भारत की वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था

जय सिया राम, हर हर महादेव, प्रताह स्मरणीय योगीराज सन्त शिरोमणि Sri 1001 बर्फनी दादाजी महाराज की जय
ॐ योगीराजाये विद्महे कायाकल्पिदिव्य देहाय धीमहि
तन्नो सच्चिदानंदरूपाय गुरु बर्फानीं दादाजी प्रचोदयात। ॐ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘चर्तुवर्णयम् माया श्रीष्टाम् गुणकर्म विभागसा अर्थात् गुण और कर्म के आधार पर मेरे द्वारा समाज को चार वर्णों में विभक्त किया गया है।

तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो. जन्मना जायते शूद्र:, संस्काराद् द्विज उच्यते।- मनु स्मृति
अर्थात मनुष्य शूद्र के रूप में उत्पन्न होता है तथा संस्कार से ही द्विज बनता है। जाति बुरी नहीं है, जातिवाद बुरा है.
विप्राणं ज्ञानतो ज्येष्ठम् क्षत्रियाणं तु वीर्यतः।’ अर्थात् ब्राह्मण की प्रतिष्ठा ज्ञान से है तथा क्षत्रिय की बल वीर्य से। जावालि का पुत्र सत्यकाम जाबालि अज्ञात वर्ण होते हुए भी सत्यवक्ता होने के कारण ब्रह्म-विद्या का अधिकारी समझा गया
जाति का अर्थ है व्यवसाय और कोई भी व्यवसाय छोटा नहीं है
जाति का मतलब नस्ल है इसलिए कृपया जाति का प्रयोग न करें। जाति जाति के समकक्ष नहीं है

वर्ण की परिभाषा जन्म से होती है, विरासत से नहीं। वर्ण आपके पिछले कर्म और जन्म के समय ब्रह्मांड की ग्रहों की स्थिति से परिभाषित होता है

शूद्र की संतान ब्राह्मण वर्ण की हो सकती है और इसके विपरीत भी और हुई भी है महाभारत रचयिता महाऋषि ब्राह्मण नहीं थे स्वयं देवाधिदेव गणपति महाराज जी के दांत से रचित- और गणपति एक दाँते कहलाये

जाति और वर्ण दोनों ही वर्तमान समय में अप्रासंगिक हैं इसलिए सभी सनातन धार्मि हिंदुओं को एकजुट होना चाहिए और वामपंथियों द्वारा फैलाई गई इस गलत जानकारी के आधार पर विभाजित नहीं रहना चाहिए।

जाति का अर्थ है व्यवसाय और कोई भी व्यवसाय छोटा नहीं है

महा ऋषि वेद व्यास और वाल्मीकि हो सकते है कि उनका जन्म शूद्र माता-पिता (माता/पिता) से हुआ हो, लेकिन ऐसा नहीं है। क्योंकि वर्ण आनुवंशिकता नहीं है। वहीं विदुर- और विदुर नीति जोकि राजतंत्र का प्रथम ग्रंथ है शूद्र थे पर भगवान श्री कृष्ण ने – दुर्योधन को मेवा त्यागी साग विदुर घर खाई
वर्ण की परिभाषा जन्म से होती है, विरासत से नहीं। वर्ण आपके पिछले कर्म और जन्म के समय ब्रह्मांड की ग्रहों की स्थिति से परिभाषित होता है

शूद्र की संतान ब्राह्मण वर्ण की हो सकती है और इसके विपरीत भी।

जाति और वर्ण दोनों ही वर्तमान समय में अप्रासंगिक हैं इसलिए हिंदुओं को एकजुट होना चाहिए और वामपंथियों द्वारा फैलाई गई इस गलत जानकारी के आधार पर विभाजित नहीं रहना चाहिए।
जातियों के प्रकार अलग होते थे जिनका सनातन धर्म से कोई लेना-देना नहीं था। जातियां होती थी द्रविड़, मंगोल, शक, हूण, कुशाण आदि. ऋषि कवास इलूसू, ऋषि वत्स, ऋषि काकसिवत, महर्षि वेद व्यास, महर्षि महिदास अत्रैय, महर्षि वाल्मीकि आदि ऐसे महान वेदज्ञ हुए हैं जिन्हें आज की जातिवादी व्यवस्था दलित वर्ग का मान सकती है। ऐसे हजारों नाम गिनाएं जा सकते हैं जो सभी आज के दृष्टिकोण से दलित थे। वेद को रचने वाले, मनु स्मृति को लिखने वाले और पुराणों को गढ़ने वाले ब्राह्मण नहीं थे. आज वर्तमान में एमए, एमबीबीएस आदि की डिग्री प्राप्त करते हैं। जन्म के आधार पर एक पत्रकार के पुत्र को पत्रकार, इंजीनियर के पुत्र को इंजीनियर, डॉक्टर के पुत्र को डॉक्टर या एक आईएएस, आईपीएस अधिकारी के पुत्र को आईएएस अधिकारी नहीं कहा जा सकता हैऋग्वेद की ऋचाओं व गीता के श्लोकों को गौर से पढ़ तो साफ परिलक्षित होता है कि जन्म आधारित जाति व्यवस्था का कोई आधार नहीं है।
जय हो महंत श्री MAA Rajyalaxmi

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