वेद परिचय

परम कारूणिक परमेश्वर ने अपनी अद्भुत सृष्टि को देखने के लिए मानव को नेत्र दिए । नेत्रों से देखने के लिए सूर्य बनाया और जीवन जीने के लिए वेद रूपी भानु बनाया । कालातीत परमगुरु परमेश्वर ने सृष्टि के आरंभ में हर क्षण संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए चार ऋषियों के हृदय में जो ज्ञान दिया वह वेद है । ऋषि मंत्रों के निर्माता न थे केवल अर्थों के साक्षात्कर्ता थे । अतः वेद अपौरूषेय प्रभु की वाणी है ।
यह संसार क्या, क्यों, कैसे, मै कौन है मेरा अपने प्रति, परिवार, समाज, राष्ट्र, विश्व के प्रति क्या कर्तव्य है? परमात्मा का स्वरुप क्या है उसकी उपासना क्यों करें आदि समस्त ज्ञान वेदो में मिलता है । इसीलिए मनु ने कहा “सर्व ज्ञान मयोहिसः”-वेद सब विद्याओं का पुस्तक है । वेदो्अखिलो धर्म मूलम ‘वेद समस्त धर्मों (सत्कर्मों )का मूल स्रोत है । भूतं भव्यं भविष्यच्च सर्वं वेदात्प्रसिध्यति ‘-भूत, वर्तमान, भविष्य में जो कुछ हुआ हो रहा है, होगा वह सब वैसे ही प्रसिद्ध होता है । वेद में आध्यात्मिक तो है ही भौतिक विज्ञान की भी पराकाष्ठा है । यहां चारों वेदों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है ।
१. ऋग्वेद – अग्नि ऋषि द्वारा इसका प्रकाशन हुआ । इसमे प्रकृति, सभी विज्ञानों का वर्णन है । इसे मस्तिष्क का वेद भी कहते हैं । इसमें १०मंडल हैं। मानवों वह धर्म के १० लक्षणों यथा -धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रिय निग्रह, धी, विद्या, सत्य, अक्रोध से जीवन को सुभूषित करने का संदेश है ।
२. यजुर्वेद -वायु ऋषि द्वारा प्रकाशित इस वेद में अग्निहोत्र से लेकर अश्वमेध पर्यंत सभी यज्ञों का विवेचन है । श्रेष्ठतम कर्मों का निरुपण होने से यह कर्म वेद हाथों का वेद है । इसके अनुसार हम १०० वर्ष तक कर्म करते हुए जीने की इच्छा करें और सर्वश्रेष्ठ कर्म यज्ञ करें । परोपकार के सभी कर्म यज्ञ कहलाते है । इसमें ४०अध्याय हैं ।
३. सामवेद -प्रकाशित आदित्य ऋषि द्वारा । यह उपासना का वेद है । अध्यात्म का उपदेश करता है । ईश्वर का स्वरुप, इसकी उपासना क्यों, कैसे, कब करें इस सबका वर्णन है । इसके मंत्र गायन स्वरुप है । इसके दो भाग है जिनमे कुल २७ अध्याय है ।
४. अथर्ववेद – अंगिरा ऋषि द्वारा प्रकाशित हुआ इसमें शरीर को स्वस्थ रखने के लिए औषधियों का वर्णन हैं । इसलिए इसे उदर का वेद भी कहते है । इस में युद्धों, राज्य व्यवस्थाओं का भी वर्णन है । यह ब्रह्म वेद भी है क्योंकि इसमें परमेश्वर का हृदयग्राही वर्णन है जिसे पढ़कर पाठक भाव विभोर हो जाता है । गृहस्थ के सौहार्द का मनोहारी वर्णन है । इस में पति पत्नी के कर्तव्यों गृहस्थ की मर्यादाओं का विवेचन है जिससे ज्येष्ठ श्रेष्ठ आश्रम ग्रहस्थ को स्वर्ग बनाया जा सके । इसके राष्ट्र सूक्त में आदर्श राष्ट्र और उसकी रक्षा के उपायों का वर्णन है । इसमें २० काण्ड है ।
वैदिक सत्य सनातन विद्या प्रचार-प्रसार..

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