वैदिक धर्म के लिए समर्पित व्यक्तित्व का नाम है मंसाराम आर्य

swami virjanand inter college

मेरठ। यहां के कस्बा दादरी में चल रहे स्वामी ब्रजानंद इंटर कॉलेज के संस्थापक मंसाराम आर्य जीवन भर वैदिक धर्म के लिए समर्पित होकर कार्य करते रहे । उन्होंने वैदिक धर्म की सेवा के लिए तन मन धन समर्पित किया। पूर्ण निष्ठा के साथ काम किया और क्षेत्र में आर्य समाज को घर-घर तक पहुंचाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। यहां चल रहे स्वामी ब्रजानंद इंटर कॉलेज की स्थापना उन्होंने आर्य समाज की एक संस्था के रूप में अपनी निजी भूमि पर की थी। जिसे वह अपने जीवन काल में ही गांव समाज के लोगों को दे गए थे और कह गए थे कि इस संस्था का उपयोग स्वामी दयानंद जी महाराज के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए। अब से 60 – 70 वर्ष पूर्व उन्होंने वैदिक धर्म के लिए समर्पित होकर जब रणक्षेत्र में उतरकर काम करना आरंभ किया तो अनेक लोगों ने उनके साथ देना स्वीकार किया। उनकी धर्म के प्रति सत्यनिष्ठा को देखकर अनेक विद्वानों, आचार्य संन्यासियों ने भी उन्हें अपना भरपूर सहयोग और आशीर्वाद प्रदान किया। आज उनके इस कार्य को उनके सुपुत्र अजय कुमार आर्य एडवोकेट पूरी निष्ठा और मेहनत के साथ निर्वहन कर रहे हैं।

श्री अजय कुमार आर्य ने हमें बताया कि इस संस्था में होने वाले वार्षिक कार्यक्रमों के अवसर पर आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान और भजनोपदेशक स्वामी भीष्म जी अनेक बार इस संस्था में प्रचार और उपदेश हेतु उपस्थित हुए । उन्होंने यहां पर आकर बड़े-बड़े कार्यक्रमों में उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन किया। स्वामी भीष्म जी को सुनने के लिए उस समय दूर-दूर से लोग आया करते थे। इसी प्रकार आर्य ज्योतिष स्वरूप जी जैसे वैदिक विद्वान के भी अनेक बार यहां पर प्रवचन और उपदेश कराये गये । उस समय लोगों में आचार्य जी जैसे विद्वानों को सुनने की भी बहुत अधिक ललक हुआ करती थी।

आर्य जगत के विद्वान भजनोपदेशक महाशय लक्ष्मण सिंह बेमोल और महाशय बेगराज जी ने भी यहां पर अनेक बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। इसके अतिरिक्त वेद प्रकाश श्रोत्रिय, स्वामी कर्मवीर जी महाराज, स्वामी श्रद्धानंद जी ( हरियाणा ) , स्वामी धर्मेश्वरानंद जी महाराज सहित अनेक वैदिक विद्वान समय-समय पर यहां पर उपस्थित होते रहे हैं।

श्री आर्य ने बताया कि गांव और पड़ोसी गांवों के अनेक आर्य जनों ने स्वर्गीय महाशय मंसाराम जी का भरपूर सहयोग किया। जिनकी मेहनत और ईमानदारी से वह बहुत अधिक प्रभावित रहे । यही कारण रहा कि अपनी भूमि में स्थापित विद्यालय को भी वह गांव व समाज के लोगों को यह कहकर सौंप गए कि इस विद्यालय में उनके जाने के पश्चात भी वैदिक धर्म के लिए कार्य होता रहना चाहिए । इसी भाव से प्रेरित होकर वह अपने पिता की भावनाओं का सम्मान करते हुए कार्यक्रमों के प्रति पूर्ण समर्पित होकर कार्य करते हैं।

इस विद्यालय में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि बच्चों को वैदिक धर्म के विषय में विशेष जानकारी दी जाए। भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण पक्ष को भी यहां बताने का प्रयास किया जाता है। इसके अतिरिक्त वैदिक धर्म के सिद्धांतों के प्रति बच्चों को बचपन में ही संस्कार देने का भी प्रयास किया जाता है ।

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