यज्ञ का स्थान बहुत ही शुद्घ और पवित्र रखना चाहिए। उसकी शुद्घता और पवित्रता हमारे हृदय को प्रभावित करती है, दुर्गंधित स्थान पर बैठकर हमें उसकी दुर्गंध ही कष्ट पहुंचाती रहेगी, और हमारा मन ईश्वर के भजन में नही लगेगा और न ही हमें यज्ञ जैसे पवित्र कार्य में कोई आनंद आएगा। यज्ञ का स्थान शान्त और एकान्त होना चाहिए। यदि कहीं पर शोर शराबा हो रहा है और भीड़भाड़ का स्थान है तो वहां पर आप यज्ञ कर तो सकते हैं परन्तु उस यज्ञ में वास्तविक आनंद की अनुभूति आप नही कर पाएंगे। यहां पर प्रश्न यह भी हो सकता है कि बड़े-बड़े यज्ञों में स्वाभाविक रूप से भारी भीड़ हो जाती है, तो क्या वहां यज्ञ रोक देना चाहिए? इसका उत्तर यह है कि जो लोग मन बनाकर यज्ञ के लिए यज्ञ पर आ रहे हैं, वे पहले से ही यज्ञीय भावना के वशीभूत होकर वहां मर्यादित और अनुशासित होकर उपस्थित होते हैं, जो अपने आप ही न तो शोर करते हैं और न किसी प्रकार का व्यवधान करते हैं, अपितु अपने लिए निर्धारित स्थान पर स्वयं ही आकर बैठ जाते हैं। यज्ञ का स्थान बाधा रहित हो और ऐसा होना चाहिए जहां वायु का आवाग मन हो, यह स्थान जितना ही बाधारहित होगा उतना ही उत्तम होता है।

यज्ञ से पूर्व नित्य कर्म करलें

यज्ञ के लिए यह भी अनिवार्य है कि उससे पूर्व ही आप अपने नित्यकर्म अर्थात शौच आदि से निवृत्त हो लें। ऐसा न हो कि यज्ञ आरम्भ करने के बाद आपको किसी नित्य कर्म की याद आए या आपका कोई नित्यकर्म आपको यज्ञ के बीच में व्यवधान डालने के बाध्य करे। हां, आपत्तिकाल अथवा किसी प्रकार की अस्वस्थता के कारण यदि ऐसा होता है तो उसके लिए यह बाध्यता लागू नही होगी। यज्ञ करने से पूर्व आपकी मानसिक स्वच्छता और शारीरिक स्वच्छता दोनों का होना आवश्यक है। इसके लिए आपके कपड़े भी साफ सुथरे और सादगी वाले होने चाहिएं।

यज्ञ के पात्र और आसन आदि पृथक होने चाहिएं। जिससे उनकी पवित्रता बनी रहे। यज्ञ के पात्र तांबे के हों तो उत्तम है। इनके विषय में यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ये रसोई में प्रयोग होने वाले पात्रों से अलग ही हों।

यज्ञ का समय

अग्निहोत्र प्रतिदिन प्रात: और सायंकाल में अर्थात संधि बेला में करना चाहिए, प्रात:कालीन यज्ञ सूर्योदय के पश्चात करना चाहिए और सायंकालीन यज्ञ सूर्यास्त से पूर्व करना चाहिए। सूर्यास्त के पश्चात किये गये यज्ञ में कितने ही कीट पतंगों के मरने की सम्भावना होती है, इसलिए उस यज्ञ में होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा से बचने के लिए यह आवश्यक है कि उस यज्ञ को सूर्यास्त से पूर्व ही संपन्न कर लिया जाए।

यह दैनिक अग्निहोत्र का नियम है। विशेष और दीर्घ यज्ञों का अनुष्ठान किसी भी समय किया जा सकता है। यज्ञ प्रत्येक समर्थ व्यक्ति को दोनों समय करना चाहिए। आज हमारेदेश में दैनिक अग्निहोत्र की परम्परा के छूट जाने से घर-घर में कलह और क्लेश का वातावरण व्याप्त हो गया है, उससे मुक्ति पाने के लिए यज्ञों की परम्परा को पुन: स्थापित किया जाना बहुत ही आवश्यक है।

श्रद्घापूर्वक किये जाएं यज्ञ कार्य

जब श्रद्घापूर्वक यज्ञादि पवित्र कार्य किये जाते हैं, तो इन पवित्र और शुभ कार्यों में पाप या किसी प्रकार का कोई दोष होने की तनिक भी संभावना नही रहती है। जिससे समाज और संसार का परिवेश सुंदर बनता है और हर व्यक्ति उस परिवेश को और भी अधिक सुंदर बनाने के लिए अपनी ओर से प्रयासरत रहता है। भारत की यज्ञ परम्परा में ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ का बहुत ही महत्व है, जिसे यज्ञ के साथ जोडक़र देखने की आवश्यकता है। हमें समझना चाहिए कि इनका वास्तविक अर्थ क्या है, और क्यों इनको हमारी संस्कृति में इतना अधिक महत्व दिया गया है ? जब सत्य=ईश्वर समझ में आने लगता है तो शिव=कल्याणकारी कार्यों में रूचि उत्पन्न हो ही जाती है और जहां सत्य और शिव जुड़ जाते हैं वही ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ का संगीत मंद सुगंध समीर की भांति बहने लगता है। इसीलिए भारत ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ का उपासक देश है।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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