परिवारवादी कांग्रेस का चरित्र और ए0 राजा का बयान

1885 में जब कांग्रेस की स्थापना हुई तो उस समय इसे एक अंग्रेज अधिकारी ए0ओ0 ह्यूम के द्वारा स्थापित किया गया था। 1857 की क्रांति की पुनरावृत्ति से बचने के लिए अंग्रेज अधिकारी के द्वारा इस संगठन को स्थापित किया गया था। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ से ही इस संगठन के मंच पर स्वनामधन्य अनेक नेताओं का पदार्पण हुआ। बाल गंगाधर तिलक 1890 में ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। वह क्रांतिकारी व्यक्तित्व के धनी थे । उनके भीतर लोगों को आकर्षित करने का अद्भुत माद्दा था। यही कारण था कि अंग्रेज उन्हें ‘भारतीय अशांति के पिता’ के नाम से पुकारते थे। लोगों ने भी उन्हें लोकमान्य की पदवी दे दी थी। तिलक बिपिनचंद्र पाल और लाला लाजपत राय के साथ मिलकर कांग्रेस को स्वराज्य के निकट ले जाने का कार्य कर रहे थे। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ – कहकर कांग्रेस को क्रांतिकारी बनाने का मार्ग प्रशस्त किया। यदि उस समय की कांग्रेस का सही स्वरूप सामने लाया जाए तो पता चलता है कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उस काल में कांग्रेस में सर्वश्रेष्ठ का स्थान प्राप्त कर चुके थे, पर कांग्रेस ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। 1907 में सूरत अधिवेशन में कांग्रेस का विभाजन हुआ और बाल गंगाधर तिलक गरम दल के नेता होकर कांग्रेस से अलग हो गए। यदि कांग्रेस बाल गंगाधर तिलक की कांग्रेस बनी रहती तो इसका इतिहास दूसरा होता।
1915 में कांग्रेस में महात्मा गांधी का पदार्पण हुआ। 1920 से 1930 के बीच में कांग्रेस में नेताजी सुभाष चंद्र बोस सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरते जा रहे थे। उनके पीछे-पीछे उस समय नेहरू थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनके समर्थक उस समय कांग्रेस में पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव लाकर कांग्रेस को देश की पूर्ण स्वाधीनता के लिए तैयार करने में लगे हुए थे। धीरे-धीरे गांधी जी कांग्रेस में सक्रिय होते जा रहे थे। तब तक वह अपने जीवन का पहला आंदोलन अर्थात असहयोग आंदोलन लड़ चुके थे। खिलाफत आंदोलन से भी उन्हें मुसलमानों की सहानुभूति प्राप्त हो चुकी थी। गांधी जी पूर्ण स्वाधीनता का संकल्प प्रस्ताव लाने वाले लोगों को निरंतर पीछे करते जा रहे थे। सर्वाधिक सुयोग्य को गांधी जी ने पीछे धकेलने का संस्कार कांग्रेस को यहीं से दिया। सरदार वल्लभभाई पटेल को भी गांधी जी ने अध्यक्ष बनने से रोकने में सफलता प्राप्त की और उनके स्थान पर नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनवा दिया। बाद में नेताजी सुभाष चंद्र बोस गांधी जी के विरोध के उपरांत भी जब कांग्रेस का अध्यक्ष बनने में सफल हो गए तो सर्व स्वीकृत रूप से कांग्रेस के अध्यक्ष बने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से गांधी जी और उनके शिष्य नेहरू जी ने बोलना छोड़ दिया। यह सब इसलिए किया गया था कि एक सुयोग्य नेता को अपमानित और तिरस्कृत कर पीछे हटा दिया जाए। परिणाम स्वरूप नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्वयं पीछे हट गए और उन्होंने 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इस प्रकार कांग्रेस ने फिर एक सुयोग्य व्यक्तित्व को पीछे कर दिया। इससे पहले कांग्रेस आर्य समाज के दिग्गज नेता स्वामी श्रद्धानंद जी को भी उनकी सुयोग्यता के करण पचा नहीं पाई थी और उन्हें भी कांग्रेस से दूर कर दिया गया था।
धीरे-धीरे देश की आजादी की घड़ी आई। उस समय कांग्रेस ने सुयोग्यता के आधार पर सरदार वल्लभभाई पटेल को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाने का संकल्प लिया। पर गांधी जी ने फिर सुयोग्य सरदार वल्लभभाई पटेल को पीछे हटाकर अपेक्षाकृत कम योग्य नेहरू को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। यहीं से देश में परिवार भक्ति आरंभ हुई । नेहरू की मृत्यु के उपरांत इंदिरा गांधी ने केवल इस आधार पर प्रधानमंत्री का पद अपने लिए प्राप्त करना चाहा कि वह जवाहरलाल नेहरू की बेटी थीं।  उस समय तो लोगों ने जैसे तैसे लाल बहादुर शास्त्री को देश का प्रधानमंत्री बना दिया, पर जब संदेहजनक परिस्थितियों में शास्त्री जी की मृत्यु हो गई तो उस समय कांग्रेस में परिवार भक्त चाटुकारों ने इंदिरा गांधी को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। यद्यपि कांग्रेस में तब अनेक ऐसे वरिष्ठ नेता थे जो इंदिरा गांधी से अनुभव और निर्णय लेने की क्षमता में कहीं अधिक योग्यता रखते थे। इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी को भी परिवार भक्ति के कारण ही प्रधानमंत्री का पद मिला। इंदिरा गांधी की मृत्यु के समय भी प्रणब मुखर्जी जैसे कई नेता कांग्रेस में थे, पर उन्हें उपेक्षित कर दिया गया।
1991 में जब राजीव गांधी की हत्या की गई तो उसके पश्चात चाहे पी0वी0 नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बन गए थे पर कांग्रेस में परिवार भक्त लोगों ने कभी उन्हें प्रधानमंत्री नहीं माना। उनका अनेक स्थानों पर अपमान किया गया। यहां तक कि उनके अंतिम संस्कार के समय भी उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह पात्र थे।  बाद में 2004 में जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने तो उस समय सोनिया गांधी ने दूर से रहकर ‘सुपर पीएम’ के रूप में देश की सत्ता को अपने हाथों से संचालित किया। अनेक अवसर ऐसे आए जहां कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उपस्थित रहे, पर किसी कार्यक्रम का शुभारंभ या फीता काटने की रस्म सोनिया गांधी के द्वारा की गई। कहने का अभिप्राय है कि सुयोग्य लोगों को पीछे कर अयोग्य लोगों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। सोनिया गांधी कांग्रेस की एकमात्र ऐसी अध्यक्ष है जो सबसे अधिक देर तक इस पद पर रही हैं । अब आते हैं उनके बेटे राहुल गांधी पर। कांग्रेस को अनेक चुनावों में पलीता लगाकर भी वह अपने आप को कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में दिखाते रहते हैं। कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष भी उन्हें शेर कहकर प्रोत्साहित करते हैं और उनका यह शेर अपनी ही पार्टी का शिकार करता जा रहा है।

इस प्रकार कांग्रेस ने जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को सत्ता सौंपते समय कभी या नहीं देखा कि उसे समय कांग्रेस में कितने बड़े और योग्य नेता उपस्थित थे ? दुर्भाग्य से वह इस स्थिति से आज भी नहीं निकली है।
कांग्रेस की देखा देखी देश में अनेक राजनीतिक दल ऐसे बने जो किसी एक परिवार की परिक्रमा से बाहर नहीं निकाल पाए। उनकी भी स्थिति इसी प्रकार की है। परिवारवाद की परिधि में चक्कर काट रहे इन सभी राजनीतिक दलों का उद्देश्य सत्ता को प्राप्त करना होता है। राष्ट्र और राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के प्रति इनका ध्यान कभी नहीं जाता। जेब भरने में और चुनाव जीतने में इनकी रुचि अधिक दिखाई देती है।

कांग्रेस ने भाषाई आधार पर प्रांतों का निर्माण किया । अनेक भाषाओं को सम्मान देने के नाम पर अपनी राष्ट्रभाषा की उपेक्षा करना इसने उचित माना । राष्ट्रभाषा हिंदी के स्थान पर अंग्रेजी को दक्षिण के लोगों के लिए कहीं अधिक उपयुक्त माना गया। उसी का परिणाम है कि कभी कांग्रेस की मनमोहन सरकार में मंत्री रहे ए0 राजा भारत को एक राष्ट्र ही नहीं मानते। यदि आज ए0 राजा जैसे लोग इस प्रकार की बात कर रहे हैं तो इसका कारण केवल एक है कि कांग्रेस ने भी ‘भारत एक राष्ट्र है’ की छवि कभी बनने नहीं दी। इसने विभिन्नताओं को पाला पोसा और बड़ा किया। आज भाषा, संप्रदाय, क्षेत्र आदि के आधार पर बनी कथित विभिन्नताओं के बीच राष्ट्र को ए0 राजा जैसे लोगों की आंखें देखा नहीं पा रही हैं। यदि कांग्रेस सुयोग्यता के आधार पर श्रेष्ठतम को स्थान और सम्मान देने की पार्टी रही होती तो निश्चित रूप से ऐसी स्थिति नहीं आई होती।

डॉ राकेश कुमार आर्य

(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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