*बहुकुंडीय यज्ञ करना चाहिए या नहीं?*

उत्तर — जी हां, अवश्य करना चाहिए।
जब किसी संस्था में वार्षिक उत्सव आदि अवसर पर 100 / 200 व्यक्ति उपस्थित हो जाते हैं, और आप उन्हें भोजन खिलाते हैं, तो उस समय वे सभी लोग क्या एक ही थाली में भोजन खाते हैं? या सबके लिए अलग-अलग 100 / 200 थालियां लगाई जाती हैं? आप कहेंगे – सबके लिए अलग-अलग थालियां लगाई जाती हैं। तब वह भोजन एकथालीय नहीं होता, बल्कि अनेकथालीय होता है।
इसी प्रकार से जब किसी संस्था में 100 / 200 व्यक्ति उपस्थित हों, और वे सब यदि यज्ञ हवन करना चाहें, अथवा वे यज्ञ प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहें, तो क्या वे 100 / 200 व्यक्ति एक ही यज्ञकुंड में हवन करेंगे? अथवा उनको एक ही यज्ञकुंड में प्रशिक्षण दिया जाएगा? नहीं। तब उनके लिए अनेक कुंड लगाने पड़ेंगे। जब भोजन अनेकथालीय हो सकता है, तो यज्ञ अनेककुंडीय क्यों नहीं हो सकता? इसमें कुछ भी आपत्ति नहीं है।
प्रश्न – एक एक व्यक्ति को अलग-अलग यज्ञ सिखाया जाना चाहिए, तब एक ही कुंड लगाना पड़ेगा, बहुत सारे कुंड नहीं लगाए जाएंगे।
उत्तर – क्या विद्यालय में एक एक विद्यार्थी को एक-एक अध्यापक अलग-अलग पढ़ाता है, या 50 विद्यार्थियों को एक ही कक्षा में बैठाकर एक ही अध्यापक एक साथ पढ़ाता है? जब एक अध्यापक एक कक्षा में 50 विद्यार्थियों को एक साथ पढ़ाता है, तब आप उसमें आपत्ति क्यों नहीं उठाते?
इसी प्रकार से एक विद्वान पंडित भी यदि अनेक यजमानों को एक साथ यज्ञ करना सिखाता है, और क्रियात्मक रूप से प्रशिक्षण देने के लिए अनेक यज्ञकुंड लगाता है, तब आप उसमें आपत्ति क्यों उठाते हैं? तब भी आपको आपत्ति नहीं उठानी चाहिए। क्योंकि अनेक यज्ञकुंड लगाकर एक साथ सबको प्रशिक्षण देना, यह कार्य भी प्रत्यक्ष प्रमाण के अनुकूल ही है, विरुद्ध नहीं है।
वेद कहता है, कृण्वन्तो विश्वमार्यम्।। संपूर्ण संसार को आर्य बनाओ। जब आप सबको आर्य बनाएंगे, तो सबको यज्ञ नहीं सिखाएंगे? क्या यज्ञ सिखाए बिना सब लोग आर्य बन जाएंगे? जब सारे संसार भर को आर्य बनाना हो, तो सबको यज्ञ का प्रशिक्षण देना ही होगा। तो एक कुंड में सबको कैसे प्रशिक्षण देंगे? स्कूल कॉलेज में जब अनेक विद्यार्थियों को कंप्यूटर सिखाते हैं, तो एक कंप्यूटर पर सबको शिक्षा नहीं दी जाती, तब बहुत से कंप्यूटर रखने पड़ते हैं। तब आप उसका विरोध क्यों नहीं करते? इसलिए सैंकड़ों व्यक्तियों को जब यज्ञ प्रशिक्षण देना होगा, तो वह भी एक कुंड में नहीं दिया जा सकता। तब भी अनेक कुंड लगाने ही पड़ेंगे।
ज़रा बुद्धि पूर्वक विचार करें। शांति से और निष्पक्ष भाव से विचार करें, तो आपको अपनी भूल समझ में आ जाएगी। जब एक साथ अनेक विद्यार्थियों को पढ़ाया जा सकता है, तो एक साथ अनेक यजमानों को यज्ञ क्यों नहीं सिखाया जा सकता? सिखाया जा सकता है।
इसलिए बहुत सारे कुंड एक साथ लगाकर अनेक यजमानों को यज्ञ प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है। इसमें कोई भी आपत्ति नहीं है।
प्रश्न — महर्षि दयानंद जी ने बहु कुंडीय यज्ञ का कहीं विधान नहीं किया है?
उत्तर — संस्कार विधि के गृहाश्रम प्रकरण में शाला कर्म विधि में लिखा है, उनका भाव है कि *जब नए घर में प्रवेश करें, तो पांच कुंड बनाने चाहिएं। वहां महर्षि दयानंद जी का बहुकुंडीय यज्ञ का विधान देख लीजिए।
अनेक बार लोग कहते हैं कि यह बात महर्षि दयानंद जी ने कहीं नहीं लिखी। ऐसे अज्ञानी लोगों के लिए यह उत्तर है, कि वे लोग शास्त्रों की परंपरा नहीं जानते, और नहीं समझते। केवल ऋषि दयानंद जी जो लिखेंगे, बस वही प्रमाण होता है क्या? अरे भोले भाइयो! शास्त्रों में आठ प्रमाण लिखे हैं। केवल एक ही प्रमाण नहीं है। जैसे कार के सारे पुर्जे एक ही चाबी से नहीं खुलते, ऐसे ही सारी बातें केवल एक ही शब्द प्रमाण से सिद्ध नहीं होती। आठ प्रमाणों में से शब्द प्रमाण तो केवल एक है। और उसमें से भी महर्षि दयानंद जी के वचन तो शब्द प्रमाण का भी केवल एक भाग है। बाकी वेदों और ऋषियों के भी तो शब्द प्रमाण हैं! उनके अतिरिक्त प्रत्यक्ष प्रमाण अनुमान प्रमाण अर्थापत्ति प्रमाण आदि बहुत से प्रमाण हैं, जिनसे बहुत सारी बातें सिद्ध होती हैं। इसलिए ऐसा कहना अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करने वाली बात है, कि यह बात महर्षि दयानंद जी ने कहीं नहीं लिखी।
कुछ लोग कहते हैं कि यह बात वेदों में कहीं नहीं लिखी। उनके लिए भी यही उत्तर है, जो मैंने ऊपर लिखा है, कि सारी बातें वेदों में नहीं लिखी होती। इसके अतिरिक्त यह भी उत्तर है कि यदि सब बातें वेदों में लिखी होती, तो यह बताएं वेद में कहां लिखा है, कि आपको पानीपत में रहना चाहिए, करनाल में नहीं। या चंडीगढ़ में रहना चाहिए, अमृतसर में नहीं। तब आप कहां रहेंगे, आपके रहने का स्थान वेद में तो कहीं लिखा नहीं?
कुछ लोग कहते हैं, यज्ञ तभी हो सकता है जब कुंड के चारों ओर यज्ञ करने वाले बैठे हों, अन्यथा वह पाखंड है। ऐसे लोगों से पूछना चाहिए, जब घर में यज्ञ करने वाले केवल दो ही व्यक्ति हों पति और पत्नी। तब क्या दो व्यक्ति बाजार से भाड़े पर लाएंगे हवन करने के लिए? और जब वे दो व्यक्ति पति-पत्नी यज्ञ करेंगे, तो क्या वह यज्ञ नहीं कहलाएगा? क्या वह पाखंड कहलाएगा? बिना विचार किये, न जाने कैसी कैसी मूर्खता की बातें लोग करते हैं। उनकी अज्ञानता पर हमें तो दया आती है।
प्रश्न — बहुत से पंडित लोग इस कारण से बहुत कुंड लगाते हैं कि उन्हें बहुत से यजमान मिलें और वे खूब धन कमाएं। अधिक धन कमाने के उद्देश्य से वे ऐसा करते हैं।
उत्तर — यदि वे ऐसा करते हैं, तो इसमें भी कोई दोष नहीं है। क्या एक व्यापारी एक नगर में अपनी दो चार पांच दुकानें नहीं लगाता। क्या रिलायंस बाटा टाटा बिरला डालमिया आदि अनेक बड़े-बड़े व्यापारी पूरे देश में अपनी अनेक दुकानें और शोरूम नहीं चलाते? जब वे धन कमाने के उद्देश्य से अनेक दुकानें खोलते हैं, तब तो आप उनका विरोध नहीं करते? फिर एक आर्य विद्वान पंडित का विरोध क्यों करते हैं? क्या यह बुद्धिमत्ता है? क्या उस पंडित को अपना जीवन चलाने के लिए परिवार की रक्षा के लिए बच्चों की पढ़ाई और अन्य सुविधाओं के लिए धन नहीं चाहिए? तो अधिक धन कमाने के लिए यदि वह अनेक कुंड लगाकर बहुकुंडीय यज्ञ कराता है, तो आपको कष्ट क्यों होता है? वह अपने परिश्रम से धन कमा रहा है, आपकी जेब नहीं काट रहा, आपका धन नहीं छीन रहा, फिर आप को उससे कष्ट क्यों है? जैसे अन्य व्यापारियों को धन कमाने का अधिकार है, ऐसे ही एक विद्वान ब्राह्मण पंडित को भी धन कमाने का अधिकार है। उसे भी सुखपूर्वक अपना परिवार चलाना है। और उसका यह कार्य वेदों और ऋषियों के अनुकूल है, प्रत्यक्ष प्रमाण के अनुकूल है, इसमें कोई भी दोष नहीं।
महर्षि मनु जी ने ब्राह्मण के छह कर्म लिखे हैं। जिनमें से एक यज्ञ कराना भी लिखा है, और वह उसका व्यवसाय है। आपको इसलिए जलन होती है, क्योंकि आपको इस व्यवसाय में धन नहीं मिल पाया। दूसरों पर व्यर्थ आरोप लगाकर अपनी जलन जनता को न दिखाएं, इसी में आपका भला है। अन्यथा जनता आपकी बुद्धि पर हंसेगी।
जब कोई अंडे मांस शराब की दुकान चलाता है, जो कि वेद विरुद्ध कार्य है, तब उसका तो आप विरोध नहीं करते। और कोई व्यक्ति यज्ञ कराकर पैसे कमाए, जो कि वेदानुकूल कार्य है, तो उसमें आपको जलन होती है। अपनी बुद्धि पर विचार तो करें, आप क्या बोल रहे हैं?
अधिक धन कमाने में जब आप उन व्यापारियों का विरोध नहीं करते, वेद विरुद्ध व्यवसाय करने वाले अंडे मांस शराब बेचने वालों का विरोध नहीं करते, तो एक आर्य पंडित विद्वान का विरोध क्यों करते हैं, जो वेदोक्त व्यवसाय करके धन कमा रहा है?
अनेक कुंड लगवा कर धन कमाने पर आप जिस पंडित ब्राह्मण विद्वान का विरोध करते हैं, कल को यदि यही पंडित आपके विरोध से दुखी होकर ब्राह्मण का व्यवसाय छोड़कर, जब अंडे और शराब की दुकान चलाएगा, तब आपकी बोलती बंद हो जाएगी। तब आप कुछ नहीं बोलेंगे। इतनी ही बुद्धि है आप में? कि अच्छे लोगों का और अच्छे वैदिक कार्यों का विरोध करें।
आप द्वारा इस प्रकार का विरोध किया जाना , आप की बुद्धि पर प्रश्न चिह्न लगाता है। आशा है, अपने पक्ष पर आप गंभीरता से पुनः विचार करेंगे। और सत्य को स्वीकार करेंगे कि बहुकुंडीय यज्ञ करना प्रमाणों के अनुकूल है, विरुद्ध नहीं।

—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़ गुजरात।

आइए अब इनको उत्तर देते हैं।
उत्तर संख्या एक- यह भी ऋषि दयानंद का ही आदेश है कि किसी का झूठा भोजन नहीं करना चाहिए। इस कारण से सभी लोग अपनी-अपनी अलग-अलग थालियां में भोजन करते हैं। और झूठा भोजन न करने के हेतु से यह नियम समारोह में ही नहीं अपितु घर में भी पालन किया जाता है। अब इनसे पूछे कि जिस प्रकार बिना बुद्धि के थालियों वाला उदाहरण दे दिया है, क्या इसमें शौचालय भी सबके लिए अलग अलग बनेगा अथवा एक में ही सब लोग निपट सकते हैं? और प्रशिक्षण देने के लिए यज्ञ की पुस्तक अथवा वीडियो बनाकर भी दिया जा सकता है। किंतु उसमें धन नही मिलेगा इस कारण से ऐसा नहीं करते हैं।

उत्तर संख्या दो- अध्यापक चाहे जितने विद्यार्थियों को पढ़ाए, किंतु सबका शिक्षण एक ही ब्लैकबोर्ड से करता है। सबके लिए अलग अलग ब्लैकबोर्ड नही रखता है। और प्रशिक्षण देकर उनसे घर पर उसका क्रियान्वन किया जा सकता है।

उत्तर संख्या तीन- गृहप्रवेश कर्म में कुंड पांच हैं किंतु यजमान अनेक नही अपितु एक ही है। वहां एक यज्ञकुंड पर अनेक यजमान आहुति नही देते हैं, अतः यह वर्तमान बहुकुंडीय यज्ञ की श्रेणी में नही आता है। उन आठ प्रमाणों के द्वारा परीक्षा करने पर किसी भी प्रमाण से बहुकुंडीय यज्ञ तथा वेद पारायण यज्ञ शास्त्र सम्मत सिद्ध नहीं होता है। जैसे अर्थापत्ति प्रमाण से जब विधि नही है तो निषेध ही हुआ समझना चाहिए। आपको शायद यज्ञ और संस्कार का अंतर भी मालूम नही है अन्यथा आप यह क्या भाड़े पर लोग लोग लायेंगे, लिखने की कुचेष्टा न करते। आपको जानकारी होनी चाहिए कि पांच महायज्ञों में पुरोहित की आवश्यकता नहीं है। उनको प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही करता है। विशेष यज्ञों तथा संस्कारों में ऋत्विक वरण किया जाता है। जिन यज्ञों की परछाई तक आप लोग छू नही पाए हैं।

उत्तर संख्या चार- व्यापारी की अनेक दुकानों के सिद्धांत से आपने स्वयं ही यह स्वीकार किया कि बहुकुंडीय यज्ञ आपके लिए व्यापार की श्रेणी में ही आता है। आप केवल अधिक यजमान होंगे तो धन भी अधिक मिलेगा, के सिद्धांत पर कार्य कर रहे हैं। यह आपने स्वीकार किया, इसके लिए हार्दिक आभार। आपने बहुकुंडीय परंपरा को वेदोक्त व्यवसाय कहा, किंतु ऐसा कोई आदेश हमको वेद में नही मिला कृपया इसका प्रमाण देने का कष्ट करें। और एक ही कुंड पर चारों ओर यजमान बैठ सकता है, इसका भी प्रमाण देने की कृपा करें। और इस विषय पर शास्त्रार्थ की चुनौती स्वीकार करके हमें कृतार्थ करें। अति कृपा होगी।
रवींद्र आर्य वैदिक प्रचारक
कानपुर नगर
18/04/2024

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