1857 की सशस्त्र जनक्रान्ति के सूत्रधार : कोतवाल धन सिंह गुजर

डा. कुँवरपाल सिंह पंवार

सन् 1803 ई० में कोल अलीगढ़ एवं पटपड़गंज छलेरा वर्तमान नोएडा के स्थानों पर मराठा सेना के सेनापति पैरन अंग्रेज सेना- नायक लाईलेक से पराजित हो गये थे। इस विजय की स्मृति में ग्राम छलेरा में लाई लेक टावर का अंग्रेजों द्वारा निर्माण कराया गया था । इस पराजय के साथ ब्रिटिश अंग्रेज समस्त उत्तरी भारत के स्वामी हो गये। इसे लेकर मराठों और अंग्रेजों के मध्य 30 दिसम्बर 1803 को एक सन्धि हुई, जिसमें मराठों के समस्त अधिकार समाप्त हो गये. और अंग्रेज भारत के स्वामी बन गये। यह सन्धिसुरजी अंजन गांव के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुई ।
गुर्जरों को यह नई पराधीनता भी रास नहीं आई। सन् 1813 ई- में लंढौरा नरेश रामदयाल सिंह गुर्जर ने अंग्रेजों के विरुद्ध खुला .. सशस्त्र विद्रोह कर दिया और घोषणा कर दी कि मैं दिल्ली की गद्दी प्राप्त करके रहूंगा। परन्तु दुर्भाग्यवश 1813 ई. में ही उनकी असामयिक मृत्यु हो गयी। इनके पश्चात इनके भतीजे राजा विजय सिंह गुर्जर ने अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिये, कुंजा ५५ गांव के ताल्लुकेदार ने एक ऐसे साम्राज्य की चूलें हिला दी। जिस साम्राज्य में कभी सूरज छिपता नहीं था, वह उस समय बहुत ही बुरी हालत को प्राप्त हो गया था।
गोरखा क्रिस्टन मूंग 58 सिरमौर बटालियन का सेनापति एवं एफ जे शोरे ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना तथा राजा विजयसिंह गुर्जर व सेनापति कल्याण सिंह गुर्जर की गुर्जर सेना के मध्य 3 अक्टूबर 1824 को कुंजा के किले पर भयंकर युद्ध हुआ। राजा विजय सिंह गुर्जर, सेनापति कल्याण सिंह गुर्जर सहित 152 गुर्जर योद्धा स्वातंत्र्य समर की बलिवेदी पर न्यौदावार हो गये। इस विजय की स्मृति में अंग्रेजों ने देहरादून स्थित गढ़ी वाली छावनी में विक्टरी गेट ( विजय द्वार) बनवाया ।

SAHARANPUR PASSED INTO THE HANDS OF THE BRITISH INA.D. 1803. THE GURJARS ROSE IN REVOLT IN 1813 ON ACE- OUNT OF THE RESUMPTION OF THE ENORMOUS. ESTATE OF RAJA RAM DAYAL SINGH GURJAR AFTER HASDEATH BUT IT WAS EASILY SUPRESSED IN 1824 VITAL SINGH THE TALUK DAR OF KUNJA BAHADUR PUR NEAR ROORKEE ANDA RELATIVE OF LATE RAJA RAM DAYAL SINGH BROKE OUT INTO OPEN REV OLT AND WAS JOINED BY KALYAN SINGH GURJAR THE NOTORI OUS LEADERS OF BANDITS THE REBEL LEADERS ASSUMED THE TITLE OF RAJA AND LEVIED CONTRIBUTION OF THE SURROUNDING DISTRICTS, [JEMES MILLS: HISTORY OF BRITI SH INDIA, EDITED BY H. WILL SON X-X] –

  1. कुँजा के प्रथम स्वातंत्र्य समर के 35 वर्ष पश्चात चर्बी लगे ‘कारतूसों को मुंह से खोलने को लेकर हिन्दू और मुसलमान सिपाहियों में रोष व्याप्त हो रहा था। दूसरी और मेरठ कोतवाली में नियुक्त कोतवाल धन सिंह गुर्जर के हृदय में राष्ट्रवाद की क्रोधाग्नि ज्वालामुखी बन धधक रही थी। 8 अप्रैल 1857 को हरियाणा के फरीदाबाद जनपद में सूरजकुण्ड अनंग पुर के स्थान पर बहादुर शाह जफर के निवेदन पर लखपत सिंह गुर्जर की अध्यक्षता में एक सर्वखाप महापंचायत – आयोजित की गयी थी। धनसिंह कोतवाल भी छद्मवेश में इस महा- पंचायत में भाग लेने गये थे। लखपत सिंह गुर्जर रायसीना के निवासी 184 सभासदों में से एक शिरोमणी सभासद, बादशाह बहादुर शाह जफर के बालसखा एक लंगोटिया यार थे। सर्वखाप पंचायत में अंग्रेजों को भारत छोड़ने को बाध्य किये जाने का निर्णय लिया गया था।
    इसे अप्रतिम संयोग ही कहेंगे कि एक ओर अंग्रेजों को भारत से बाहर धक्का देने के लिए सूरज कुण्ड पर सर्वस्वाप आयोजित हो रही थी, दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के किनारे लार्ड कैनिन पार्क के सामने सिपाही मंगल पाण्डे व सूबेदार दृगपाल सिंह को फांसी पर चढ़ाया जा रहा था। वहीं पर इनकी समाधियां बनी हुई हैं। मेरठ छावनी में 24 अप्रैल 1857 को परेड ग्राउंड पर 85 सैनिकों ने एडज्यूटैंट कप्तान क्रेगी के आदेश की अवहेलना करते हुए कारतूस लेने से मना कर दिया। सभी 85 सिपाहियों का कोर्ट मार्शल के पश्चात मेरठ डिवीजन के मेजर जनरल डब्लू एच हेविट द्वारा 9 मई 1857 को परेड़ – ग्रांउड़ पर 10-10 वर्ष के कठोर कारावास का दण्ड सुनाकर इनकी वर्दी. उतरवाकर तथा उनके हाथ पैरों में लोहे के डण्डा बेड़ी पहनाकर मेरठ सेंट्रल जेल में डाल दिया । 9 मई की घटना से मेरठ छावनी में नियुक्त तीसरी कैवलरी, 11 वीं व २० वीं इन्फैन्ट्री के जवानों में आक्रोश व्याप्त हो गया। इस घटना को लेकर यदि कोई, सर्वखाप पंचायत के प्रचार के फलितार्थ को प्राप्त करने, सबसे अधिक गम्भीर, व्यग्र और उत्सुक था तो वे थे मेरठ नगर के कोतवाल धनसिंह गुर्जर। समय की धड़कन को पहचानते हुए धनसिंह कोतवाल ने अपनी योजनानुसार – मेरठ कैंट व मेरठ नगर के चारों ओर बसे गुर्जर, रांघड़ व गिरुआ ग्रामों में 9 मई को ही सन्देशे भिजवा दिए। धनसिंह कोतवाल के आव्हान पर मेरठ के चारों ओर से हजारों की संख्या में गुर्जर रांधड़ 9/10 की रात्री में मेरठ में एकत्र हो गये। इनमें से हजारों गुर्जरों ने मेरठ नगर व कैंट का घेरा डाल लिया तथा हजारों गुर्जर नगर में घुस गये थे। इनके साथ नगर व कैंट के असंख्य क्रांतिकारी तरुण भी सम्मिलित हो गये थे। धनसिंह कोतवाल के हृदय में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रतिशोध की क्रोधाग्नि ज्वालामुखी बन उठी। गर्जरधाड़ के समय में मेरठ पहुंच जाने के बाद कोतवाल| धनसिंह गुर्जर छद्म वेश में दालनी में पहुँचे और वहाँ तृतीयनोटव कैवलरी, 11 वी व २० इन्फैंट्री के सैनिकों से गुप्त रूप से सम्पर्क साधा। गहन मंत्रणा के पश्चात निर्णय लिया गया कि कल 10 मई से ही क्रान्ति शुरू कर दी जाए, जिसे मूर्त रूप देने के लिए, सबसे पहले जेलों से कैदियों को मुक्त कराने तथा अंग्रेजों को मौत के घाट उतार देने तथा साथ ही साथ, सेना, पुलिस तथा गुर्जर-रांघड़ को मिलाकर एक संयुक्त मोर्चा ” बनाये जाने तथा बहादुर शाह जफर बादशाह दिल्ली को सैनिक सहायता भेजने की योजना तैयार कर ली गयी ।

आनन- फानन में सेना के विद्रोही सिपाहियों, पुलिस के वि संधल्कत: ही सिपाहियों एवं गुर्जर व रांघड़ जाति के क्रान्तिकारियों का एक “संयुक्त मोची तैयार कर लिया गया। तृतीय नेटिव कैवलरी, 11वी ब 20 वी नेटिव इन्फैन्ट्री के धनसिंह कोतवाल की जाति के अधिकांश सिपाही क्रान्ति के लिए तैयार हो गये इनमें कुछ अन्य जातियों में से भी थे। सेना के सिपाहियों के नेतृत्व लिए भगवान सहाय गुर्जर पुत्र अहिमान सिंह लम्बरदार निवासी ग्राम बढ़पुरा जनपद बुलन्द शहर स्वमेव तैयार हो गये ।
इस योजना की सूचना तीसरी नेटिव कैवलरी के एक सवार तथा एक गुर्जर काऊ ब्वाय ने रात में ही इस कैवलरी के लैफ्टीनेंट एच गफ को उनके निवास पर जाकर दी कि कोतवाल धनसिंह गुर्जर की जाति के लोग व कैवलरी के सिपाही रविवार 10 मई को ही विद्रोह शुरु कर देंगे। वे अंग्रेजों के खून के प्यासे हो चुके हैं। गफ ने इसे गम्भीरता से लिया और तुरन्त इस सूचना को कर्नल क्रेमी- चैन स्मिथ को बताया, स्मिथ ने इस सूचना पर ध्यान नही दिया। तत्पश्चात गफ, ब्रिगेडियर ए विलसन के पास पहुँचा और कथ्य कह सुनाया। उसने मेरठ डिवीजन के कमाण्डर डब्लू एच हेविट से बात की, 70 वर्षीय हेविट ने एक तरुण अधिकारी की राय को गम्भीरता से नहीं लिया और कहा कि यह उसके भय से उपजा बिचार है। ब्रिगेडियर विलसन अपने कमाण्डर हेविट की बात से सहमत हो गये और मेरठ में क्रान्ति की आख्या को अस्वीकार कर दिया।

IN THE LIGHT OF SUBSEQUENT EVENTS, IT IS DIFFICULT TO CREDIT HIM WITH THE REDEEMING VERTUE OF COURAGE HE LATER CLAMED TO HAVE SAVED THE BRITISH EMPIRE FROM THE SIMULATANEOUS RISING BY THE GURJAR IN WESTERN – upxxx GENERAL SIR HUGH GOUGH WAS STARTED BY THE – REVOLUTIONARY HEROISM OF THE GURJARS. SOME GURJARS4.

HAD TOLD GENERAL GOUGH ON THE EVENING OF THE MAY 9th. THAT A MUTINY WOULD TAKE PLACE THE NEX DAY BUT TREATED THE REPORT WITH CONTEMPT, AND REBULK ED HIS OFFICERS FOR LISTENING TO IDLE WORD” FROM-THE GREAT MUTNEY OF INDIA 1857 डब्लू एच हेविट जितने उदासीन रहे, धनसिंह कोतवाल उतने ही संवेदनशील और तत्पर बने रहे। उन्होंने कोतवाली के सारे हथियार विद्रोही सिपाहियों एवं क्रान्तिकारियों में बंटवा दिए थे तथा संयुक्त मोर्चे का गठन कर लिया था। किन्तु यह सब कुछ होते रहने पर भी अंग्रेज अधिकारी निश्चिंत ही थे, रविवार की संध्या घिरने लगी और सायंकाल 5 बजे चर्च के घन्टे ने इस शांत वातावरण में धीरे धीरे एक कोलाहल का उद्भव •किया। अंग्रेज अपनी-अपनी पत्नियों सहित प्रमुदित मन चर्च की ओर जाने लगे। किन्तु इस दिन का बजता हुआ चर्च का घन्टा केवल- प्रार्थना का ही घन्टा नहीं था, अपितु उनकी मृत्यु का भी घन्टा था। क्योंकि उधर घन्टा बज रहा था, और इधर सैनिक शिविरों व गुर्जर रांघड़ के
झुण्डों में “मारो फिरंगी” को का श्री घोष गूंज उठा था । धन सिंह कोतवाल पुलिस सिपाहियों और गुर्जरों-राघड़ों की धाड़ का स्वयं नेतृत्व करते हुए कैदियों को मुक्त कराने के लिए जैसे ही जेल की ओर बढ़े वैसे ही तृतीय नेटिव कैवलरी के सिपाहियों की टुकड़ी भगवान सहाय सिपाही के नेतृत्व में मार्ग में मिल गयी। अब सांझा-मोर्चा” पुरानी जेल की ओर बढ़ा ‘मारो-फिरगी को ‘ तथा ‘फिरंगियों के बंगलों को जला दो’ का उदघोष करते चल रहे थे।
रविवार का दिन था, अवकाश होने के कारण गोरे सैनिक पूर्व दिनों की भांति बाजार में घूमने अथवा आवश्यक सामान क्रय करने निकले थे। दुकानें खुली थीं और सब कार्य पूर्ववत हो रहे थे। सड़कों चौराहों पर भीड़-भाड़, चहल-पहल नित्य जैसी ही थी। आने वाले तूफान का कोई चिन्ह कहीं प्रकट नहीं हुआ। संयुक्त मोर्चा ” के सैंकड़ों अश्वारोही – 7 बजे सायं [10 मई 1857 ई०] पुराने बन्दीगृह जा पहुँचे, बन्दीगृह के फाटक तोड़ भीतर घुस गये और सबसे पहले बन्दी 85 सिपाहियों की लोहे की डण्डा-बेड़ी काटकर, उन सहित समस्त 720 कैदियों को ‘मुक्त करा लिया। यह जेल उस स्थान पर स्थित थी जहाँ आज – केशरगंज मण्डी है । सारा जेल परिसर प्रकम्पित हो उठा। क्षणभर में दुर्देव के सूचक उस कारागृह की प्राचीरों की ईंट से ईंट बजा दी गई। बन्दीगृह के प्रहरी भी क्रान्तिकारियों के सहयोगी हो गये। इस प्रकार 10 मई 1857 के दिन प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में गुर्जरों ने तथा विद्रोही सैनिकों ने बजा दिया था।

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11 मई की प्रातः गुर्जरों की घाइ धनसिंह कोतवाल के नेतृत्व में पुनः नई जेल जा धमकी। हरी वर्दी में सेना के जवान व नीली वर्दी में पुलिस के जवान स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे। नई जेल उस स्थान पर थी, जहाँ आज विक्टोरिया पार्क है। यह मेरठ क्षेत्र के लिए सेन्ट्रल जेल का काम करती थी। जेल के फाटक तोड़कर जेल में निरुद्ध समस्त 839 कैदियों को मुक्त करा लिया। जेल के अभिलेखों व जेलर बंगले को अग्निदेव को समर्पित कर दिया। ये कैदी भी क्रान्तिकारियों के साथ मिल गये । जेल के प्रहरी भी साथ हो लिए। अंग्रेजों ने अपनी पराजय की प्रतीक इस जेल को 1860 ई० में ध्वस्त कर काठ का सामान सैन्ट्रल जेल आगरा के प्रयोगार्थ भेज दिया। महारानी विक्टोरिया के ब्रिटेन से भारत आगमन पर इसका नाम विक्टोरिया पार्क नामकरण कर दिया। प्रचण्ड वीर गर्जनाओं के साथ वे धर्मवीर कारागार घोड़ों पर सवार हुए और और अपनी मुक्ति हेतु आए हुए अपने देश – से बाहर आ गये, बांधवों सहित उस कारागृह को छोड़कर चर्च की ओर चल पड़े। ‘मारो फिरंगी’ के उद्घोष के साथ रास्ते में जो भी अंग्रेज मिला उसे मार डाला। श्रीमती क्रेगी तथा कुमारी मैकेंजी की चर्च जाते समय क्रान्तिकारियों ने हत्या कर दी। पुरानी जेल के अधिकांश कैदी गुर्जर ही थे, इनमें से 200 अति भयंकर प्रकृति के कैवी बागपत पहुँच कर दादा अचल सिंह गुर्जर निवासी बाघू निरोजपुर जनपद मेरठ की धाड़ में सम्मिलित हो गये। गुर्जरों द्वारा 1857 का प्रथम स्वातंत्र्य समर भी.. अपने पुरखों की परम्परानुसार ही लड़ा गया। इस संदर्भ में मैसेज ऑफ मसिदी के लेखक जे एस ब्राईट और आर0 बी0 हरिश्चन्द्र का कथन दृष्टव्य है- LIEUTENANT COLONEL HEGGE OF MEERUT SENSED TROUBLE FROM GURJARS AND WARNED THE BRITISH GOVERNMENT BUT THE WARNING WENT UNHEEDED. TREMEN DOUS VIOLENCE, LED BY THE GURJARS EXPLODED AT MEERUT ON SUNDAY 10th MAY 1857, COLONEL CATRI MICHAEL SMYTH commANDED THE THIRD CAVALRY AT MEERUT, SELF OPINIONATED AND OBSTINATE, HE WAS NOT PARTICULARLY POPULAR AMOUNG GURJARS IN WESTERN UP SOME GURJARSITOLD GENERAL GOU GH ON THE EVENING OF 9th MAY THAT A MUTINY WOULD TAKE PLACE THE NEXT DAY BUT THEY TREATED THE REPORT WITH COMTEMPT, AND REBUKED HIS OFFICERS FOR LISTENING TO IDLE WORDS” A GURJAR COW BOY RUSHED TO THE ARMY TO INFORM 9 HAD

THE SOLDIERS THAT THE TIME FOR REVOLT HAD COME. THE SOw- ARS OF THE ARMY 3RD NATIVE CAVALRY RODE TO THE OLD PRISON AND RELEASED THE PRISONERS WHO WERE MOSTLY GURJARS. THE CITY POLICE READILY JOINED THE FREEDOM FIGHTERS. KOTW- AL DHANNA SINGHA WASA GURJAR AND HE LED THE REVOLT THIS WAS THE GURJAR STYLE OF CONDUCTING 1STWAR OF INDEPEND- DENCE IN 1857.

डा. के पी. सिंह पंवार जाण्ड़खेड़ा, पैरामाउंट दिल्ली रोड सहारनपुर

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