अन्नागार बनते अजायब घर*।

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लेखक आर्य सागर खारी 🖋️

बस किसी तरह यह अन्न छानने, कूटने,पकाने के विविध मानव श्रमचालित पात्र उपकरण पुनः हमारे घर में स्थान पाकर प्रयोग में आ जाए तो मधुमेह ,अवसाद,ह्रदय पेट रोगों से धीमी व तेज मौत मरते लोगों को पुनर्जीवन स्वास्थ्य मिल जाएगा।

पहले प्राचीन भारतीय घरों में अन्नागार बनता था। जहां यह पात्र रखे होते थे, नित्य इनका प्रयोग होता था। अब आधुनिक घर में अन्नागार नहीं बनते अब बनते हैं मॉड्यूलर किचन जहां भांति भांति के छुरे कांटे आपको नजर आएंगे ,मानो घर न होकर कसाई खाना हो।प्रयोग मे आते है इलेक्ट्रिक उपकरण जिनसे मिलता है, खतरनाक रेडिएशन। परंपरागत घरेलू उपकरण तो प्रदर्शनी की विषय वस्तु मात्र बन के रह गए हैं।

भला कपिल कणाद जैसे ऋषि जो जहां आधुनिक पार्टिकल फिजिक्स नहीं पहुंची है क्वार्क से भी करोडों गुणा सूक्ष्म महत्तव, तन्मात्रा जैसे तत्वों का समाधि में साक्षात कर चुके थे ,वह इन आधुनिक उपकरणों को नहीं बना सकते थे।

प्लास्टिक व विषेले मैटल से निर्मित अधिकांश उपकरणों से प्राकृतिक संतुलन बिगडता है प्रत्यक्ष व परोक्ष हिंसा फैलती है ऋषि क्रांति दर्शी होते हैं ऋषि कैसे प्रकृति का संतुलन बिगाड़ सकते थे।

यदि संभव हो तो समय रहते निरापद तकनीक से बने परम्परागत निरापद मानव श्रम से ताडित चालित उपकरणों का प्रयोग कीजिए घर का स्वास्थ का बजट शून्य हो जाएगा आरोग्य आनंद उत्साह चौगुना हो जाएगा।

घर व बाहार का पर्यावरण भी सात्विक स्वच्छ रहेगा।

आर्य सागर खारी✍

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