एक से कैसे हो गया, वो शिव तत्व अनेक

shiv tatvबिखरे मोती-भाग 85

गतांक से आगे….
होनी हो अनहोनी जब,
सो जाता है विवेक।
ऐसे समय में जागता,
कोई बिरला एक ।। 869।।

व्याख्या :-कैसी विडंबना है मानवीय जीवन में जब कोई दुखद घटना होती है, तो उससे पूर्व मनुष्य की बुद्घि भ्रष्ट होती है। इसीलिए कहा गया है ‘विनाशकाले विपरीत बुद्घि’ विपत्ति के समय ऐसे व्यक्ति बहुत कम होते हैं। जिनके विवेक का दीपक बुझता नही है, और वे अपनी सजगता तथा समझदारी से संकट के चक्रवात से निकल जाते हैं।

एक से कैसे हो गया,
वो शिव तत्व अनेक।
सबसे बड़ा रहस्य है,
सृष्टि का कारण एक ।। 870 ।।

हमारे धर्म ग्रंथ-वेद, उपनिषद्, गीता में इस बात का उल्लेख है कि यह विराट ब्रह्माड ब्रह्मा के संकल्प मात्र से प्रकट हुआ था। वह एक से अनेक हो गया। भूमि में बोये गये बीज को यही अंकुरित करता है। शीतल जल में भी वह अग्नि बनकर छिपा है। ऐसे अनेकों रहस्य हैं। श्वेताश्वतर-उपनिषद में आता है-इस ब्रह्माण्ड का वही (ब्रह्मा) एक अंतिम कारण है।

पाप की गठरी बांधना,
और कर्मों का भार।
संग्रह तो आसान है,
भुगतै जनम हजार ।। 871 ।।

व्याख्या : पाप की गठरी और कर्मों का बोझ बढ़ाना तो आसान है किंतु इनका दुष्परिणाम (फल) भुगतना बड़ा कष्ट कारक होता है। पता नही कितने जन्मों तक किन-किन योनियों में भटकना पड़ता है।

कसकै गांठ तू बांधता,
भाव चदरिया माहिं।
खोलनी तुझको ही पड़े,
और कोई खोलै नाहिं ।। 872 ।।

व्याख्या :- प्राय: देखा गया है कि मनुष्य सांसारिक रिश्तों में अपने अहं अथवा अज्ञान के कारण गांठ लगा लेता है अर्थात रिश्तों में उलझन पैदा कर लेता है। एक समय ऐसा भी आता है जब रिश्तों की गांठों को वह स्वयं ही सुलझाता है, किंतु उसे उस समय अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कभी तो ये गांठें प्रयास करने से खुल जाती हैं, किंतु जो गांठें कसकर अर्थात विवेकशून्यता और क्रूरता के साथ लगाई होती हैं, वे खुलती नही हैं रिश्ते ही टूट जाते हैं। ठीक इसी प्रकार मनुष्य अपने जीवन में पाप कर्म करके कठोर गांठें अपने भाव शरीर अर्थात कारण शरीर में लगा लेता है जिनका दुष्परिणाम उसे जन्म जमांतरों तक भुगतना पड़ता है। इसलिए जितना हो सके अपने जीवन को गांठों से बचाकर रखो अन्यथा भुगतना तुम्हें ही पड़ेगा।
उपरोक्त विश्लेषण के संदर्भ में महात्मा गौतम बुद्घ और उनके चचेरे भाई आनंद की एक घटना याद आ रही है-महात्मा गौतम बुद्घ से आनंद ने पूछा-भगवान! जीवन में ऋजुता (सरलता अथवा कुटिलता रहित होना) कैसे आए? महात्मा बुद्घ ने कहा-आनंद….। कोई सफेद कपड़े का टुकड़ा लाओ, जब कपड़ा आ गया तो महात्मा बुद्घ ने कहा, अब इसके अंतिम छोर तक गांठ पर गांठ लगाओ, ऐसा ही किया गया। महात्मा बुद्घ ने कहा, अब इस कपड़े को पूर्वावस्था में ले आओ। आनंद ने कहा भगवन। ऐसा तो नही हो सकता। महात्मा बुद्घ ने हंसकर कहा, आनंद जो तुमने अंतिम गांठ लगायी थी उसे खोलो और फिर एक के बाद एक करके सभी गांठें खुलती चली गयीं, और कपड़ा पूर्वावस्था में आ गया। ठीक इसी प्रकार यदि मनुष्य अपनी भूलों अथवा गलतियों का परिमार्जन करे तो जीवन में ऋजुता लौट आती है। क्रमश:

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