क्या कुछ नही है, इस शहर में
असहाय, निरीह आंखें उदास चेहरे, व्याकुल मन
क्या कुछ नही देखा, सहा इस शहर में।
सिर्फ शांति नही तो क्या, अशांति है
क्रांति है व भ्रांति है, सभी कुछ तो है इस शहर में।
तलवारें चलीं, गोले व गोली चलीं
गोदाम व फैक्ट्रियां जलीं, दुकान व मकान जले
वाहन और इंसान जले, क्या कुछ नही
जला इस शहर में।
बहुत से लोग डर के मारे घर व शहर छोड़ गये
कुछ छोडऩे जा रहे हैं, और कुछ प्लान बना रहे हैं।
हालातों से जूझने व जिंदा रहने का।
आखिर जाए भी तो कहां जाएं उन्हें जीना है तो
इस शहर में और मरना है तो भी इस शहर में।।

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