ऋषि ज्योति को ज्योतित किए रखने के लिए लिया गया संकल्प : गांव खंदोई में ऋषि दयानंद के आगमन की 155 वीं वर्षगांठ के अवसर पर किया गया विशेष यज्ञ

ऊंचागांव / बुलंदशहर। महर्षि दयानंद के लिए कर्ण वास और उसके आसपास का क्षेत्र जिला बुलंदशहर में विशेष कर्म स्थली के रूप में रहा । अब इस क्षेत्र में स्वामी दयानन्द के कार्यों की अलख जगाने वाले आचार्य योगेश शास्त्री के द्वारा विशेष और ऐतिहासिक कार्य करते हुए एक ऐसे स्थान की खोज की गई है जहां पर ऋषि दयानंद अपने जीवन काल में 4 महीने रहे थे।
इस स्थान को गांव चासी में स्थित एक विशाल बरगद के पेड़ के नीचे बनी झोपड़ी के रूप में इंगित किया गया है। जिसका उगता भारत की टीम ने स्वयं भी निरीक्षण किया। इस स्थान पर पहुंचने पर गांव वासियों ने बताया कि कुछ समय पहले यहां पर गेहूं के खेत में एक कुआं मिला था। जिसे खोदने पर उसमें से एक बड़ा पीतल का गिलास भी निकला था। उपस्थित लोगों ने बताया कि बुजुर्ग बताया करते थे कि यहां पर स्वामी दयानंद 4 महीने प्रवास पर रहे थे।
क्षेत्र के गांव खंदोई निवासी राजा हुलासी सिंह के यहां सन् 1867 में महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने प्रथम आगमन किया था। उनके आगमन की 155 वीं वर्षगांठ के अवसर पर यहां एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया गया। स्वामी दयानंद जी के आगमन की इस ऐतिहासिक तिथि को यहां पर एक पर्व के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर यू0पी0 प्रवासी भारतीय रत्न अवार्ड से सम्मानित संजीव राजौरा को समस्त आर्य समाज की ओर से दयानंद विभूति सम्मान से सम्मानित किया गया। ज्ञात रहे कि श्री संजीव राजौरा के पूर्वज राजा हुलासी सिंह के समय में ही स्वामी दयानंद जी इस गांव में पधारे थे।
बुधवार को वैदिक प्रवक्ता आचार्य योगेश शास्त्री ने जनपद बुलन्दशहर की तहसील स्याना के ब्लांक ऊंचागांव क्षेत्र के गांव खंदोई में पहुंचे और उसके बाद क्षेत्र के लोगो ने भव्य स्वागत किया। सन् 1867 में महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने प्रथम आगमन किया था। इसलिए शास्त्री ने क्षेत्र की खुशहाली के लिए हवन यज्ञ कर कामना की। उन्होंने स्वामी दयानंद जी महाराज के आगमन की तिथि को इस क्षेत्र के लिए वरदान बताते हुए कहा कि स्वामी जी महाराज ने इस क्षेत्र को अपने प्रवास का सबसे अधिक समय दिया । उसी का परिणाम रहा कि यहां पर लोग व्यसनों से और बुराइयों से बचे रहे। इसके साथ ही देश की आजादी के लिए भी अनेक क्रांतिकारी देकर क्षेत्र ने देश की स्वाधीनता में अग्रणी भूमिका निभाई।
आचार्य योगेश शास्त्री ने लुप्त पड़े इतिहास के तथ्यों से अवगत कराते हुए बताया कि 1867 ईस्वी में महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती का आगमन गांव खंदोई की पावन धरती पर हुआ था। गांव निवासी हुलासी सिंह जमीदार के यहां ठहरे थे औश्र महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती के कहने पर गांव के लोगो को रहने के लिए 350 बीघा भूमि को दान किया था। इसलिए उन्हे राजा की उपाधि दी थी। 155 वर्ष बाद उनकी पांचवी पीढ़ी में यू पी प्रवासी भारतीय रत्न अवार्ड से सम्मानित संजीव राजौरा को राजा की उपाधि देते हुए क्षेत्र के लोगो ने पगड़ी पहनाकर सम्मान किया और वेद पुराणों की पुस्तकें भेंट की। उसी दौरान संजीव राजौरा ने कहा कि जीवन को बिना भय के जीना चाहिए और में विदेश में भी रहकर अपनी भारतीय संस्$कृति को भुला नही पाया हूॅ।

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