व्यर्थ में ही गांधी का महिमामंडन करके कैसे बनाया गया उन्हें महान ?

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-इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार, महामन्त्री, वीर सावरकर फ़ाउंडेशन                             ——————————————— कुछ लोग अपने परिश्रम से महानता के सिंहासन पर विराजमान हो जाते हैं, तो कुछ  पर महानता जबरदस्ती थोप दी जाती है। यदि भारतीय इतिहास के कथित नायक गांधी पर इस बात को लागू किया जाए तो पता चलता है कि वह महान नहीं थे पर महानता उन पर थोप दी गई थी। जिस समय गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत आए तो उस समय उनकी अवस्था 46 वर्ष थी और वह भारत में आकर गोखले के आशीर्वाद से उनके उत्तराधिकारी के रूप में राजनीति में काम करने लगे।
  १९२० से १९४७ तक कांग्रेस संगठन के वे सर्वोच्च नेता रहे। पर राजनैतिक उपलब्धि के नाम पर वे पूर्णत: असफल रहे। उन्होंने इस बात को कई बार दौर आया था कि देश का विभाजन मेरी लाश  पर होगा। परन्तु वे जीवित रहे व देश का विभाजन उनके जीते जी हो गया जिसे वह मूक होकर देखते रह गए और कुछ भी नहीं कर पाए। ११९४२ में वे भारत छोड़ो आंदोलन चलाकर अंग्रेजों को भारत से भगाने में भी असफल रहे। अंग्रेजो ने २६ जनवरी १९५० को स्वाधीन किया।
    गांधी के नाम से और गांधी के अंग्रेजों के साथ बने मधुर संबंधों का लाभ उठाकर जब नेहरू देश का प्रधानमंत्री बनने में सफल हो गया तो उसने अपने गुरु को व्यर्थ में ही महान बनाने का काम करना आरंभ कर दिया।  आज लोग गाँधी को नेहरू के बनायें महान गाँधी के रूप में जानते  है। १५ अगस्त 1947 जो देश का विभाजन कर पाकिस्तान नामक एक नये देश के निर्माण का दिन है। इतिहास का यह एक मनोरंजक तथ्य है कि नेहरू ने इस दिन को स्वाधीनता दिवस बना दिया। देश के दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन को भी खुशियों बदल देना कोई नेहरू और गांधी से सीख सकता है।
हमें ध्यान रखना चाहिए कि 15 अगस्त 1947 को भी भारत एक औपनिवेशिक देश था। जिसका मुखिया लॉर्ड माउंटबेटन था। वह वायसराय के रूप में वायसराय हाउस(आज का राष्ट्रपति भवन) से ब्रिटिश झण्डे यूनीयन जेक के नीचे देश पर शासन करता था। देश से ब्रिटिश साम्राज्य का शासन 26 जनवरी 1950 को हुआ। इसी दिन भारत का स्वतंत्र देश का संविधान लागू हुआ।
हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है । जिसमें किसी व्यक्ति विशेष को संविधान से या लोकतांत्रिक संस्थानों से ऊपर नहीं माना जा सकता। संविधान किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रपिता होने या घोषित करने की स्वीकृति प्रदान नहीं करता। लेकिन इसके बावजूद भारत में कांग्रेस के नेता नेहरू ने अपने गुरु गांधी को जबरदस्ती राष्ट्रपिता बना दिया। आज समय की मांग है कि देश का विभाजन कराने वाले गांधी से राष्ट्रपिता का यह खिताब छीना जाना चाहिए । मूर्खतापूर्ण नीतियों को अपनाकर देश को अपमानित करने वाले लोगों का महिमामंडन और राष्ट्रभक्ति के कार्यों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को कँपा देने वाले राष्ट्र भक्तों की उपेक्षा करने की इस प्रवृत्ति का पाप कांग्रेसी यद्यपि आज भगत रही है परंतु उसे दंड देने की भी आवश्यकता है ।
   गांधी के जन्मदिवस को राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर दिया गया है। यह परंपरा भी गलत और गैर कानूनी है । गांधी के हरिजन बस्ती में रहते हुए बाल्मीकि मंदिर में कुरान पढ़ने के कारण प्रतिवाद स्वरूप जलूस आने लगे तो उनकी सुरक्षा के खतरे को देखते हुए उन्हें सुरक्षित स्थान अब गाँधी के जन्मदिवस को रास्ट्रिय अवकाश दे दिया। बिरला हाउस स्थानांतरित कर दिया गया। २० जनवरी १९४८ को पाकिस्तान से आये बर्बाद हुवे एक उजड़े हुवे शरणार्थी मदनलाल पाहवा ने बिरला हाउस मे  प्रवेश  कर गाँधी पर बम फेंका, पर बम दूर जा गिरा व गाँधी बच गये। लाखों पाकिस्तान से उजड़े हुए शरणार्थी आ रहे थे व देश में भी गाँधी के बिरुद्ध ज़बरदस्त वातावरण था। २० जनवरी १९४८ को गाँधी पर असफल  बम हमले के बाद भारत सरकार के प्रधान मन्त्री का कर्तव्य था कि हरिजन बस्ती की तरह गाँधी से मिलने वालो की चेकिंग की व्यवस्था हो ताकि कोई हथियार लेकर बिरला हाउस के अन्दर नही जा सके। परन्तु नेहरू सरकार ने यह काम नही किया व गाँधी को मरने दिया। गाँधी के इस तरह मरने से वे सही में महान बन गये।
इस प्रकार पहले गांधी को मरने दिया, फिर उनकी मौत पर छाती पीट-पीटकर रोकर उन्हें महान बनाया फिर मरणोपरांत उनकी मृत्यु को भुनाने के लिए उन्हें राष्ट्रपिता बनाया । यह कैसा अजीब खेल है ? जिसे समझ कर भी समझने का प्रयास नहीं किया गया।  इस सारे षड्यंत्र से अब पर्दा हटना चाहिए और जो सच है वह इतिहास की पुस्तकों में आना चाहिए।

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