पुस्तक समीक्षा : ‘समालोचना के सोपान’

 

‘समालोचना के सोपान’ में ज्ञानप्रकाश ‘पीयूष’ ने हरियाणा, राजस्थान व उत्तर प्रदेश के इक्कीस काव्यकारों की एक-एक काव्य कृति को लेकर उनकी कृतियों की समीक्षा प्रस्तुत की है ।अब जो स्वयं ही समीक्षक हैं, उनकी समीक्षा की समीक्षा करना कितना कठिन हो सकता है ? – यह सहज ही समझा जा सकता है।
लेखक प्रिंसिपल ज्ञानप्रकाश ‘पीयूष’ जी स्वयं में एक शिक्षाविद ,कवि , दोहाकार व समीक्षक हैं । इसी रूप में इन्होंने देशभर में ख्याति प्राप्त की है।


प्रस्तुत पुस्तक ‘समालोचना के सोपान’ की
भूमिका कहती है कि ‘सम’ और ‘आलोचना’ इन दो शब्दों से ‘समालोचना’ शब्द बना है। इस शब्द का सामान्य अर्थ है अच्छे ढंग से तथा सभी ओर से किसी वस्तु को देखना या परखना। स्पष्ट है कि लेखक ने इस पुस्तक में विभिन्न कवियों की कविताओं को सम्यक ढंग से देखा, परखा व समझा है और फिर उस पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।
पुस्तक में दी गई कृतियों में कविता, लघुकविता, गजल,हाईकु, बाल कविता, दोहा, गीत, कुंडलियां आदि काव्य के विभिन्न प्रकारों को दिया गया है। जो पाठक को अपने साथ बांधे रखती हैं।
इस पुस्तक में उदयकरण ‘सुमन’ का ग़ज़ल संग्रह ‘गर्दिशों में हौसला बनाए रखना’, आईजे नाहल की कृति ‘मरघट कौन बुहारेगा’ ,प्रोफेसर रूप :देवगुण’ के लघु कविता संग्रह ‘चांदनी रात में उड़ते बगुले’, महेंद्र जैन का ग़ज़ल संग्रह ‘गजल ऐसी सुनाओ तुम’, उषा सेठी की कृति ‘शून्य की महायात्रा’, सुभाष मित्तल ‘सत्यम’ का कुंडली संग्रह ‘मन में भरो उजास’, रश्मि अग्रवाल का कविता संग्रह ‘अरि कलम ! तू कुछ तो लिख’ , डॉक्टर राजकुमार ‘निजात’ की कृति ‘मृत्यु की खोज में’, डॉक्टर मेजर शक्तिराज की बाल कविता, डॉक्टर कुमुद रामानंद बंसल का ‘लागी लगन’ हाइकु संग्रह , डॉक्टर सुशील कौशिक की कृति ‘खिड़की से झांकते ही’ सुरेश चंद सर्वहारा का संग्रह ‘धुंध ,धुंआ और धूप’, आशा खत्री का दोहा संग्रह ‘लहरों का आलाप’ जनकराज शर्मा का कविता संग्रह ‘मैं अभी भूला नहीं हूं’ राजपाल सिंह गुलिया का दोहा संग्रह ‘उठने लगे सवाल’, बाल साहित्यकार लघुकथाकार कवि तथा गीतकार त्रिलोक सिंह ‘ठकुरेला’ के गीत संग्रह ‘समय की पगडंडियों पर’, बाल साहित्यकार के रूप में ही सुविख्यात राजकुमार जैन ‘राजन’ के कविता संग्रह ‘खोजना होगा अमृत कलश’, डॉक्टर आरती बंसल के कविता संग्रह ‘ये कॉलेज की लड़कियां’, कवि विनोद ‘सिल्ला’ का चौथा काव्य संग्रह ‘यह कैसा सूर्योदय’, ममता शर्मा ‘मनस्वी’ का कविता संग्रह ‘मन की कंदराओं में’ पर बड़ी सफलता के साथ सन्तुलित भाव और सटीक भाषा में डॉ पीयूष जी द्वारा समीक्षा प्रस्तुत की गई है। जिसके चलते ‘समालोचना के सोपान’ – पुस्तक का नाम सार्थक बन पड़ा है।
पीयूष जी सहज सरल हृदय शिक्षाविद हैं और हिंदी के प्रकांड विद्वानों में माने जाते हैं । उनकी समालोचना में भी सहज हृदयग्राही संगीत का स्वर है, जो पाठक को बोर नहीं होने देता। इनमें कृति की गहराई में जाने की बड़ी प्रबल प्रवृत्ति है। जैसे ‘चांदनी रात में उड़ते बगुले’ – मात्र 8 पंक्तियों की लघु कविता है । जिस पर डॉक्टर पीयूष जी की टिप्पणी है कि ‘चांदनी रात में उड़ते हुए बगुले और कुछ बोलते हुए बगुले आकाश में एक अनुपम दृश्य का अवलोकन करवाते हैं। रूप देवगुण की कल्पना के अनुसार यह बगुले अवश्य कहते होंगे कि चांदनी रात है, हम भी किसी से कम नहीं और यह कुदरत का करिश्मा नहीं तो और क्या है ? 8 पंक्तियों की लघु कविता में प्राकृतिक दृश्य है, लय है, बिम्ब है, कल्पना है और है भावना प्रधान कुछ शब्द।’
इस प्रकार डॉक्टर पीयूष ने कवि की कविता का और कवि की भावना का सम्मान करते हुए उस पर गम्भीर टिप्पणी प्रस्तुत की है । जिसमें उनका वैचारिक गाम्भीर्य स्पष्ट झलकता है। साथ ही उनकी उदारता भी प्रकट होती है । वह कवि की कल्पना या भावना में किसी प्रकार की कमी नहीं निकाल रहे हैं, बल्कि उसे और ऊंचाई दे रहे हैं । निश्चय ही एक सहज, सरल और उदार हृदय व्यक्ति ही ऐसी टिप्पणी प्रस्तुत कर सकता है। हर कविता और हर कवि की कृति पर उनकी वैचारिक गंभीरता इसी प्रकार प्रकट हुई है।
पुस्तक संग्रहणीय है और जो साहित्य प्रेमी सज्जन साहित्य के क्षेत्र में उतरकर लंबी यात्रा करने की इच्छा रखते हैं, उनके लिए पुस्तक बहुत ही उपयोगी हो सकती है । पुस्तक के प्रकाशक साहित्यागार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर पिन कोड 302003 है। पुस्तक मंगाने के लिए मोबाइल नंबर है – 0141- 2310785 व 4022382 ।
पुस्तक का मूल्य ₹250 है।

— डॉ राकेश कुमार आर्य

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