६४०० करोड़ रूपया स्वीकृत होने पर गंगा जस-की-तस

कांग्रेसी समर्थक स्वारूपनंद सरस्वीती ने यदि साईं के बजाये पतित पावनी गंगा पर बयान दिया होता तो ज्यादा उचित और अनुकूल होता….मरहूम राजीव गांधी ने जनवरी 1985 को अपने पहले संबोधन में ही गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की पहल करी थी …गंगा प्रदूषण की प्रमुख वजह आज भी गाँव..कस्बो..और शहरों की गंदगी एवं सीवर को गंगा में गिरना है..और रही-सही कसर प्रदेश की 442 टेनरियां 28 एम्.एल.डी गन्दा पानी गंगा में बहा प्रदूषित कर रही हैं क्यू की इनके ट्रीटमेंट प्लाट को नहीं चलाया जाता..और टेनरिवाले अपने खर्चो को बचाने के लिए केमिकल्ड कचरा गंगा में बहा देते है और इसमें सरकारी अमला भी शामिल है.. जो पैसे के लिए आँखे बंद किये रहता है..

क्युं गंगा को केवल हिंदुत्व से जोड़ कर और राजनीति के जाल में उलझा कर सिर्फ नारों में ही गंगा की निर्मलता को जैसे सीमित कर दिया गया है…?? यही कारण है की पिछले तीस वर्षों से पाच राज्यों की 81 परियोजनाओं में सरकार द्वारा खर्च किये गए ६४०० करोड़ रूपया स्वीकृत होने पर गंगा जस-की-तस बनी हुई है..क्या कारण है की कन्नौज से बनारस तक हज़ारों प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग और कारखानों को केवल खाना पूरी के लिए नोटीस भर्जने के नाम पर केंद्रीय प्रदुषण बोर्ड केवल उगाही करती रहती है.. इसी संकीर्ण विभाजन कारी भावनाओं एवं सही मूल भावना के न होने के चलते ही गंगा की अविरल धारा को गन्दा बना रखा है…

आज हमारी सिमित सोच और गैर जिम्मेदारी के कारण प्लास्टिक कचरे ने अंग्रेजो द्वारा बनायीं गयी कानपूर की अत्य-आधुनिक सीवरेज व्यावस्था को धवस्त कर दिया गया ..आज क्यू केवल गंगा की सोचे क्यू नहीं देश सभी प्रमुख नदियों के बारे में भी यही भावना से सोंचे ….गंगा को आज ज़रुरत है टेनरियों…सीवरेज…और ..प्लास्टिक कचरे से बचाना है ताकि यह फिर से उतनी ही पवित्र और पतित पावनी हो जाए जिसमे इंसान फिर से पवित्र डुबकी लगा सके अपने पापों से मुक्त हो सके…!!..

संदीप मिश्रा

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