रेलवे स्टेशन पर हुए कुंभ हादसे के संदर्भ में

कलम उठाया जब लिखने को आंसू टपके, लहू भी टपका।
हाथों में अखबार जो आया जख्म मिले और दर्द भी टपका।।
इलाहाबाद जंक्शन पर मचा भगदड़ का तूफान।
वहां पर मौजूद थे मेरे अनुज एडवोकेट शेखर और विरेन्द्र
टे्रनों में बैठने की जल्दबाजी में अनेकों मारे गये इंसान
दुख भरे हालात में परिजन कर रहे थे अपनों की पहचान
जब मुझे मालुम हुआ अपना अनुज भी इलाहाबाद में अटका
कलम उठाया जब लिखने को आंसू टपके लहू भी टपका
नन्हें नन्हें मासूम स्त्रियां इस भगदड़ में काल की भेंट चढ़ गये
क्योंकि रेलवे स्टेशन पर आने व जाने वाले आपस में भिड़ गये
इसी आपा धापी में ओवर ब्रिज के खंभे उखड़ गये
इंसान टूटी माला के मोती की तरह नीचे गिर गये
कोई टे्रन पर गिरा तो कोई लाइन पर कटा, कोई बोगी के बीच में अटका
कलम उठाया जब लिखने को आंसू टपके लहू भी टपका
क्या खबर थी ऐसा हादसा भी हो जाएगा
दिल बनके एक दूसरे से बिछड़ जाएगा
कुंभ तो फिर बारह साल बाद आ जाएगा
लेकिन जो बिछड़ गया वो कभी लौट के ना आएगा
भर न कभी बिछड़ों को करार आएगा
इसी खौफनाक तबाही से आर्य का सांस अटका
कलम उठाया जब लिखने को आंसू टपके लहू भी टपका

हरबीर सिंह आर्य एडवोकेट

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