राष्ट्र निर्माण में आर्य वीर दल का सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा है : ज्ञानेन्द्र गांधी


मुरादाबाद। ( विशेष संवाददाता) यहां पर अभी हाल ही में संपन्न हुए आर्यवीर महासम्मेलन के मुख्य सूत्रधार रहे आर्य समाज के विनम्र और शालीन नेता ज्ञानेंद्र गांधी ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में आर्य समाज के साथ-साथ आर्य वीर दल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि आर्य वीर दल का निर्माण महात्मा नारायण स्वामी जी जैसे कर्म योगी के द्वारा उस समय किया गया था जब उस समय के सबसे बड़े आर्य समाजी नेता स्वामी श्रद्धानंद जी की विधर्मियों के द्वारा हत्या कर दी गई थी।
श्री गांधी ने कहा कि उस समय कांग्रेस के नेता महात्मा गांधी ने स्वामी श्रद्धानंद जी की हत्या को बहुत हल्के में लिया था। उन्होंने स्वामी जी के हत्यारे को भाई कहकर संबोधित किया था। इस प्रकार यह बात स्पष्ट हो गई थी कि विधर्मियों से हो रही लड़ाई में आर्य समाज के नेता किसी भी प्रकार से कांग्रेस का समर्थन प्राप्त नहीं कर सकते थे। यदि गांधीजी उस समय मजबूती के साथ स्वामी जी के हत्यारे को हत्यारा कहने का साहस दिखाते तो देश का विभाजन नहीं होता।
श्री गांधी ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद की हत्या के समय गांधीजी कांग्रेस के 1926 के गोहाटी अधिवेशन में भाग ले रहे थे। जब उन्हें स्वामीजी की हत्या का समाचार मिला तो गांधीजी ने कहा-‘‘ऐसा तो होना ही था। अब आप शायद समझ गये होंगे कि किस कारण मैंने अब्दुल रशीद ( स्वामी जी के हत्यारे ) को भाई कहा है और मैं पुनः उसे भाई कहता हूँ। मैं तो उसे स्वामीजी का हत्या का दोषी नहीं मानता। वास्तव में दोषी तो वे हैं जिन्होंने एक-दूसरे के विरुद्ध घृणा फैलायी।’’
गांधी ने स्वामीजी की हत्या के बाद एक मंच से कहा था कि ‘राशिद मेरा भाई है और मैं बार बार यह कहूंगा। हत्या के लिए मैं उसे दोषी नहीं ठहराता। दोषी वह लोग हैं जो एक दूसरे के खिलाफ नफरत फैलाते हैं। उसकी कोई गलती नहीं है और न ही उसे दोषी ठहराकर किसी का भला होगा।’ यदि किसी की वकालत स्वयं गांधी कर रहे हों तो कौन सा कानून आरोपी को सजा देता ? गांधीजी के प्रयासों से राशिद को छोड़ दिया गया।
इतना ही नहीं गांधी जी ने अपने भाषण में आगे कहा, — ” मैं इसलिए स्वामी जी की मृत्यु पर शोक नहीं मना सकता.… हमें एक आदमी के अपराध के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए । मैं अब्दुल रशीद की ओर से वकालत करने की इच्छा रखता हूँ । “
उन्होंने आगे कहा कि “समाज सुधारक को तो ऐसी कीमत चुकानी ही पड़ती है , स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या में कुछ भी अनुपयुक्त नहीं है । “अब्दुल रशीद के धार्मिक उन्माद को दोषी न मानते हुये गांधीजी ने कहा कि “…ये हम पढ़े, अध-पढ़े लोग हैं , जिन्होंने अब्दुल रशीद को उन्मादी बनाया । स्वामी जी की हत्या के पश्चात हमें आशा है कि उनका खून हमारे दोष को धो सकेगा, हृदय को निर्मल करेगा और मानव परिवार के इन दो शक्तिशाली विभाजन को मजबूत कर सकेगा.“ (यंग इण्डिया, दिसम्बर 30, 1926)।
श्री ज्ञानेंद्र गांधी ने कहा कि आर्य समाज चोर को चोर कहना जानता है और जब तक चोर को चोर नहीं कहोगे तब तक आप अपने माल की रक्षा नहीं कर सकते। अपने देश के सम्मान की रक्षा के लिए आर्य समाज ने हमेशा बलिदान दिए हैं और बलिदान देने के लिए आज भी तैयार है। हम मां भारती के सम्मान के लिए किसी भी प्रकार का सौदा नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि आर्यवीर महासम्मेलन का उद्देश्य यही था कि देश विरोधी शक्तियों को देश में पनपने नहीं दिया जाए। देश के धर्म व संस्कृति रक्षा हो और ऐसे नौजवान तैयार किए जाएं जो स्वामी दयानंद जी के सपनों के भारत के निर्माण हेतु अपना सर्वस्व समर्पित करने को तत्पर हों।

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