ईश्वर की भक्ति में मन कैसे लगाएं?— आचार्य योगेश वैदिक


महरौनी(ललितपुर)…महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वाधान में युवा पीढ़ी को सत्य सनातन वैदिक धर्म के सही मर्म से परिचित कराने के उद्देश्य से संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा पिछले दौ वर्षो से प्रतिदिन व्याख्यान माला के क्रम में “ईश्वर भक्ति” विषय पर आचार्य योगेश वैदिक दर्शन योग धाम गांधीनगर गुजरात ने कहा कि विश्वभर में अनेक संस्कृतियां हैं, कुछ लोग स्वयं को आस्तिक मानते हैं तो कुछ लोग नास्तिक।आस्तिक अर्थात जो ईश्वर को मानते हैं, मानने का स्तर लोगों का अलग अलग है, कोई नियम से सुबह शाम को मानता है कोई स्थान विशेष पर तो कोई समय की अनुकूलता के आधार पर अर्थात कुछ विशेष कार्य आन पड़े तो ईश्वर को मानते हैं, शेष समय या परिस्थिति में नहीं।इन सबमें जो श्रेष्ठ हैं बुद्धिमान हैं धार्मिक हैं वह चाहते हैं की उनका मन ईश्वर भक्ति में अधिक लगे, कई बार प्रयास करते हैं आंख बंद करके जप ध्यान करने का विचार करते हैं परन्तु चित्त की वृत्तिः रुकति नहीं। सांसारिक विषयों मे ही मन् उलझा रहता है।इस का यह अर्थ तो कदापि नहीं की व्यक्ति का मन् कहीं भी नहीं लगता? लगता तो है। लेकिन उन्हीं विषयों में अथवा व्यक्तियों/ वस्तुओं मन लगता है, जिनमे लाभ दिखाई दे। तभी उनकी रुचि बढ़ती है, और बार बार व्यक्ति अथवा वस्तु की स्मृति आती रहती है।
ईश्वर में लाभ दिखे तो रुचि बढ़ेगी और रुचि बढ़ने से ईश्वर की प्राप्ति को ही वृत्ति बनेगी वैसे ही सुसंस्कार निर्मित होंगे।आप लोग सुनते ही होंगे
“त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव।। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देव देव।।” और आप एक भजन भी सुनते होंगे “तुम ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम ही बंधू , सखा तुम्ही हो
तुम्ही हो साथी तुम ही सहारे
कोई न अपना सिवाए तुम्हारे
तुम्ही हो नैया तुम्ही खिवैया
तुम ही हो बंधू सखा तुम्ही हो” …
लोग प्रार्थना करते हैं लेकिन जैसी प्रार्थना करते हैं वैसा मानते नहीं
वास्तिवकता यही है कि ईश्वर ही हमारी शास्वत माता है पिता है बंधु है भ्राता है मित्र है।सनातन है जन्म जन्मांतर का साथी सहायक है।
परंतु हम ईश्वर के साथ इस प्रकार के संबंध न जोड़ते, वह तो केवल हम मनुष्यो को ही मानते हैं ईश्वर को नहीं।
यदि सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करनी है उससे लाभ लेना है, तो हमे उससे संबंध जोड़ना होगा, संबंध में जब बंधेंगे तो ईश्वर के अनुकूल संबंध के अनुकूल आचरण करेंगे, आचरण शुद्ध पवित्र होगा तो ईश्वर की ओर रुचि बढ़ेगी। इसलिए प्रत्येक कार्य को आरंभ करने से पूर्व ईश्वर का ध्यान करें उससे प्रार्थना करें, और प्रत्येक कार्य के विषय में उसकी सफलता व असफलता के विषय में ईश्वर को प्रार्थना पूर्वक अवश्य बताएं उन्हें ही सच्चा हितैषी मानकर।प्रात: जागरण पर ईश्वर का धन्यवाद देवें, शयन से पूर्व दिनभर की गतिविधियों को ईश्वर से सांझा करें, आत्मनिरीक्षण करें, तत्पश्चात शयन करें।वेद मंत्रों के प्रत्येक शब्द के अर्थ को जानकर अर्थ का ईश्वर से संबंध जोड़कर एकाग्र मन हो प्रार्थना करें।इससे ईश्वर में रुचि बढ़ेगी, जिससे ईश्वर की उत्तम प्रेरणाएं मिलेंगी।जीवन सुखद शांतिमय बनेगा।
सांसारिक सुख भोग अर्थात अभ्युदय सिद्ध होने के पश्चात पारलौकिक सुख नि:श्रेयस सुख मोक्ष की प्राप्ति होगी।

व्याख्यान माला में प्रो. डॉ.अखिलेश शर्मा जलगांव महाराष्ट्र,प्रो. डॉ. निष्ठा विद्यालंकार लखनऊ,प्रो. डॉ. व्यास नंदन शास्त्री बिहार,चंद्रकांता आर्या क्रांति चंडीगढ़,प्रो. डॉ.वेद प्रकाश शर्मा बरेली,अनिल नरूला दिल्ली,प्रेम सचदेवा दिल्ली, रामकुमार सेन अजान,अवधेश प्रताप सिंह बैंस,रामसेवक निरंजन शिक्षक,रामकिशोर निरंजन शिक्षक,अवध बिहारी तिवारी केंद्रीय शिक्षक कल्याणपुरा,रवि सेन मेंगुआ,बलराम सेन एड ललितपुर,आराधना सिंह शिक्षिका,सुमन लता सेन शिक्षिका, दया आर्या हरियाणा,ईश आर्य राज्य प्रभारी भारत स्वाभिमान हरियाणा सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्य जन जुड़ रहें हैं।
संचालन आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य वा आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।

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