अति प्राचीन शारदा माता का मंदिर और पाक अधिकृत कश्मीर

हमारे इतिहास को इतना नीरस बना दिया गया है कि उसे आज की पीढ़ी पढ़ना पसंद नहीं करती । कैसी विडंबना है कि अपने देश में विद्यालयों से ही छात्र एवं छात्राएं भूगोल और इतिहास को केवल इसलिए पढ़ती हैं या कुछ इस प्रकार का पढ़ती है कि पास होना है । इतिहास और भूगोल को पढ़ना ही नहीं चाहते हैं ,नीरस विषय जो ठहरा ।
पता नहीं शिक्षक गण भी बच्चों को यह शायद नहीं समझा पाते हैं कि यही विषय सबसे ज्यादा आवश्यक है । इन्हीं विषयो से देश प्रेम जागेगा इसलिए इन विषयों पर शिक्षकों के द्वारा विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है । वास्तव में हमें अपने इतिहास को वस्तु परक और विज्ञान परक बनाने की आवश्यकता है । जब तक उसमें हमारे ऋषि पूर्वजों के द्वारा किए गए वैज्ञानिक अनुसंधान और सामाजिक मान मर्यादाओं को स्थापित करने जैसे महाभारत और रामायण के प्रसंग स्थापित नहीं किए जाएंगे तब तक इतिहास नीरस ही बना रहेगा।
यही कमी होने के कारण अनेक लोग अपने देश के इतिहास को नही जानते हैं और न हीं वह अपने देश की भौगोलिक स्थितियों का आंकलन सही ढंग से कर पाते हैं । उन्हें कोई इंटरेस्ट नहीं लगता है ।
कैसे अपना देश सुरक्षित रह पाएगा , यह बहुत ही चिंतनीय है ।
हम सभी प्रयास करें अपने बच्चों को इतिहास और भूगोल पढ़ने की ओर प्रेरित करें । एक समय ऐसा आएगा कि जब अधिकाधिक देशभक्त तैयार होंगे ।
आइए जानते हैं शारदा माता के मंदिर और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के बारे में ।
हमारे देश की भावनात्मक एकता का प्रतीक रहा है अति प्राचीन तीर्थ स्थल शारदा माता का मंदिर । यह मंदिर शारदी गांव में स्थित है । यह पाकिस्तान के कब्जे वाले मुजफ्फराबाद क्षेत्र ( पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर ) में पड़ता है ।
21 अक्टूबर 1947 को जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया तो जम्मू कश्मीर रियासत की सेना के सभी मुसलमान सिपाही और अफसर पाकिस्तान से जा मिले । फलस्वरूप पाकिस्तानी सेना ने बड़ी आसानी और तेजी से कृष्ण गंगा नदी को पार कर मुजफ्फराबाद पर अपना कब्जा कर लिया ।
मुजफ्फराबाद जिले का कश्मीर के साथ लगने वाले उड़ी – टीटवाल को छोड़कर सारा भाग पाकिस्तान के अधिकार में चला गया और यह जिला पाकिस्तान का अंग बन गया ।

पाकिस्तान में पहले से ही ननकाना साहब और तिब्बत में शिव धाम कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने की सरकारी स्तर पर व्यवस्था है तो ऐसी योजना शारदा माता के मंदिर के भक्तों हेतु भी बनाई जानी चाहिए ।
यही वह तीर्थ स्थल है जहां समीप ही शारदा विद्यापीठ है और अब जीर्ण शीर्ण अवस्था में है । शारदा विद्या की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा का रूप है । सरस्वती ज्ञान की देवी है जिसकी भारत में प्राचीन काल से पूजा होती है इसी सरस्वती को ज्ञान की देवी के रूप में यूनान और अन्य देशों में भी पूजा जाता है।
12वीं शताब्दी में पंडित कल्हण ने राज तरंगिणी में और उससे भी पहले नीलमत पुराण में शारदा देवी का उल्लेख मिलता है । कश्मीर की प्राचीन शारदा लिपि इसी पीठ के कश्मीरी पंडित विद्वानों की देन है । कश्मीर में यह लिपि संस्कृत ग्रंथों के लेखन में प्रयोग होती रही है । बाद के काल में जब वहां की भाषा कश्मीरी बनी तो उसे भी इसी लिपि में लिखा जाने लगा ।
भारत के प्रधानमंत्री को चाहिए कि शारदा माता मंदिर के लिए एक तीर्थ यात्रा का आयोजन करें ।
प्रधानमंत्री जी सभी धर्मों , संप्रदायों एवं मतों के मुखिया हैं । उनसे यह अपेक्षा हम सभी हिंदू धर्मावलंबी करते हैं । इस तीर्थ यात्रा से दोनों देशों के संबंधों में सुधार होगा । इस यात्रा से पाकिस्तान को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए और भारत को भी अपना पक्ष रखते समय किसी भी प्रकार का संकोच नहीं करना चाहिए ।
शारदा माता के स्थल को फिर से भारत के साथ मिलाने का संकल्प 1994 में संसद के दोनों सदनों ने दोहराया था । सैन्य बल के प्रयोग से पाकिस्तान ने कश्मीर के इस भूभाग को दखल किया था उसी प्रकार अब आज की परिस्थिति में ज्यादा अच्छा तो यह होगा कि अब भारत पीओके को सैन्य बल का प्रयोग कर वापस उसे अपने साथ मिला ले । फिर सारी चीजें स्वतः ही ठीक हो जाएगी ।
भारत के लिए यह अत्यंत दुर्भाग्य का विषय है कि हमारे अनेक पूजा स्थल पाकिस्तान चले गए हैं या वहां रह गए भारत के प्रधानमंत्री को उन सबके उचित रखरखाव के लिए भी प्रयास करना चाहिए । साथ ही संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से उन्हें यूनेस्को द्वारा संरक्षित विश्व धरोहर के रूप में सुरक्षित रखने के प्रयास भी करने चाहिए।धर्म चंद्र पोद्दार
झारखंड प्रदेश अध्यक्ष
अखिल भारत हिंदू महासभा
मो न 7004648632

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