भारत के 50 ऋषि वैज्ञानिक अध्याय – 37, महर्षि च्यवन

महर्षि च्यवन का नाम हमारे देश में बहुत प्रसिद्ध है। उनके द्वारा बनाया गया ‘च्यवनप्राश’ आज भी स्वास्थ्य वर्धक रसायनों में सम्मिलित है। वे महर्षि भृगु और पुलोमा के पुत्र थे। जब कुछ समय पहले सारे विश्व को कोरोना जैसी बीमारी ने अपनी चपेट में लिया था तो उस समय संसार भर के चिकित्साशास्त्री और वैज्ञानिक मानव शरीर में इम्यूनिटी बढ़ाने की दवाओं की खोज में लग गए। तब अनेक लोगों को भारत के इस महान चिकित्सा शास्त्री महर्षि च्यवन के च्यवनप्राश से आशातीत लाभ हुआ था । जिससे हमारे इस प्राचीन ऋषि की वैज्ञानिक बुद्धि का लाभ उठाकर संसार के लोगों ने अपने आप को स्वस्थ बनाए रखने में सफलता प्राप्त की थी।

ऋषि हमारे च्यवन धन्य थे, भारत भू को धन्य किया।
चवनप्राश देकर के विश्व को बहुत बड़ा था पुण्य किया।।

महर्षि च्यवन ने ‘च्यवनप्राश’ जैसी स्वास्थ्य वर्धक औषधि को बनाने में विटामिन सी से भरपूर आंवला को एक महत्वपूर्ण और मुख्य घटक के रूप में मान्यता प्रदान की है। इससे पता चलता है कि हमारे ऋषि पूर्वज विटामिन सी के बारे में पूरी जानकारी रखते थे और उन्हें पता था कि आंवला में यह विटामिन भरपूर मात्रा में मिलता है। आंखों की ज्योति के लिए और शरीर की अनावश्यक गर्मी को समाप्त करने में भी आंवला का महत्वपूर्ण उपयोग होता आया है। आंवला पेट की अनेक बीमारियों की औषधि भी है। इसीलिए त्रिफला चूर्ण को लेकर लोग स्वास्थ्य लाभ लेते हैं, जिसमें आंवला की भी मात्रा होती है। वास्तव में आंवला हमारे शरीर की रक्षा प्रणाली को शक्ति प्रदान करता है।
‘च्यवनप्राश’ बनाने में लगभग तीन दर्जन जड़ी – बूटियों का प्रयोग किया जाता है। इन जड़ी बूटियों में नागकेसर, सफेद मूसली, पिप्पली , शहद, तेजपत्ता, पाटला ,अरणी ,गंभारी, कमलगट्टा बिल और श्योनक की छाल, नागमोथा, पुष्करमूल केशर , दालचीनी आदि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
इस महान ऋषि ने स्वास्थ्य वर्धक औषधि च्यवनप्राश को एक बार बना दिया तो बना ही दिया। जिसका उपयोग संपूर्ण मानवता उनके संसार से जाने के हजारों वर्ष पश्चात आज तक यथावत कर रही है।

मानवता ले रही लाभ , यश की गाथा गा – गाकर।
शीश झुकाते ऋषि के आगे हृदय से अभिनंदन कर ।।

महर्षि च्यवन ने च्यवनप्राश बनाने के लिए इसकी विधि लिखी है। उनकी बताई विधि के अनुसार सभी जड़ी बूटियों का पहले द्रव्य निकाला जाता है। ताजे आंवला को एक कपड़े की पोटली में बांधकर किसी बड़े बर्तन में कम से कम 12 – 14 लीटर पानी डालकर उबालने की प्रक्रिया बताई गई है। इस पानी को इतनी देर उबालना है कि कुल चढ़ाए गए पानी का केवल 1/ 8 भाग शेष रह जाना चाहिए। इसके पश्चात आंवले को निकाल कर उसके बीजों को अलग कर दें और आंवले का पेस्ट बना लें , बचे हुए पानी को भी छानकर रख लेना चाहिए। किसी कढ़ाई में तिल का तेल गर्म करें और आंवले को उसमें अच्छी प्रकार पकाएं। इसके पश्चात बचे हुए पानी में आवश्यकतानुसार चीनी मिलाकर चासनी तैयार कर लेनी चाहिए। फिर इसमें आंवला डालकर पकाएं। तैयार हो जाए तो उसमें 200 ग्राम तुगक्षिरी, 300 ग्राम शहद, 50 ग्राम छोटी इलायची, 100 ग्राम पिपली, 50 ग्राम तेजपत्र और 50 ग्राम नागकेसर आदि घटक द्रव्यों को मिलाएं। इस प्रकार ‘च्यवनप्राश’ बनकर तैयार हो जाता है।

उत्तम रसायन दिया ऋषि ने स्वास्थ्य की रक्षा करता।
जुड़ो अपने मूल से प्यारे ! यही हमें शिक्षा करता।।

             आंवला, वसाका, अश्वगंधा, तुलसी, नीम ,केसर, पिपली, ब्राह्मी, घी, शहद, लौंग, इलायची, दालचीनी, बेल, अगुरु, तेजपत्ता, पुनर्नवा, हल्दी, नागकेसर, शतावरी, तिल का तेल आदि सभी वनस्पतियों के औषधीय तत्वों को खोजना और उन्हें मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी बनाना सचमुच ऋषि च्यवन की बहुत बड़ी देन है। जिस पर प्रत्येक भारतीय को गर्व है। यह बात तब और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जब वर्तमान में एलोपैथी के दुष्परिणाम हम आते हुए देख रहे हैं। च्यवनप्राश एक ऐसी महौषधि है, जिसके कोई दुष्प्रभाव स्वास्थ्य पर नहीं पड़ते।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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