छोटे और कमजोर परिवार इस्लामिक कट्टरपंथी के समक्ष क्यों है मजबूर

  • दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)

मजहब की ताकत या क्रूरता यह कैसी सोच है जो इस्लामिक आतंक का पर्याय बन चुकी है । एक सन्देश जो इस्लामिक कट्टरपंथी से ग्रसित सैकड़ो संस्थानों में प्रेषित किया गया जिस कारण सभ्य समाज असहाय होकर सड़को पर आ गया अपनों बच्चो के जीवन के प्रति चिंतित होकर ईश्वर से प्रार्थना करने लगा । जरा सोचिये इन कटटरपंथियों की इतनी हिम्मत हो कैसे जाती है की ये लोग सभ्य समाज को भयभीत भी करते हैं और अवसर मिलने पर प्रताड़ित भी । आज अधिकतर माता पिता एक बच्चे तक सिमित हैं यदि उसे कुछ हो गया तो पुरे परिवार की खुशिया समाप्त । सभ्य समाज ऐसी घटनाओं का प्रतिकार करने हेतु सज नहीं है, सभ्य समाज अपने अपमान और पीड़ा को अपना भाग्य मानकर मौन धारण कर लेता है या सरकार और कानूनी व्यवस्था को इन सबका दोषी बना देता है । जबकि सत्य यह है जब तक इस इस्लामिक कटटरपंथी सोच के विरुद्ध आम जनमानस स्वयं संघर्ष नहीं करेगा कोई कुछ नहीं कर सकता । एक प्रकरण अभी भी याद है जब अमरनाथ यात्रा पर धमकी आयी तो बाला साहेब ठाकरे के नेतृत्व में प्रतिकार स्वरूप कहा गया था यदि अमरनाथ यात्रा पर हमला हुआ तो बोम्बे शहर से एक भी उड़ान हज यात्रा के लिए नहीं जा पायेगी जिसके परिणाम स्वरूप अमरनाथ यात्रा में कोई रूकावट नहीं आयी । वास्तविकता तो यह है की यदि सभ्य समाज इस इस्लामिक कट्टरपंथी क्रूरता के विरुद्ध एकजुट नहीं हुआ तो कहीं आने वाले वर्षो में यह सन्देश न आने लगे की यदि अपने बच्चो को शिक्षा देनी है तो सिर्फ मजहबी शिक्षा ही दे सकते हो । वर्तमान सरकार इस कट्टरपंथी सोच से पूरी तरह लड़ रही है परन्तु सम्पूर्ण दायित्व सरकार का नहीं सभ्य समाज को भी अपने परिवार बढ़ाने होंगे और उन्हें मजबूत भी करने होंगे ।

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