वैदिक सम्पत्ति तृतीय – खण्ड अध्याय – मुसलमान और आर्यशास्त्र

गतांक से आगे….

इस तरह से मुसलमानों ने संस्कृत भाषा के द्वारा अपने भाव, अपने विचार और विश्वासों को हमारे भावों, विचारों और विश्वासों में भरा है और हमारी संस्कृति में क्षोभ पैदा कर दिया है इसी तरह उनके दूसरे दल ने गुरु बनकर और देसी भाषा में नये-नथे ग्रन्थ रचकर भी हिन्दुओं के विश्वासों में बहुत सा अन्तर पैदा कर दिया है। यह मुसलमानों का दल जो हिन्दुओं का गुरु बनने चला था, वंशपरम्परा से अब तक मौजूद है। मुंबई निवासी सर आगा खां उसी गद्दी के वर्तमान आचार्य है और इस समय भी कई लाख हिन्दुओं के गुरु हैं। गुजरात, सिंध और पंजाब में लाखों आदमी उनके चेले हैं और हर साल कई लाख रुपया दशांश के नाम से उनके पास पहुंचाते हैं। उनके ग्रन्थ सिन्धी, पंजाबी और गुजराती भाषा की एक मिश्रित भाषा में लिखे गए हैं। उन ग्रंथों में लिखा है कि अथर्ववेद से हमारा धर्म चला है। इन्होंने इस अथर्ववेद का सिलसिला आगे चलकर कुरान में जोड़ दिया है। इसी तरह उस आदि मुसलमान को कल्कि अवतार माना गया है, जिसकी गद्दी पर इस समय सर आगाखाँ विराजमान है। इसका सिलसिला किसी तरह हजरत मोहब्बत से भी जा मिलाया है। इस धर्म में गाय खाना और पालना दोनों लिखा है पांच छः साल से सर आगाखां ने आज्ञा दे दी है कि, अब हमारे सब चेले खुलासा अपने नाम मुसलमानी ढंग के रक्खें और हिन्दुओं से पृथक हो जायँ। कहते हैं कि, हिन्दुओं की एक बहुत बड़ी जमात जिसमें लाखों पुरुषों की संख्या है, अब हिन्दुओं के हाथों से निकलने वाली है। यहां हम थोड़ा सा सर आगाखानी धर्म का भी इतिहास और सिद्धान्त लिखते हैं।
मुसलमानी धर्म के संस्थापक और कुरानमजीद के प्रचारक हजरत मोहम्मद के दामाद हजरत अली से शाहाजादा जाफर सादिक छटा इमाम हुआ। इसी से जाफरी फिरका चला, जिसको सिया कहते है। इन जाफर सादिक के इस्माईल और मूसाकाजम दो लड़के थे। इस्माइली धर्म इन्हीं इस्माइल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ‘हिस्ट्री ऑफ दि एसेशिन्स’ में लिखा है कि, इस्मालियों ने अपना राज्य इजिप्ट (मिश्र) में स्थापित किया और वह बहुत दिनों तक राज्य किया। उसमें मुस्तनसर नामी एक खलीफा हुआ, जिसने अपने बड़े लड़के मुस्तफा अलीदिन अल्लानिजार को वारिस बनाया। इसी निजार के नाम से निजारी फिरका हुआ। बहुत दिनों के बाद इन निजारी लोगों ने अपनी गद्दी अलमूत में कायम की। यह अलमूत एक पहाड़ी कला है, जो कास्पियन समुद्र के दक्षिण और ईरान के उत्तर में स्थित है। इसी को इनके ग्रन्थों में ‘अलमूत’ गढ़ के नाम से लिखा है। आज से कोई 750 वर्ष पूर्व यहीं से इन लोगों ने अपने उपदेशोंकों को हिंदुस्तान में मुसलमान धर्म के फैलाने के लिए भेजा। पहले यह लोग कश्मीर में आए और वहां से लाहौर और लाहौर से सिंध कोटड़ा ग्राम में आकर बसे। एक के ग्रन्थों में लिखा है कि –
पीर सदरदीन पंथज किया जाहर खाना मकान।
पेलो खानो आवी कर्यो ‘कोटड़ा’ ग्राम निधान।।
पीर सदरदिन जाहर थया हिंदू कार्य मुसलमान।
लोवाणा फिर खोजा कर्या तेने आप्यो साचो इमान॥
अर्थात – पीर सदरदीन ने सबसे पहले कोटड़ा ग्राम वे मुकाम किया और हिंदुओं को मुसलमान किया, तथा वहीं पर लोहाणों को खोजा बनाया। इन आनेवाले इस्लाम प्रचारकों की गोल के उस समय पीर सदरदीन गुरु थे। उन पीर सदरदीन ने अपने तीन नाम रक्खें थे। सदरदीन, सहदेव और हरीशचंद। पीर सदरदीन की गद्दी पर आजकल मुंबई निवासी हिज हाईनेस आगाखाँ विराजमान है।
क्रमश:

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