राहुल गांधी की नकारात्मक राजनीति और चुनावी दौर

राजनीतिज्ञ को वर्तमान परिस्थितियों में अपना स्वार्थ सिद्ध करना प्राथमिकता पर दिखाई देता है। जबकि राजनेता को राष्ट्रहित दिखाई देता है। राजनीतिज्ञ अपने निहित स्वार्थ की राजनीति करता है। जब कि राजनेता देश के और राष्ट्र के भविष्य निर्माण की योजना में निमग्न रहता है। यही कारण है कि जहां राजनीतिज्ञ छोटी-छोटी बातों को तूल देकर देश के माहौल को बिगाड़ने का प्रयास करके अपने लिए सत्ता में पहुंचने या सत्ता में बने रहने की राह सुगम करते हुए देखे जाते हैं, वहीं राजनेता छोटी-छोटी नहीं बल्कि बड़ी-बड़ी बातों पर भी मरहम लगाते दिखाई देते हैं।
कांग्रेस केनेता राहुल गांधी वर्तमान में जिस प्रकार की राजनीति कर रहे हैं उनकी वह राजनीति उन्हें राजनीतिज्ञ बनाती है या राजनेता बनाती है? राहुल गांधी के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह अपने आप को यह सिद्ध नहीं कर पाए हैं कि वह हिंदू विरोध की राजनीति कर रहे हैं या बहुसंख्यक समाज के हितों को भी उतनी ही प्राथमिकता देने की राजनीति कर रहे हैं जितनी वह अल्पसंख्यकों के हितों को प्राथमिकता देकर राजनीति देते रहे हैं? राहुल गांधी भारत के बहुसंख्यक समाज और भारतीयता के प्रतीक श्री राम की जन्म भूमि पर जहां नकारात्मक सोच और चिंतन रखते हैं वहीं वे इस्लाम के फंडामेंटलिज्म पर अपना दूसरा दृष्टिकोण रखते हैं। यह तब है जबकि भारत का भारतीय दर्शन , सोच और चिंतन श्री राम जी के माध्यम से देश में समरसता और सद्भाव को पैदा करता है जबकि इस्लामी फंडामेंटलिज्म देश में उपद्रव , हिंसा और आगजनी को बढ़ावा देता है। अपनी इस सोच के कारण राहुल गांधी इस्लामिक फंडामेंटलिज्म में विश्वास रखने वाले लोगों के विरुद्ध सर्वथा मौन साधते देखे जाते हैं।
हमारे देश में यदि संविधान की मौलिक अवधारणा ,चिंतन और उसके मर्म को समझकर काम करने की रणनीति पर विचार किया जाता तो देश से जाति, धर्म और लिंग के आधार पर प्रत्येक प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में काम किया जाता । इतना ही नहीं, इन उद्वेगकारी मनोवृतियों को भी समाप्त करने का प्रयास किया जाता, परंतु आरक्षण और जाति प्रेरित राजनीति को कांग्रेस ने देश में प्राथमिकता दी। जिसका परिणाम यह हुआ कि जाति, धर्म और लिंग की दीवारें ऊंची होती चली गईं। आज राहुल गांधी जाति के आधार पर जनगणना कराने की मांग उन लोगों के साथ मिलकर करते देखे जाते हैं जो भारतीय संविधान की इस मौलिक अवधारणा का उपहास करने की राजनीति करते रहे हैं। स्पष्ट है कि यदि देश में जाति आधारित जनगणना की एक बार शुरुआत हो गई तो इससे देश का बहुसंख्यक हिंदू समाज कमजोर होगा। राहुल राहुल गांधी सत्ता स्वार्थ को साधने के लिए भारत के भविष्य को इस समय पूर्णतया उपेक्षित कर रहे हैं। जाति आधारित जनगणना भारत में सामाजिक विसंगतियों और विषमताओं को और अधिक विस्तार देगी। जिससे सामाजिक ताना-बाना खंड-खंड होकर रह जाएगा और देश विरोधी शक्तियां देश को तोड़ने के प्रयास में आज नहीं तो कल सफल हो जाएंगी।
राहुल गांधी ने भारत को कभी भारत के दृष्टिकोण से समझने का प्रयास नहीं किया है। उन्होंने भारत को उन भ्रांतियों, मिथकों और दोगली बातों या विचारधारा के आधार पर समझने का प्रयास किया है, जो भारत को भारत नहीं बल्कि इंडिया बनाती हैं। निश्चित रूप से राहुल गांधी इंडिया के बारे में तो बेहतर जानते हैं, पर वह भारत की आत्मा के साथ कभी सहकार स्थापित कर बोलने की क्षमता हासिल नहीं कर पाए। यही उनके व्यक्तित्व और चरित्र का सबसे दुर्बल पक्ष है। हम सभी जानते हैं कि इंदिरा गांधी ने सत्ता में बने रहने के लिए जब कम्युनिस्टों का सहारा लिया तो उनकी विचारधारा को भी उन्होंने भारत की राजनीति में प्रश्रय देने का निर्णय ले लिया। अपनी नीतियों को भारतीय शासन और शिक्षा में लागू करवा कर कम्युनिस्टों ने कांग्रेस को तत्कालीन परिस्थितियों में दिए गए अपने राजनीतिक समर्थन की बहुत बड़ी कीमत देश से वसूल की थी। जिसे कांग्रेस ने आराम से सहन कर लिया था। इतना ही नहीं, इस पार्टी ने अपनी विचारधारा के साथ समझौता करके कम्युनिस्टों के तथाकथित समाजवाद को भारत में लागू करने का बेतुका प्रयास किया। यद्यपि हम सभी जानते हैं कि कांग्रेस ने जिस प्रकार विदेशी विचारधारा अर्थात कम्युनिस्ट समाजवाद को अपनाया उससे देश में बेकारी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला।
इसका कारण यह था कि गरीबी हटाने और समानता लाने की दृष्टि से प्रेरित होकर कांग्रेस की इंदिरा सरकार ने 97.7% तक आयकर लगाया था। इससे बचने के लिए उद्योगपतियों ने कालाधन और तहबाजारी को बढ़ावा दिया।
आजकल राहुल गांधी केंद्र की मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की कटु आलोचना करते हैं पर कभी यह नहीं बताते कि उनके परिवार के शासन काल में अपनाई गई आर्थिक नीतियों के क्या परिणाम निकले ? और उन परिणामों से उन्होंने व उनकी पार्टी ने क्या शिक्षा प्राप्त की है? यद्यपि वह भली प्रकार जानते हैं कि उनके परिवार के द्वारा जिन आर्थिक नीतियों का पालन किया जा रहा था, उनके चलते देश की अर्थव्यवस्था रुक-रुक कर सांस लेने लगी थी। जबकि उस लीक से हटकर जब मोदी सरकार ने दूसरी लीक बनाकर आर्थिक नीतियों को पंख लगाए तो आज देश अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अपने एक महत्वपूर्ण मुकाम को प्राप्त कर चुका है। राहुल गांधी के पिता के नाना अर्थात देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश की आर्थिक नीतियों के साथ-साथ अन्य नीतियों को भी विदेशी मानसिकता और राजनीतिक कार्य प्रणाली से उधार लेकर हमारे देश में लागू करने का काम किया था। यह दु:ख का विषय है कि राहुल गांधी पंडित नेहरू की उन नीतियों के कटुफल सामने आने के उपरांत भी उनसे शिक्षा लेने को तैयार नहीं हैं। वह स्वयं भी उन नीतियां का समर्थन कर रहे हैं जिनके परिणाम देश ने घातक रूप से भुगते हैं। क्या राहुल गांधी देश को चुनाव के इस दौर में यह बताने का कष्ट करेंगे कि उन्होंने या उनकी पार्टी की सरकार ने देश के संविधान में समान नागरिक संहिता का उल्लेख होने के उपरांत भी उसे लागू क्यों नहीं किया ? क्या वह बता सकेंगे कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में वेद की मानवतावादी सोच और चिंतन को उनकी पार्टी की सरकारों ने क्यों नहीं स्थापित किया ? क्या वह बता सकेंगे कि भारत के ऋषियों और श्री राम व श्री कृष्ण जैसे महापुरुषों को भारतीय शिक्षा पाठ्यक्रम में क्यों नहीं स्थान दिया गया? चुनाव के इस दौर में राहुल गांधी को देश की जनता को यह भी बताना चाहिए कि वह भारत को भारत अर्थात एक राष्ट्र के रूप में क्यों नहीं मानते और क्यों वह भारत को राज्यों का समूह अर्थात विभिन्न राष्ट्रीयताओं का समूह मानते हैं? उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि वह भारत की सनातन संस्कृति के विरोध में क्यों बोलते हैं ? भारत के सनातन मूल्यों के प्रति उनकी निष्ठा क्यों नहीं है और क्यों वह भारत के सनातन मूल्यों को भारतीय शिक्षा के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने का समर्थन नहीं करते ?
इस समय देश के मतदाताओं को भी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी से यह पूछना चाहिए कि वह भारत के परंपरागत शत्रु चीन के प्रति उदार दृष्टिकोण क्यों रखते हैं ? क्यों वह भारत को संप्रदाय के आधार पर विभाजित करके अस्तित्व में आये पाकिस्तान के प्रति नरम दृष्टिकोण अपनाते हैं? उन्हें सीएए में ऐसी कौन सी कमी दिखाई देती है, जिससे वह भारत के मुसलमान के लिए घातक हो सकता है ? संसार में सबसे बड़ी आबादी वाले देश के लिए कांग्रेस ने कभी यह आवश्यक नहीं समझा कि वह रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ दुनिया को भी हथियारों की सप्लाई करने की क्षमता प्राप्त कर ले । देश के मतदाताओं को कांग्रेस के नेता से यह भी पूछने का अधिकार है कि वह इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश के लिए सुरक्षा हथियार बाहर के देशों से ही क्यों मंगाते रहे ? क्या इसके पीछे कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार एकमात्र कारण था? या उन्होंने देश की क्षमताओं और बौद्धिक प्रतिभा पर विश्वास नहीं किया ?
आज जब इन सभी क्षेत्रों में सफलता की नई कीर्तिमान स्थापित कर रहा है तो कांग्रेस को आत्मनिरीक्षण अवश्य करना चाहिए। एक अच्छे विपक्ष की भूमिका निभाते हुए कांग्रेस के नेता राहुल गांधी देश के मतदाताओं को यह विश्वास दिलाएं कि जिन नये कीर्तिमानों को देश इस समय गढ़ रहा है उन्हें वह और भी ऊंचाई तक पहुंचाने का काम करेंगे। यदि वह ऐसा नहीं करते हैं तो अभी उन्हें अपनी और अपनी पार्टी की ओर फजीयत के लिए तैयार रहना चाहिए । देश का मतदाता निर्णय ले चुका है। आगामी 4 जून को सब पता चल जाएगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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