लिस्ट में 500 से अधिक ऐसे मतदाता हैं जो या तो मृत हो चुके हैं या जिनकी वोट डबल हो गई है या फिर किसी कारण से गांव छोड़कर चले गए हैं।
गांव के ही रहने वाले तेजवीर सिंह राणा  का कहना है कि वह स्वयं ग्राम प्रधान पद के उम्मीदवार रहे थे। उन्होंने उस समय इस बात पर ऐतराज व्यक्त किया था कि गांव की वोटर लिस्ट गलत तैयार की जा रही है । लेकिन तत्कालीन ग्राम प्रधान एक महिला थी जिसके बेटे उमर ने यह काम वोटर लिस्ट तैयार करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों से मिलकर  करवा दिया।
इस संबंध में जब हमारे द्वारा जानकारी ली गई और ग्राम प्रधान के लिए तैयार की गई मतदाता सूची का निरीक्षण किया तो आश्चर्यजनक ढंग से यह बात सामने आई कि वास्तव में इस गांव में बहुत बड़ी धांधलेबाजी वोटर लिस्ट तैयार करने में हुई है। प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों की नाक तले ऐसे काम कितने ही होते रहते हैं , लेकिन चुनाव आयोग की नजरों में धूल झोंकने और प्रशासनिक शिथिलता बरतते हुए अपने कामों को अंजाम देने के लिए कुख्यात हो चुका राजस्व विभाग इस प्रकार के आरोपों को झेलने का आदी हो चुका है। पहले यह लोग अपने कर्मचारियों के माध्यम से ऐसे गलत काम होने देते हैं, फिर चुनाव आयोग इन की खाल ना उधेड़े और शासन के स्तर पर इनके खिलाफ कोई कार्रवाई न हो जाए, इसलिए इन कामों को लोगों की नजरों से हटाकर दबाने  की कोशिश करते हैं। जिसका लाभ इनके कर्मचारी लेते हैं।

गांव कलौंदा के कुल मतदाताओं की संख्या 7489 है, जिनमें 500 से अधिक यह फर्जी मतदाता जुड़े हुए हैं। अब सवाल यह उठता है कि यदि इतनी सी आबादी पर 500 से अधिक फर्जी मतदाता प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के  चलते जुड़ जाते हैं तो यह फर्जी मतदाता चुनावों का परिणाम किस प्रकार प्रभावित कर जाते होंगे? क्योंकि ग्रामों में ग्राम प्रधान के पद पर अक्सर सौ पचास वोटों से हार जीत होती देखी जाती है। जब एक  चुनाव में खड़े एक प्रत्याशी के पास इतने अधिक फर्जी मतदाता हों तो उसका परिणाम उसके लिए लाभकारी होता है। इस प्रकार प्रशासनिक लापरवाही से जहां लोकतंत्र की हत्या होती है ,वहीं अवांछित व्यक्ति ग्राम प्रधान के पद को पाने में सफल हो जाते हैं। श्री राणा का कहना है कि ग्राम उपरोक्त के वर्तमान प्रधान को मात्र 14 -15% मत मिले हैं और वह जीत कर ग्राम प्रधान बन गया। उसका भी एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि उसे गांव के फर्जी मतदाताओं के मत भी चोरी-छिपे व जबरदस्ती प्राप्त हुए।
अब यदि तहसील दादरी के प्रशासनिक अधिकारियों और संबंधित कर्मचारियों के इस आचरण पर विचार करते हुए यह निष्कर्ष निकाला जाए कि सारी तहसील के कुल मतदाताओं में उन्होंने ऐसे कितने फर्जी मतदाता या तो रह जाने दिए हैं या सम्मिलित कर दिए हैं तो यह संख्या चौंकाने वाली हो सकती है। क्योंकि इतनी बड़ी संख्या मैं जुड़ने वाले मतदाता विधायक के चुनाव परिणाम तक को भी प्रभावित कर सकते हैं। प्रश्न यह भी है कि जब संबंधित विभाग और उसके कर्मचारियों व अधिकारियों को मतदाता सूची को दुरुस्त करने का पर्याप्त समय दिया जाता है तो उस समय यह लोग मटरगश्ती काटते हैं या वास्तव में सरकारी कार्य को मन लगाकर करते हैं। ज्ञात रहे कि उस समय तहसील का प्रशासनिक और न्यायिक दोनों कार्य प्रभावित होते हैं और किसानों को कई प्रकार की समस्याओं को झेलना पड़ता है। क्योंकि कई बार कोई भी राजस्व अधिकारी या कर्मचारी तक उन्हें अपने कामों व समस्याओं के समाधान के लिए तहसील भवन पर उपलब्ध नहीं होते। यदि उपलब्ध होते भी हैं तो बहाना होता है कि इस समय हम चुनाव की तैयारी में लगे हैं, बाद में आना। यदि इस प्रकार के घपले और घोटालों को देखें तो पता चलता है कि ये लोग केवल मटरगश्ती करते हैं और गांवों की मतदाता सूचियों को और भी अधिक उलझन पूर्ण बना देते हैं ।
लेखपाल और बीएलओज के द्वारा किए जाने वाले इन कार्यों की समीक्षा तहसील स्तर पर भी की जाती है परंतु वहां से भी यह कार्य संतोषजनक ढंग से पूर्ण नहीं किए जाते हैं। जिससे निचले स्तर पर काम करने वाले कर्मचारी की ही घपलेबाजी अंतिम निष्कर्ष पर सत्य के रूप में स्थापित हो जाती है। कुल मिलाकर सारा खेल चुनाव आयोग और सरकार की आंखों में धूल झोंकने के लिए होता रहता है और गांवों में पार्टी पॉलिटिक्स को इससे और भी अधिक दूषित प्रदूषित कर दिया जाता है।

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