हिंदूनिष्ठ राजनीति के पुरोधा सावरकर

               प्रभुनाथ शुक्ल

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में वीर सावरकर जैसा व्यक्तित्व होना मुश्किल है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान वीर सावरकर ने हिंदुत्व की विचारधारा को

पल्लवित और पोषित किया। देश के वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक माहौल में सावरकर के विचारों की प्रासंगिकता बेहद अहम हो गई है। लेकिन

सावरकर का त्याग और बलिदान भारतीय राजनीति की विचारधारा में विभाजित हो गया है। यह हर भारतीय के लिए चिंता और विमर्श का सवाल है। देश की राजनीति में सावरकर की विचारधारा के मायने चाहे जो हों, लेकिन सावरकर होना कोई साधारण बात नहीं। सावरकर ने जिस विचारधारा को स्वाधीनता काल में आगे बढ़ाया था आज हिंदुत्व के लिए उस विचारधारा की कितनी अहमियत है यह देश खुद समझ सकता है। भारत और पश्चिम में हिंदुत्व के उभार को लेकर किस तरह का उग्र विश्लेषण होता है यह सर्व विदित है।

देश की राजनीति में आज हम जिस हिंदुत्व का निवेश कर आगे बढ़ रहे हैं वह एक नए रूप में परिभाषित हो रहा है। इसकी आवश्यकता सावरकर ने बहुत पहले बता दिया था। हालांकि सावरकर की इस विचारधारा पर दक्षिण और वामपंथ में काफी टकराहट है। दक्षिणपंथ जहां इसे अपनी विरासत मानकर इस पर गर्व करता है वहीं सेक्युलरवादी और वामपंथी विचारधारा के लोग इसे अलगाववाद की नीति कहते हैं। सावरकर रत्नागिरी जेल में रहते हुए 1921 में हिंदुत्व नाम से एक किताब लिखा था। वैसे यह किताब उनके उपनाम यानी बदले नाम से प्रकाशित हुईं। क्योंकि सावरकर उस समय जेल में बंद थे उन पर अंग्रेजों ने कड़ी निगरानी रखी थी। किस की बात हम आज कर रहे हैं उसे सावरकर बहुत पहले समझ गए थे। सावरकर को राजनीतिक विचारधारा में बांटना उचित नहीं होगा। पूरी दुनिया में इस्लामी गतिविधियां जहां तेजी से बढ़ रही हैं, वहीं भारत में हिंदुत्व के उभरते नए क्षितिज एक अच्छा संकेत है। लेकिन राजनीतिक विमर्श सावरकर को लेकर कई बड़े सवाल पैदा करता है।

वीर सावरकर के हिंदुत्व को राजनीति से जोड़ना कर देखते थे। वह हिंदुत्व को धर्म से अलग रखना चाहते थे। ऐसे लोगों का मानना है कि सावरकर का हिंदुत्व धर्म से न होकर राजनीतिक विचारधारा से जुड़ा था।सावरकर अपने हिंदुत्व की विचारधारा में पश्चिम के सांस्कृतिक निवेश का घोर विरोध करते थे। उनके विचार में हिंदुत्व एक जीवन पद्धति और सभ्यता है। सिंधु घाटी सभ्यता से आने वाले लोग ही हिंदुत्व की पृष्ठभूमि से आते हैं। पवित्र भूमि से जुड़ने वाले लोगों को ही हिंदुत्व का पोषक मानते थे।

सावरकर की विचारधारा पर अध्ययन से पता चलता है कि वह इंग्लैंड में पढ़े होने के नाते आधुनिक विचारधारा के पोषक रहे। हालांकि स्वाधीन आंदोलन में अपने को बलिदान करने वाले मुस्लिम क्रांतिकरियों का बहुत सम्मान करते थे। लेकिन सेल्यूलर जेल में जाने के बाद मुसलमानों पर उनकी विचारधारा बदल गई। यह अंग्रेजों की फुटडालो राजनीति करो की नीति से हुआ। अंग्रेजी हुकूमत ने वीर सावरकर को बहुत प्रताड़ित किया। क्योंकि इस जेल में अधिकांश कैदी हिंदू थे लेकिन उन पर निगरानी करने वाले सिंधी बलोची और पठान थे। जेल में इन्हीं निगरानी ओहदेदारों की आड़ में अंग्रेज हिन्दू और मुसलमान में फूट डालना चाहते थे। इनकी प्रताड़ना की वजह से जेल में सावरकर के विचार बदल गए। इसका नतीजा यह हुआ कि सेल्यूलर जेल में धर्म के आधार पर कैदियों को प्रताड़ित किया जाने लगा।

जेल में हिंदू कैदियों का सबसे अधिक उत्पीड़न किया गया। इतनी अधिक लोगों को प्रताड़ना दी गई कि लोगों को धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर कर दिया गया। इसके खिलाफ वीर सावरकर ने आवाज उठाई। फिर सावरकर को वहां से रत्नागिरी जेल में भेज दिया गया। लेकिन वहां भी सेल्यूलर जेल जैसी परिस्थितियों पैदा की गई। क्योंकि इस नीति के पीछे अंग्रेजों की साजिश थी। अंग्रेज मुस्लिम निगरानी ओहदेदारों की तरफ से हिंदू कैदियों को प्रताड़ित करवाते थे। जिसकी वजह से हिंदुओं में मुसलमानों के प्रति घोर नफरत पैदा हुई और अंग्रेज अपने चाल में सफल हुए। जेल यात्रा से ही सावरकर के विचार में उग्र हिंदुत्व की बात आई और राजनीति में उन्होंने खुलकर हिंदुत्व विचारधारा की वकालत किया।

सावरकर की विचारधारा को इस्लामी धार्मिक आंदोलन ने भी बड़ा मोड़ दिया। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में तमाम मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं की तरफ से मुद्दे उठाए जाने लगी जिसमें बहावी आंदोलन उन्हें काफी प्रभावित किया। मुसलमानों में धार्मिक कट्टरता बढ़ाने की वजह से सावरकर को इन गतिविधियों ने बहुत गहराई से प्रभावित किया। इसका नतीजा रहा कि वह हिंदुत्व विचारधारा का खुलकर समर्थन किया और उसे आगे बढ़ाया। फिर देश की राजनीतिक मुसलमानों का हस्तक्षेप बढ़ाने लगा। जिसने सावरकर को काफी हद तक प्रभावित किया।

सावरकर हिंदुत्व की विचारधारा की एक पहचान हैं।उनका मानना था कि भारत के लिए हिंदुत्व एक विशाल शब्द है। उनकी विचारधारा में भारत के सभी धर्म हिंदुत्व शब्द में समाहित हैं। उनके विचार में हिंदू वहीं है जो देशभक्ति करते हैं और उसे अपनी मातृभूमि मानते हैं। साल 1937 में रत्नागिरी जेल से रिहाई के बाद उन्होंने हिंदुत्व की बड़ी वकालत किया और राजनीति एवं सामाजिकता के लिए हिंदुत्व को बेहद जरूरी बताया। उन्होंने भारत को हिंदूराष्ट्र के रूप में स्थापित करने की विचारधारा का पूर्ण समर्थन किया।

देश में पहली बार वीर सावर ने हिंदू महासभा का गठन किया और उसे एक राजनीतिक दल एवं विचारधारा के रूप में स्थापित किया। 1939 में सावरकर के नेतृत्व में मुस्लिम लीग और गैर कांग्रेसी दलों के गठबंधन सरकार गठन करने का प्रयास किया। क्योंकि 1939 ब्रिटिश ने भारत को एक युद्धरत देश घोषित कर दिया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सामूहिक त्यागपत्र दे दिया था। सावरकर ने हिंदू महासभा की अगुवाई में सरकार बनाने के लिए गठबंधन किया। इस घटना के बाद देश में महात्मा गांधी की अगुवाई में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई। सावरकर को महात्मा गांधी की हत्या के लिए एक साजिश कर्ता के रूप में उन्हें आरोपित किया गया। इस पर अदालत में मुकदमा भी चला लेकिन सबूत की अभाव में अदालत से उन्हें बरी कर दिया।

सावरकर भारत के गौरव हिंदुओं के लिए गर्व का विषय हैं। सावरकर का जन्म महाराष्ट्र के नासिक में 28 में 1883 को हुआ था। सावरकर होना आसान काम नहीं है। हम हिंदुत्व के प्रणेता को जन्म दिवस पर नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनकी विचारधारा पर चलने पर भारत गौरवान्वित होगा।

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