यज्दियों के कत्लेआम का असली कारण ?
यज्दियों के कत्लेआम का असली कारण ?
क्योंकि यह विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है ,जो मानता है कि हरेक व्यक्ति जो भले कर्म करता है ,मरने के बाद उसका जन्म भारत में ही होता है ,जबकि इस्लाम पुनर्जन्म को नहीं मानता
यदि हम निष्पक्ष होकर मुसलमानों का इतिहास और उनकी कुरान से प्रेरित कपट नीति का अध्यन करें तो यही निष्कर्ष निकलेगा जो इस लेख का मुख्य विषय है . क्योंकि जब मुसलमान किसी गैर मुस्लिम देश में अल्पसंख्यक होते हैं ,तो ऐसा प्रचार करते हैं ,कि इस्लाम तो शांति का धर्म है , इसमे जबरदस्ती नहीं सिखाई जाती , और अल्लाह की नजर में सभी मनुष्य एक समान है , और इस्लाम सेअनभिज्ञ भोले लोग उनके झांसे में आ जाते हैं।
लेकिन जैसे मुसलमानों की संख्या बढ़ जाती है , तो वह सभी गैर मुसलिमों के शत्रु बन जाते है , चूँकि इस्लाम की सभी मान्यताएं अवैज्ञानिक , अमानवीय , तर्कहीन और कल्पित बातों पर आधारित है , इसलिए मुसलमानो में अनेकों फिरके या संप्रदाय बन गए है , और हरेक अपनी मर्जी के अनुसार इस्लाम की व्याख्या करता है . मुसलमानों का हिंसक ,क्रूर , अत्याचारी , मानवता विरोधी और असहिष्णु स्वभाव कुख्यात है . इसलिए यदि एक संप्रदाय दूसरे की मान्यता से भिन्न विचार रखता है , तो मुसलमान उनको क़त्ल करने को परम धर्म मानते हैं .
आज इराक में सुन्नी सलफ़ी मुसलमान कुरदिश यजीदी मुसलमानों का निर्दय होकर जनसंहार इसी लिए कर रहे हैं , उनक सिर्फ इतना अपराध है कि वे इस्लाम केबारे में सुन्नियों से अलग विचार रखते हैं , और भारत को अपनी मूल मातृ भूमि मानते हैं , यही नहीं हिन्दू धर्म के कई सिद्धांतों पर विश्वास रखते हैं ,जो इस्लाम जे खिलाफ है , यही विश्वास उनकी हत्याओं का कारण है , लेकिन अधिकांश लोग इस बात को नहीं जानते। इसलिए इस लेख में यजीदी फिरके के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है ,
1-यज़ीदियों का परिचय
यज़ीदी या येज़ीदी (कुर्दी: ئێزیدی या Êzidî, अंग्रेज़ी: Yazidi) कुर्दी लोगों का एक उपसमुदाय है जिनका अपना अलग यज़ीदी धर्म है।कुछ चालाक मुस्लिम यजीदी शब्द को मुसलमानों के छठवें सुन्नी खलीफा ” यजीद बिन मुआविया बिन अबु सुफ़यान – يزيد بن معاوية بن أبي سفيان ” ( 647- 683 AD) से जोड़ा कर यज़ीदियों को उसी का अनुयायी बता देते हैं , वास्तव में यजीदी शब्द अवेस्ता भाषा के ” यज्दी ” का अपभ्रंश है , जो संस्कृत की “यज ” धातु से बना है ,जिसका अर्थ यजन , यज्ञ करना है , इस्लाम से पहले कुर्द अग्नि में यज्ञ करते थे , उस समय ईरान में सभी आर्य थे , ईरान का अंतिम आर्य सम्राट ” यज्दे गर्द ” था . जिसका अर्थ ” यज्ञकृत ” होता है . इसलिए
इस धर्म में वह पारसी धर्म के बहुत से तत्व, इस्लामी सूफ़ी मान्यताओं और कुछ ईसाई विश्वासों के मिश्रण को मानते हैं। इस धर्म की शुरुआत 12 वीं सदी ईसवी में शेख़ अदी इब्न मुसाफ़िर ने की और इसके अनुसार ईश्वर ने दुनिया का सृजन करने के बाद इसके देख-रेख सात फरिश्तों के सुपुर्द करी जिनमें से प्रमुख को ‘मेलेक ताऊस’, यानि ‘मोर (पक्षी) फ़रिश्ता’ है। अधिकतर यज़ीदी लोग पश्चिमोत्तरी इराक़ के नीनवा प्रान्त में बसते हैं, विशेषकर इसके सिंजार क्षेत्र में। इसके अलावा यज़ीदी समुदाय दक्षिणी कॉकस, आर्मेनिया, तुर्की और सीरिया में भी मिलते हैं।
कुर्दी (Kurdî, کوردی, Kurdish) ईरान, तुर्की, ईराक़, सीरिया और दक्षिणी कॉकस क्षेत्र में रहने वाले कुर्दी लोगों की भाषा है। यह हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की हिन्द-ईरानी शाखा की ईरानी उपशाखा की एक सदस्य है। यह आधुनिक फ़ारसी भाषा से काफ़ी मिलती-जुलती है। दुनिया भर में कुर्दी बोलने वालों की संख्या 1.6 करोड़ अनुमानित की गई है। तुर्की में इसे मातृभाषा या दूसरी भाषा बोलने वाले उस देश की कुल आबादी के लगभग 12% अनुमानित किये गए हैं। वास्तव में कुर्दी एक भाषा नहीं बल्कि बहुत सी बोलियों का मिश्रण है .
2-यजदियों की पवित्र पस्तकें और उपास्य
यजदियों की केवल दो ही पवित्र पुस्तकें हैं , जो फारसी अरबी मिश्रित कुर्दी भाषा में हैं , इनके नाम इस प्रकार हैं ,
1 -किताब अल जल्वा – كتاب الجلوة ” . इसका अर्थ ( Book of Revelation ) यानि रहस्योदघाटन होता है , अरबी में इसे ” वही – الوحي ” यानी ईश्वर प्रेरित रहस्यों का प्रकाशन , इस किताब में पांच अध्याय हैं ,इस किताब में प्राचीन ईरानी आर्यों की मान्यता के आधारपर सृष्टि की उत्पत्ति , ईश्वर द्वारा ,सात इज्द ( फरिश्तों ) के माध्यम से विश्व का सञ्चालन और व्यवस्था का वर्णन है , जो हमारी सप्तऋषि की मान्यता से मिलती है , कुरान में इसी बात को थोड़े परिवर्तन से शामिल कर लिया गया है ,
यज्दियों की दूसरी किताब का नाम है
2-मिसहफा रेस – مسحهفا ڕهش ” है ,इसे “किताबे सियाह – کتاب سیاه “यानी काली किताब ( Black Book ) भी कहा जाता है ,इसमे 13 अध्याय हैं.इसमें लिखा है कि खुद ने सबसे पहले एक सफ़ेद मोती बनाकर एक पक्षी के ऊपर रख दिया और चालीस हजार साल के बाद रविवार के दिन उस पक्षी के अंडे से एक मोर पैदा हुआ , जिसका नाम ” मलिक ताऊस مَلَك طَاوُوس-” है . जो एक फरिश्ता बन गया . खुद ने उसी को दुनिया का सारा काम सौंप दिया . और सभी देवताओं का सेनापति बना दिया , नोट- हिन्दू पुराणों में उसे शिव के बड़े पुत्र “स्कंद ,सनत कुमार ,और मुरुगन भी कहा जाता है , इनका वाहन और प्रतिक मोर ,मयूर ( Peacock ) है मलिक ताऊस
https://tinyurl.com/5n7nevp9
.यज्दियों की मान्यता है कि उनके प्रथम धर्मसुधारक “शेख अदि इब्ने मुसाफिर उमव्वी -عدي بن مسافر الاموي” इसी मयूर फ़रिश्ते के अवतार ( Incarnation) थे . जिनकी मृत्य सन 1126 में हुई थी . और उनकी समाधी लेबनान के “लालिश – لالش ” शहर में है , लालिश स्थित शेख आदि इब्न मुसाफिर की दरगाह”
https://tinyurl.com/y4wu8cuf
3-यज़ीदियों की वर्णव्यवस्था
भारतीय वर्णव्यस्था के अनुसार ही यज्दी भी चार वर्णों में विभक्त हैं , लेकिन इनके वर्ण जन्म के आधार पर नहीं कर्मों पर आधारित हैं , यह चार वर्ण इस प्रकार हैं ,
1-अमीर(أمير )commander, general, or prince.
2-मुरीद (مُرِيد)meaning ‘committed one
3- पीर (پیر,)old [person
4-शेख (شيخ )leader and/or governor
यज्दिओं में अधिकांश मुरीद होते हैं , जिनकी धार्मिक , सामाजिक और कानूनी व्यवस्था बाकी के तीनों वर्ण के लोग देखते हैं ,
4-यज़ीदियों की उपासना विधि
यज्दी पारसिओं और मुसलमानों की तरह पांच बार नमाज पढ़ते हैं , जिसे निवाज कहा जाता है , इनके नाम और समय इस प्रकार हैं ,
1-Nivêja berîspêdê (the Dawn Prayer), -صلاة الفجر) ،
2-Nivêja rojhilatinê (the Sunrise Prayer),صلاة الشروق
3-Nivêja nîvro (the Noon Prayer),صلاة الظهر)
4- Nivêja êvarî (the Afternoon Prayer-صلاة العصر)
5-Nivêja rojavabûnê (the Sunset Prayer). وصلاة الغروب
लेकिन अधिकांश यज्दी केवल सूर्योदय और सूर्यास्त की दो ही नमाजें पढ़ते हैं , और मक्का की जगह लालिश की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ते हैं ,यही नहीं यज्दी अपने गले में यज्ञोपवीत की तरह एक धागा भी पहने रहते हैं जिसे ” गिरेबान ” कहा जाता है , हरेक यज्दी उसे बार बार चूमता रहता है , यज्दी एक लम्बा कुरता भी पहिनते हैं जिसे ” किरास ” कहते हैं , यही
5-यज़ीदियों का ईमान और कलमा
मुसलमानों की तरह यजदियों का कोई कलमा नहीं है ,कि जिसपर ईमान रखना अनिवार्य हो . लेकिन उनके शेख ” अदि शामी बिन मुसाफिर ” ने अपनी कविताओं में आत्मा को परमात्मा माना है , वह कहते हैं
“انا عدي الشّامي بن مسافر الله ـ لا اله الّا انا ”
, ” अना अदि अश्शामी बिन मुसाफिर अल्ल्लाह – ला इलाहा इल्ला अना ”
अर्थात – मैं ही अल्लाह हूँ , और मेरे सिवा दूसरा कोई अल्लाह नहीं है .
बिलकुल यही बात उपनिषद् में कही गयी है
“अहं ब्रह्मास्मि ,एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति “मुण्डक उपनिषद्
शेख अदि की मृत्यु सन 1162 में तुर्की के एक टापू लालिश में हुई थी , यज्दी लोग उसी की तरफ मुंह पढ़कर निवाज पढ़ते हैं। और उसे अल्ल्लाह का घर मानते हैं ,
कुरान में अल्लाह के 99 नाम बताये गए हैं इनमे एक नाम “अल हक़ -” यानी सत्य भी है , भारत में कहा जाता है कि ” ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या ” इसी से प्रभावित होकर 5 वें शेख “अनल हक़ -أنا الحق ” का जाप करते थे यानी मैं सत्य अर्थात अल्लाह हूँ ”
यह बात भी उपनिषद् में मौजूद है ,” अहं ब्रह्मास्मि “मुण्डक उपनिषद् .जब शेख की इसबात से नाराज होकर बादशाह ने उनको गिरफ्तार करा लिया और तलाशी देने को कहा तो शेख ने कहा मेरे कुर्ते के अंदर मेरा शरीर नहीं अल्लाह है “मा फिल जुब्बती इल्ला अल्लाह – ما فالجبّتي الّا الله” और जब शेख भावावेश में आकर नाचते हुए यही बात दुहरा रहे थे तो 26 मार्च सन 922 को एक सैनिक ने उनका सर काट दिया .
6-भारत और पुनर्जन्म पर आस्था
यज्दिओं का विश्वास है कि आत्मा अमर है , और मौत के बाद फिर से जन्म ले लेती है , इस सिद्धांत को “तनासुख अल अरवाह -تناسخ الأرواح” कहा जाता है जिसका अर्थ पुनः अवतार होता है . कुर्दिश भाषा में इसे “अफतार – أفاتار” कहते हैं , यह संस्कृत शब्द ” अवतार ” का अपभ्रंश है .यज्दिओं का यह भी विश्वास है कि जब कई जन्मों तक शुभ कर्म करने पर कोई आत्मा शुद्ध हो जातीहै ,तो उसका जन्म भारत में होता है , क्योंकि भारत ही आत्माओं का मूल स्थान है
“the Yezidis believe that they will continue to reincarnate until they achieve a certain level of soul purity. At that time they will be eligible to enter their original homeland of India.
यही नहीं यज्दी यह भी मानते हैं कि यदि कोई बुरे धर्म जैसे इस्लाम को अपनाता है , तो अगले जन्म में उसे कठोर दंड दिया जायेगा
” it is liable to reincarnate into the body of a person associated with a different religion, such as Islam. The greatest punishment is to him
भारत और हिन्दू धर्म के सिद्धांतों पर आस्था रखने के कारण ही सुन्नी मुस्लिम यज्दिओं का क़त्ल कर रहे हैं
7-यज़ीदियों का कत्लेआम
कट्टर सुन्नी मुस्लिम कुरान के बेसिर पैर के सिद्धांत जबरन लोगों पर थोपने के लिए कुख्यात हैं , और जब यजदियों ने भारतीय हिन्दू मान्यताओं को नहीं छोड़ा तो मुसलमान उनका कत्ले आम करने लगे , पिछले सात सौ सालों में सुन्नियों ने दो करोड़ तीस लाख यजदियों को मार दिया , जिसकी संख्या रोज रोज बढ़ रही है .
इस से उन सेकुलरों को सचेत होना चाहिए जो मुसलमानों को भी सेकुलर बताते हैं , यदि भारत में मुस्लमान बढ़ गये तो सभी हिन्दुओं का हाल भी यज़ीदियों जैसा हो जायेगा ,
आज हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि इसलाम एक जनहत्यारा सम्प्रदाय है !
(202)
ब्रजनंदन शर्मा
(लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)