देश नेशनल इमरजेन्सी की ओर ?

श्याम वेताल

कोरोना की दूसरी लहर इतनी जानलेवा बन जाएगी , इसका एहसास देश की जनता को बिलकुल नहीं था लेकिन केंद्र एवं राज्य सरकारों में बैठे लोग और धुरंधर प्रशासनिक अधिकारियों को भी इसका कोई अंदेशा नहीं था ,यह आज साबित हो चुका है। अगर था भी तो इससे पार पाने के लिए कुछ नहीं किया गया। अब हालात ऐसे बन चुके हैं कि देश को हेल्थ इमरजेन्सी या नेशनल इमरजेन्सी की और ले जाया जा रहा है.
यह समझना मुश्किल है कि वास्तव में नीति नियंता ग़फ़लत में थे या किसी राजनीतिक स्वार्थवश जानबूझ कर पूरे देश को कोरोना की आग में झुलसने दिया गया। लॉकडाउन का फैसला राज्यों पर छोड़कर केंद्र ने अपने हाथ खींच लिये। न अतिरिक्त अस्पतालों की व्यवस्था हुई , न ऑक्सीजन का प्रबंध किया गया। वैक्सीनेशन की डोर भी केंद्र ने अपने हाथों में रखी।
कोरोना की दूसरी लहर में हालात इतने क्यों बिगड़े ? पहली लहर में स्थिति पर कैसे काबू पाया गया ? जवाब कठिन नहीं है। पिछले साल मार्च में हालात ज्यों ही बिगड़ने शुरू हुए पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया। हालाँकि लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा और लाखों लोगों का रोज़गार छिन गया लेकिन लोगों की जान बच गयी। इस बार लॉकडाउन का फैसला राज्यों पर छोड़ दिया गया। राज्यों ने जैसी जरूरत समझी वैसा किया। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य ने भी स्थिति बेकाबू होने पर ही लॉकडाउन लगाया। उत्तर प्रदेश ने तो हाई कोर्ट के आदेश के बावज़ूद भी लॉकडाउन से इंकार किया और सुप्रीम कोर्ट से हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगवा दी। बताते हैं कि वहां चल रहे पंचायत चुनावों के कारण ऐसा हुआ है। कितनी विचित्र बात है कि चुनाव का राजनीतिक हित पहले ,लोगों की जान बाद में। वाह रे सियासत !
देशव्यापी लॉकडाउन न लगाने का अनुमानित मुख्य कारण भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और अर्थव्यवस्था के फिर चरमरा जाने की चिंता रही। यदि यही सोच रही होगी तो यह बहुत महंगी पड़ी है। आज हज़ारों लोगों की जान जा रही है। इस बार यह कोरोना सिर्फ उम्रदराज़ लोगों को ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में युवाओं को भी लील रहा है। संक्रमितों की बड़ी संख्या के कारण अस्पतालों में आक्सीजन की भी कमी हो गयी है और हाहाकार मच गया है।
यह बात समझ से परे है कि देश के ऊपर मंडरा रहे कोरोना – आतंक के बादलों और चारों दिशाओं से आ रहे असमय मौतों के समाचारों के बीच केंद्र सरकार को व्यापारी बनने की कैसे सूझी ?कोरोना पीड़ितों से अटे तमाम अस्पताल , लाशों से भरी पड़ी मरचुरी , श्मशानों में शव – दाह के लिए लगी लम्बी – लम्बी कतारें और मृतकों के अपनों के करुण – क्रन्दन के बीच किसी का भी कलेजा मुंह को आ जाता है लेकिन केंद्र सरकार कोरोना वैक्सीन को लेकर मुनाफा कमाने की सोच रही है। वैक्सीन की क़ीमतों में अचानक इज़ाफ़ा कर दिया गया है। राजनेताओं को लाशों पर राजनीती करते हुए तो सभी ने सुना होगा परन्तु सरकार को लाशों पर मुनफाखोरी करते किसी ने नहीं सुना होगा।
हम अभी तक प्राइवेट अस्पतालों के व्यावसायिक व्यवहार और दवा विक्रेताओं के अमानवीय बर्ताव पर ही सिर पीट रहे थे जो इस आपदा को अवसर में बदल रहे हैं। ये अस्पताल एक मुश्त बड़ी रक़म ऐंठ लेने के बाद ही कोरोना मरीज को दाखिल करते हैं और बिना पूरा भुगतान लिये परिजनों को लाश नहीं देते हैं। दवा विक्रेताओं का यह हाल है कि कोरोना की जीवन रक्षक दवाएं और इंजेक्शन के लिए मनमानी क़ीमत वसूलते हैं। अब हमारी सरकार को भी यह आपदा अवसर के रूप में दिख रही है। क्या इसी कमाई से देश की इकोनोमी को काबू में रखने का विचार है ?

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