देश के लोगों को वायु प्रदूषण से कब मिलेगी मुक्ति

दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण इस समय किस खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है , इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में जो लोग सिगरेट नहीं पीते उनके फेफड़ों के कैंसर में बीते 3 वर्ष से 50% की वृद्धि आंकी गई है। इस विषय में एक और भी खतरनाक तथ्य यह है कि जो लोग दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहते हैं ,वह प्रतिदिन 44 सिगरेट के बराबर पीते हैं , जबकि कोलकाता का यह आंकड़ा 3 है । यह भी एक तथ्य है कि दिल्ली की अपेक्षा मुंबई तथा बेंगलुरु के लोग प्रतिदिन केवल एक सिगरेट के बराबर ही पीते हैं। दिल्ली को विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुरक्षित स्तर से 13 गुणा अधिक प्रदूषण का सामना करना पड़ा है। संसार के सबसे अधिक प्रदूषित 21 शहरों में भारत की राजधानी दिल्ली भी सम्मिलित है । एक दुखद तथ्य है कि भारत में प्रत्येक वर्ष 12 लाख लोगों को प्रदूषण के कारण असमय ही काल का ग्रास बनना पड़ रहा है।

यह दुखदायी स्थिति तब है जब भारत की सरकार और न्यायालय समय-समय पर वायु प्रदूषण को लेकर अपनी चिंता और आतुरता व्यक्त करते रहते हैं । लगता है कि सरकार के स्तर पर जितनी चिंता और आतुरता व्यक्त की जाती है वह केवल दिखावे के लिए है । यथार्थ में नौकरशाही कुछ भी करने में असमर्थ है । इस बात का पता इस तथ्य से चल जाता है कि भारतवर्ष के सबसे अधिक प्रदूषित 21 शहरों में भी दिल्ली का स्थान ‘ सम्मानजनक ‘ स्थान पर है। यहां की हवा के साथ – साथ पानी भी अन्य शहरों की अपेक्षा सबसे अधिक प्रदूषित पाया गया है । जबकि मुंबई जैसे महानगर का पानी सबसे अच्छा है । दिल्ली में प्रदूषण के लिए सबसे बड़ी समस्या नए निर्माण और बढ़ती वाहन संख्या को माना जाता है।

इस समय एनसीआर के लोगों के जीवन को भारी खतरा है ।लोगों के सांस लेने के मौलिक अधिकार पर भी पहरे बैठा दिए गए हैं। वायु प्रदूषण पर आयोजित पहले वैश्विक सम्मेलन में प्रस्तुत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते देश में मानसून के समय होने वाली वर्षा में कमी आ सकती है । इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में घरेलू कारणों की वायु प्रदूषण में हिस्सेदारी 22-52 प्रतिशत है । इसके अनुसार यदि घरों में ईंधन के रूप में केरोसीन या लकड़ी का प्रयोग बंद कर दिया जाए तो इस प्रकार के प्रदूषण को बहुत अधिक सीमा तक कम किया जा सकता है । रिपोर्ट के अनुसार ऐसा करने से हर वर्ष 20 लाख लोगों का जीवन बचाया जा सकता है।

अकाल मृत्यु के विषय में भी भारत एशिया में शीर्ष 5 देशों में सम्मिलित है । जिससे चिंता और भी अधिक बढ़ जाती है । इस सूची में सबसे ऊपर उत्तर कोरिया है और फिर चीन है ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व के जिन 21 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची जारी की है , उनमें से 14 शहर भारत वर्ष के हैं । इनमें भी उत्तर प्रदेश का कानपुर प्रदूषण के क्षेत्र में सबसे प्रथम स्थान पर है । इसके उपरांत फरीदाबाद, वाराणसी, गया, पटना, दिल्ली, लखनऊ, आगरा, मुजफ्फरपुर, श्रीनगर, गुड़गांव, जयपुर, पटियाला और जोधपुर हैं ।

वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान व शोध प्रणाली ‘सफर’ के अनुसार दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण में वाहनों की भागीदारी 41 प्रतिशत है । इसके पश्चात हवा में उपलब्ध धूल के कण प्रदूषण में वृद्धि के लिए उत्तरदायी हैं । हवा को दूषित करने में इनकी भागीदारी 21.5 प्रतिशत है. वहीं, उद्योगों की वायु प्रदूषण में हिस्सेदारी 18.6 प्रतिशत है ।

भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने पिछले वर्ष दिल्ली में वायु प्रदूषण को देखते हुए स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा करते हुए लोगों से घरों के बाहर न निकलने की अपील की थी । रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष दिल्ली की हवा में सांस लेना दिनभर में 44 सिगरेट पीने जितना खतरनाक बताया गया था ।

इतनी अधिक खतरनाक स्थिति होने के उपरांत भी भारत की सरकार देश में यज्ञ हवन के माध्यम से प्रदूषण को नियंत्रित और समाप्त करने की ओर ध्यान नहीं दे रही है । पराली के विषय में भी देश के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और संबंधित प्रदेश सरकारों को यह निर्देश तो दिया है कि वे किसानों को पराली का उचित मूल्य दें , परंतु न तो न्यायालय ने और ना ही सरकारों ने इस ओर ध्यान दिया है कि पराली को जलाने के स्थान पर उसे बनाए रखने के लिए गायों की संख्या बढ़ाई जाए , जिससे गायें उसे खाकर समाप्त कर दें। फिर गायों के गोबर से खाद बनाकर खेतों में उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए । इस स्वाभाविक और प्राकृतिक प्रक्रिया को देश के न्यायालय और सरकार इसलिए अपनाने के लिए प्रेरित नहीं कर रही हैं कि उनके ऐसा करने से देश के मांसाहारी लोग इसका विरोध करेंगे। इससे पता चलता है कि देश की व्यवस्था में बैठे लोगों को कैसे लोगों की चिंता है ? निश्चित रूप से उन लोगों की चिंता सरकार को नहीं है जो व्यवस्था को व्यवस्थित बनाए रखने में विश्वास रखते हैं और जो प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखना अपना धर्म मानते हैं । सरकारों की और न्यायालयों की चिंता उन लोगों को लेकर है जो प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ने की गतिविधियों में लगे हुए हैं और यज्ञ , हवन व गाय आदि के उचित रखरखाव को जो मूर्खतापूर्ण कार्य मानते हैं , साथ ही ऐसा करने वालों का उपहास उड़ाते हैं।

जब व्यवस्था में बैठे लोग व्यवस्था को अव्यवस्थित करने वाले लोगों के संरक्षण का काम करने लगते हैं तो समझना चाहिए कि विनाश की भयंकर और काली घटाएं महाविनाश की सूचना दे रही होती हैं । जहां अयोग्यों का सम्मान होता है या उनको संरक्षण दिया जाता है, वहां दुर्भिक्ष , मरण और भय का साम्राज्य होता है ।

आधुनिकता और प्रगतिशीलता के नाम पर हमने अभी तक अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने का ही कार्य किया है । अभी भी समय है कि हम चेत जाएं और समय रहते यह निर्णय ले लें कि हम यज्ञ , हवन और गाय आदि के उचित रखरखाव को अपनाकर अपने भविष्य को सुरक्षित करने का काम करेंगे। प्रत्येक व्यक्ति 24 घंटे में जितना प्रदूषण फैलाता है उसे वह साफ करने के लिए प्रेरित किया जाए और ऐसा वह यज्ञ , हवन नित्य करके अपने घर में रहकर भी कर सकता है।

मोदी जी को यह समझ लेना चाहिए कि देश की जिस राजधानी दिल्ली में वे रहते हैं उसके 40% से अधिक लोग उसको छोड़ देना चाहते हैं , क्योंकि इसकी हवा इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि दिल्ली लोगों के लिए अब ‘ डेथ चेंबर ‘ का काम कर रही है।

देश के लोगों को ‘ अच्छे दिनों ‘ का वचन देकर 2014 में मोदी जी सत्ता में आए थे । 2019 में देश के लोगों ने उन्हें देश की गद्दी फिर सौंप दी है , परंतु ‘ बुरे दिनों ‘ की काली घटाएं बड़ी भयंकरता के साथ जिस प्रकार गहराती जा रही हैं , उसके दृष्टिगत तो यही कहा जा सकता है कि हम ‘ अच्छे दिनों ‘ की ओर बढ़ते – बढ़ते ‘ बुरे दिनों ‘ की अंधेरी सुरंग में घुसते जा रहे हैं।

देश की सरकार को चाहिए कि शाकाहार को देश का राष्ट्रीय भोजन घोषित कर उसे अनिवार्य रूप से लागू किया जाए और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक रूप से सभी जीवधारियों के जीवन की रक्षा करना मानव का धर्म घोषित किया जाए। इसके साथ – साथ यज्ञ- हवन के माध्यम से वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए महायज्ञों की भारत की प्राचीन परंपरा को फिर से स्थापित करने के लिए भी कानून बनाया जाए।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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