वे अपने हो नहीं सकते जो तेरे साथ रहकर भी।
पराए गीत गाते हों, तेरे जिगरे को खाकर भी।।

क्यों करता बात बचकानी तनिक तो सोच ऐ बंदे !
भरोसा मत करो उन पर, जो करते काम है गंदे।।
वतन के हैं वह दुश्मन , अनेकों कसमें खाकर भी …
पराए गीत गाते हों, तेरे जिगरे को खाकर भी।। 1।।

दाग दामन पे हों जिनके दिलों में हो भरी नफरत।
नहीं वे दोस्त हो सकते, जिन्हां की ऐसी हो फितरत।।
चरित्र गिर गया उनका, रोज गंगे में भी नहाकर….
पराए गीत गाते हों, तेरे जिगरे को खाकर भी।। 2।।

दिलों की बात करके भी दिलों को वीरान करते हैं।
मीठी बात करके भी, कतरनी दिल में रखते हैं ।।
संग संग साथ में चलते खिलाते मुझको ठोकर भी…
पराए गीत गाते हों, तेरे जिगरे को खाकर भी।। 3।।

‘राकेश’ सुन प्यारे ! गीत नफरत के मत गाना ।
गीत ईश्वर के गाता चल, छूटता आना और जाना।।
वंदना कर सदा उसकी, सोते और जगकर भी …
पराए गीत गाते हों, तेरे जिगरे को खाकर भी।। 4।।

डॉक्टर राकेश कुमार आर्य

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